बच्चों में बढ़ती मोबाइल की लत उनके स्वभाव में बड़ा परिवर्तन कर रही है। स्वास्थ्य विभाग ने स्कूली बच्चों पर एक सर्वे कराया तो पता कि इस लत के चलते बच्चों का बचपन गुम हो रहा है। वे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो रहे हैं। पबजी और ब्लूव्हेल जैसे घातक ऑनलाइन गेम लक्ष्य पूरा न होने पर आत्महत्या की प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। साल या डेढ़ साल की उम्र के बच्चे भी दिनभर मोबाइल में कार्टून वीडियो देखते रहते हैं। छीनने पर रोने या सिर फोडऩे लगता है। यह कोई अच्छी आदत नहीं। सरकार ने भयावहता देखते हुए इससे निपटने के उपाय किए हैं।
राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महानिदेशक ने सभी जिला चिकित्सालयों में मन कक्ष स्थापित करने का आदेश जिलाधिकारियों एवं मुख्य चिकित्साधिकारियों को दिया है। कानपुर के सीएमओ डॉ. अशोक शुक्ला ने बताया कि शासन के पत्र को संज्ञान में लेते हुए जल्द ही बच्चों को मोबाइल की लत से छुटकारा दिलाने की पहल की जाएगी। उर्सला अस्पताल में स्थापित मन कक्ष में बच्चों की उम्र के हिसाब से निशुल्क काउंसिलिंग शुरू की जाएगी। इसके साथ ही बच्चों में बढ़ रही आत्महत्या की प्रवृति को रोकने के लिए माता-पिता को भी जागरूक किया जाएगा।
स्मार्टफोन चलाने के दौरान बच्चे पलकें कम झपकाते हैं, इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहते हैं। इससे आंखों का पानी सूखने से नजरें तिरछी होने लगती हैं और कम उम्र में ही बच्चों की आंखें खराब हो रही हैं। कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह से बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं और कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं। मोबाइल गेमिंग की वजह से बच्चे भावनात्मक रूप से कमज़ोर होते जाते हैं, कुछ हिंसक मोबाइल गेम्स बच्चों में आक्रामकता को बढ़ावा देते हैं। बच्चे अक्सर फोन पर गेम खेलते या कार्टून देखते हुए खाना खाते हैं, इस दौरान भोजन की मात्रा कम या ज्यादा होने का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। फोन के अधिक इस्तेमाल से वे बाहरी दुनिया से संपर्क करने में कतराते हैं। उन्हें रोका जाता है तो चिड़चिड़े, आक्रामक व कुंठाग्रस्त हो जाते हैं