कानपुरPublished: Jul 14, 2018 12:44:26 pm
Vinod Nigam
मुख्तार अंसारी को खड़ा करने में अहम रोल बजरंगी का था, बृजेश सिंह से निपटने के लिए कई शूटर तैयार किए
मुख्तार की पाठशाला में सीखा अपराध का ककहरा, मुन्ना की मौत के बाद फूट-फूट कर रोया माफिया
कानपुर। पूर्वान्चल में वर्चस्व को लेकर कई माफियाओं के बीच जंग चल रही थी तो वहीं मुख्यार अंसारी इन सब से निपटने के लिए शार्प शूटर तैयार कर रहा था। मुख्तार की पाठशाला में मुन्ना बजरंगी, रईस बनारसी, मोनू पहाड़ी, अतीक सहित कई अपराधी आयाराम-गयाराम की दुनिया का ककहरा सीख रहे थे। मुख्तार ने इन्हें ट्रेंड कर जमीन पर उतार दिया और फिर सुपारी लेकर हत्या का जो सिलसिला चला वो आज तक कोई भी सरकार रोक नहीं पाई। मुख्तार ने दुश्मन नंबर एक भाजपा विधायक कृष्णानंद राय को बजरंगी के जरिए गोलियों से भुंजवा दिया तो रईस बनारसी के जरिए पूवे पूर्वान्चल में अपना सिक्का जमा लिया। वक्त बदला और लखनऊ की सत्ता बदली तो मुख्तार के साथ ही अन्य डॉनों की उल्टी गिनती शुरू हो गई। सभी बड़े अपराधी जेल के अंदर भेज दिए गए। वहीं सुपारी किलर मुन्ना बजरंगी झांसी जेल में बंद था और एक केस के मालमे में उसकी पेशी बागपत कोर्ट में होनी थी। पुलिस उसे बागपत जेल ले गई, जहां उसे मौत के घाट उतार दिया गया। मुन्ना की हत्या से शासन-प्रशासन हिल गया तो वहीं बांदा जेल में बंद मुख्तार फूट-फूट कर रोया।
जेल के अंदर सहमा डॉन
बागपत जेल में माफिया डान मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी बेचैन है। अपने खास शूटर की मौत की खबर से मुख्तार फूट-फूट कर रोया। बजरंगी की हत्या से सहमे मुख्तार न सोमवार से लेकर शनिवार तक अपनी बैरक में ही रहे। पूरे पांच दिन बीत जाने के बाद भी वो किसी से भी बातचीत नहीं करते। जबकि मुख्तार की की सुरक्षा को लेकर जेल प्रशासन किसी प्रकार की चूक नहीं चाहता। विधायक की बैरक पर त्रिस्तरीय सुरक्षा पहरा लगा दिया गया है। उनकी बैरक में किसी बंदी को जाने की इजाजत नहीं है। सीसीटीवी कैमरे के जरिए 24 घंटे बंदियों की हरकतों पर नजर रखी जा रही है। खुद अधिकारी रात-रातभर जाग रहे हैं। जेल सूत्रों के मुताबिक मुन्ना बजरंगी की हत्या की सूचना मिलने के बाद से मुख्तार अंसारी बैरक में ही हैं, बाहर नहीं आ रहे हैं। वह खाना-पीना भी ठीक से नहीं कर रहे हैं। जेल के हर व्यक्ति को वह संदिग्ध नजर से देख रहे हैं।
कौन हैं मुख्तार अंसारी
मुख्तार अंसारी का जन्म यूपी के गाजीपुर जिले में ही हुआ था। उनके दादा मुख्तार अहमद अंसारी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। जबकि उनके पिता एक कम्यूनिस्ट नेता थे। राजनीति मुख्तार अंसारी को विरासत में मिली। 1970 में सरकार ने पिछड़े हुए पूर्वांचल के विकास के लिए कई योजनाएं शुरु की. जिसका नतीजा यह हुआ कि इस इलाके में जमीन कब्जाने को लेकर दो गैंग उभर कर सामने आए। 1980 में सैदपुर में एक प्लॉट को हासिल करने के लिए साहिब सिंह के नेतृत्व वाले गिरोह का दूसरे गिरोह के साथ जमकर झगड़ा हुआ। यह हिंसक वारदातों की श्रृंखला का एक हिस्सा था। इसी के बाद साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह ने अपना अलग गिरोह बना लिया और 1990 में गाजीपुर जिले के तमाम सरकारी ठेकों पर कब्जा करना शुरु कर दिया। जिन पर कब्जा करने के लिए मुख्तार अंसारी उतर गए।
तब बजरंगी को लाए साथ
साहिब सिंह गैंग के ब्रजेश सिंह ने मुख्तार गैंग की कमर तोड़ दी तो उनसे निपटने के लिए मुख्तार ने शार्प शूटर तैयार करने के लिए फैक्ट्री खोल दी और ब्रजेश सिंह को खत्म करने के लिए मुन्ना बजरंगी, रईस बनारसी, मोनू पहाड़ी सहित कई शूटरों को जमीन पर उतार दिया। मुख्तार का नाम 1988 में पहली बार हत्या के एक मामले में सामने आया। 1990 का दशक मुख्तार अंसारी के लिए बड़ा अहम था। छात्र राजनीति के बाद जमीनी कारोबार और ठेकों की वजह से वह अपराध की दुनिया में कदम रख चुके थे। पूर्वांचल के मऊ, गाजीपुर, वाराणसी और जौनपुर में उनके नाम का सिक्का चलने लगा था। मुख्तार ने पुलिस से बचने के लिए 1995 में राजनीति में आ गए। . 1996 में मुख्तार अंसारी पहली बार विधान सभा के लिए चुने गए।
दोनों गैगों के बीच मुठभेड़
राजनीति में आने के बाद सत्ता की पॉवर मिल गई, जिसके चलते मुख्तार ने ब्रजेश सिंह की सत्ता को हिलाना शुरू कर दिया.।2002 आते आते इन दोनों के गैंग ही पूर्वांचल के सबसे बड़े गिरोह बन गए। इसी दौरान एक दिन ब्रजेश सिंह ने मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला कराया। दोनों तरफ से गोलीबारी हुई इस हमले में मुख्तार के तीन लोग मारे गए। बृजेश सिंह को खत्म करने के लिए मुख्तार ने मुन्ना बजरंगी को सुपारी दे दी। इसकी भनक लगते ही बृजेश सिंह पूर्वान्चल से भाग कर मुम्बई चला गया और कई साल वहां गुजारे। इस दौरान मुन्न बजरंगी ने बृजेश गैग से जुड़े लोगों का काम तमाम कर दिया और पूर्वान्चल में एक क्षत्र राज मुख्तार का हो गया।
कृष्णानंद ने बृजेश को दिया सहारा
बृजेश सिंह मुम्बई से फिर पूर्वान्चल आ गया और उन्हें भाजपा नेता कृष्णानंद राय ने सरंक्षण दिया। कृष्णानंद राय के लिए काम करने लगे और उन्हें चुनाव जिताने के लिए लग गए। राय ने 2002 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद से मुख्तार अंसारी के भाई और पांच बार के विधायक अफजल अंसारी को हराया था। इस जीत में अहम रोल बृजेश सिंह का रहा। मुख्तार को पुलिस ने अरेस्ट कर लिया। जेल जाते ही उन्होंने कृष्णानंदराय को खत्म करने का प्लॉन बना डाला और बजरंगी को काम सौंप दिया। बजरंगी ने बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय को उनके 6 अन्य साथियों को सरेआम गोली मार उनकी हत्या कर दी। कृष्णानंद राय की हत्या के बाद मुख्तार अंसारी का दुश्मन ब्रजेश सिंह गाजीपुर-मऊ क्षेत्र से भाग निकला था.। 2008 में उसे उड़ीसा से गिरफ्तार किया गया था।
कौमी एकता दल का गठन
बसपा से निष्कासित कर दिए जाने के बाद दोनों भाईयों को अन्य राजनीतिक दलों ने अस्वीकार कर दिया। तब तीनों अंसारी भाइयों मुख्तार, अफजल और सिब्गतुल्लाह ने 2010 में खुद की राजनीतिक पार्टी कौमी एकता दल का गठन किया। मुख्तार अंसारी ने दो बार बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और दो बार निर्दलीय. उन्होंने जेल से ही तीन चुनाव लड़े हैं. पिछला चुनाव उन्होंने 2012 में कौमी एकता दल से लड़ा और विधायक बने. वह लगातार चौथी बार विधायक हैं. पूर्वांचल में उनका काम उनके भाई और बेटे संभाल रहे हैं। अक्टूबर 2005 में मऊ में भड़क हिंसा के बाद उन पर कई आरोप लगे, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा पड़ा। वे वे तभी से जेल में बंद हैं. पहले उन्हें गाजीपुर से मथुरा जेल भेजा गया था. लेकिन बाद में उन्हें आगरा जेल में भेज दिया गया था। योगी सरकार आने के बाद मुख्तार को बांदा जेल भेज दिया गया।