सिर चढकर बोला पीएम का जादू
महज 15 साल की उम्र में नहर आंदोलन में भाग लेने वाले मुलायम सिंह ने अपनी 40 साल से ज्यादा राजनीतिक जीवन में कई उतार-चड़ाव देखे पर हार कर फिर से खड़े हुए। 1990 के बाद इटावा, मैनपुरी, फर्रूखाबाद, कन्नौज, कानपुर नगर, अकरबपुर में हर लहर और सुनामी को मात देकर दौड़ती रही। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पहले बार ऐसा हुआ, जिसका अंदेशा सियासत के सुल्तान मुलायम सिंह को हो गया था। समाजवाद के गढ़ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जादू सिर चढकर बोला और पूरी जमीन भगवा रंग में रंग गई।
घंमड के चलते मिली हार
समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक व प्रसपा कानपुर प्रभारी रघुराज शाक्य ने बताया कि मुलायम सिंह की आगवाई में 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी यूपी में उतरी। मायावती और भाजपा के किलों में मुलायम सिंह के साथ शिवपाल यादव समेत कई जमीनी नेताओं ने साइकिल दौड़ाई। इस दौरान मायावती सरकार ने समाजवादियों को जेल भिजवाया, पर हम नहीं हारे। मतदान के बाद प्रदेश की जनता ने समाजवादियों के पक्ष में वोट देकर पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई। हमसब ने युवा अखिलेश यादव को प्रदेश की बागडोर दी। पर कुर्सी में बैठनें के बाद वो बड़ों व कार्यकर्ताओं का सम्मान करना भूल गए और इसी का नतीजा है कि पार्टी महज पांच सीटों में सिमट गई।
मुलायम गठबंधन के खिलाफ
प्रसपा नेता ने बताया कि शिवपाल यादव के जन्मदिन पर मुलायम सिंह सैफई आना चाहते थे, पर अखिलेश यादव की पार्टी के कुछ नेताओं ने उन्हें रोक दिया। इतना ही नहीं वह लोकसभा चुनाव में शिवपाल के पक्ष में प्रचार करना चाहते थे, पर उन्हें फिर से रोका गया। रघुराज शाक्य के मुताबिक मुलायम सिंह बसपा चीफ मायावती के साथ गठबंधन के पूरी तरह से खिलाफ थे, पर अखिलेश यादव और प्रोफेसर रामगोपाल के चलते उनकी नहीं चली। जिसका परिणाम रहा कि पार्टी का बेसवोट भी समाजवादी पार्टी से खिसक कर भाजपा के पास चला गया तो वहीं बसपा का वोट अखिलेश यादव के साथ नहीं आया।
मुलायम को हो गया था हार का एहसास
रघुराज शाक्य कहते हैं कि मुलायम सिंह ने अपनी पुरी जिदंगी राजनीति मे खफा दी। वो जमीन से जुड़े नेता हैं और उन्हें भविष्य की जानकारी का एहसास पहले ही हो गया था। जिसका उन्होंन संसद की पटल से इशारों में पीएम नरेंद्र मोदी की जीत का भविष्यवाणी कर दी थी। लेकिन आज के समाजवादी उनके इस कार्य को महज हंसी में लेकर मायावती के साथ गठबंधन कर भाजपा से मुकाबले के लिए उतर गए। रघराज शाक्य ने कहा कि अखिलेश यादव 2012 के बाद अखिलेश यादव जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं से नहीं मिले और इसी के चलते उन्हें करारी हार उठानी पड़ी। यदि अखिलेश ने शिवपाल यादव की बात मानी होती तो यूपी में सपा अकेले 50 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करती।