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शक्कर मुफ्त बदनाम हुई, डायबिटीज के कारण दूसरे हैं

locationकानपुरPublished: Jul 19, 2018 02:04:56 pm

राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में छह देशों के 300 प्रतिनिधियों की कार्यशाला, शक्कर से तमाम किस्म के नए उत्पाद बनाने पर चर्चा
 

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शक्कर मुफ्त बदनाम हुई, डायबिटीज के कारण दूसरे हैं

कानपुर. दुनिया के 120 देशों में दस लाख से ज्यादा लोगों की सेहत पर शोध करने के बाद यह तय हुआ है कि डायबिटीज के लिए सिर्फ शक्कर जिम्मेदार नहीं है। शोध में यह भी स्पष्ट हुआ कि प्रैंकियाज सहित अन्य ग्रंथियों के निष्क्रिय होने के पीछे शक्कर का सेवन कारण नहीं है, बल्कि इंसान की बदलती जीवनशैली और जंक फूड के कारण मधुमेह की बीमारी फैल रही है। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में छह देशों के प्रतिनिधियों के दो दिवसीय सम्मेलन के पहले दिन अर्थ-व्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए शक्कर के नए उत्पादों के अनुसंधान को बताया-समझाया गया।

मधुमेह पीडि़तों पर एक साल किया अध्ययन

इंटरनेशनल शुगर आर्गेनाइजेशन के विश्लेषक पीटर क्लार्क ने बताया कि भारत, इंग्लैंड, अमेरिका, युगांडा, थाईलैंड, श्रीलंका, नेपाल, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, म्यांमार, रूस सहित दुनिया के 120 देशों में दस लाख से ज्यादा मधुमेह रोगियों का इतिहास खंगाला गया। साथ ही नए रोगियों के खून के नमूनों को लेकर प्रयोगशाला में अध्ययन किया गया। इसके बाद यह स्पष्ट हुआ कि इंसान की सेहत पर शक्कर खराब प्रभाव नहीं डालती है। यह भी कहना गलत है कि शक्कर के ज्यादा इस्तेमाल से हार्मोन संबंधी बीमारी घेर रही है, अथवा लीवर फैटी हो रहा है। पीटर ने बताया कि अध्ययन में सामने आया है कि सुस्त जीवनशैली और जंक फूड पर बढ़ती निर्भरता के कारण डायबिटीज फैल रही है। पीटर ने चिकित्सा वैज्ञानिकों को चैलेंज किया कि शोध के निष्कर्ष पर आपत्ति है तो बहस करने को तैयार हैं।

अर्थ व्यवस्था से शक्कर को जोड़ेंगे

कार्यशाला के पहले दिन देशों की अर्थ व्यवस्था को दुरुस्त बनाने के लिए शक्कर के विविध उत्पादों की ब्रांडिंग करने तथा नए उत्पाद बनाने पर जोर दिया गया। ग्लोबल केन शुगर सर्विसेज के कंसलटेंट अनिल कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि घरेलू मांग से अधिक चीनी का उत्पादन होता है। खपत कम होने से चीनी मिलों की हालत खराब हो रही है, ऐसी स्थिति में फार्मा शुगर, कैंडी शुगर लाइट, डार्क शुगर, डेमरारा शुगर, काफी क्रिस्टल शुगर, ब्रेकफास्ट शुगर आदि बनाकर चीनी मिलों की स्थिति को सुधारना मुमकिन है।

इंडोनेशियाई मॉडल मंदी से उबारने में सक्षम

कार्यशाला में इंडोनेशिया से आए प्रतिनिधि सोटो जो रानू अपने देश के चीनी मिल का मॉडल का प्रस्तुतिकरण दिया। उन्होंने कहा कि भारत में लागू मॉडल काफी पुराना है, यदि इंडोनेशियाई मॉडल से गन्ने की कटाई से लेकर प्रॉसेसिंग तक की जाए तो चीनी मिलों को मंदी से उबारना संभव है। डॉ. जीएससी राव ने सुझाव दिया कि पड़ोसी देश चीन कच्ची चीनी का बड़ा आयातक देश है, ऐसे में बेहतर क्वालिटी की कच्ची चीनी की सप्लाई चीन को करनी चाहिए। डॉ. राव ने आकड़े प्रस्तुत करते हुए समझाया कि भारत में चीनी का अतिरिक्त उत्पादन हो रहा है, इसे खपाने का रास्ता तलाश करने की जरूरत है।

कोल्डड्रिंक की तर्ज पर जल्द मिलेगा गन्ने का जूस

श्रीलंका से आई वैज्ञानिक डॉ आलोका मारलिडा और नताशा ने कहा कि गन्ने के जूस का प्रसंस्करण बेहतर हो तो यह लोगों के लिए खासा फायदेमंद है। अब ऐसी तकनीक विकसित हो चुकी है कि गन्ने का जूस दो महीने या तीन महीने तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसे बेहतर पैंकिंग के साथ बाजार में उपलब्ध कराया जाएगा। युगांडा के प्रतिनिधि फरहान नाखुदा ने कहा कि युगांडा में प्रति व्यक्ति चीनी की खपत 9.5 किलोग्राम प्रति वर्ष है। जो 2021 में बढक़र 12.5 किलोग्राम हो जाएगी। थाईलैंड के प्रतिनिधि वरिक श्रीरत्ना ने चीनी मिलों के बगास से लो कैलोरी स्वीटनर,एंटीऑक्सीडेंट और हेल्थ उत्पाद बनाए जाने की जरूरत बताई।
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