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Navratri 2019 : घाटमपुर में विराजमान हैं सृष्टि की आदि स्वरूपा मां कुष्मांडा

locationकानपुरPublished: Sep 29, 2019 12:38:51 am

Submitted by:

Vinod Nigam

नवरात्रि पर्व पर भक्तों का लगता है तांता, दर्शन करने मात्र से दूर हो जाते हैं दुख-दर्द।

Navratri 2019 : घाटमपुर में विराजमान हैं सृष्टि की आदि स्वरूपा मां कुष्मांडा

Navratri 2019 : घाटमपुर में विराजमान हैं सृष्टि की आदि स्वरूपा मां कुष्मांडा

कानपुर। शरदीय नवरात्रि के पावन पर्व पर हम आपको मां दुर्गा के चैथे स्वरूप मां कूष्मांडा से रूबरू कराने जा रहे हैं, जिनकी सारी दुनिया में पूजा होती है। ये मंदिर सागर-कानपुर के बीच स्थित घाटमपुर में है। पिंड स्वरूप में लेटी मां कुष्मांडा से लगातार पानी रिसता रहता है और इस जल को पीने से कई तरह की रोग दूर हो जाती हैं। मंदिर के पुजारी परशुराम दुबे बताते हैं, जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था। चारों ओर अंधकार था तभी इन्हीं देवी ने अपनी हंसी द्वारा ब्रह्माण्ड की रचना की थी इसी कारण यह सृष्टि की आदि स्वरूपा आदि शक्ति मानी जाती हैं।

मंदिर का इतिहास
मां कूष्मांडा का यह मंदिर मराठा शैली में बना है और इसमें स्थापित मूर्तियां संभवत दूसरी से दसवीं शताब्दी के मध्य की हैं। पुजारी के मुताबिक झाड़ी में कुड़हा नामक ग्वाले की गाय अपना दूध गिरा देती थी , लगातार यही होता देखकर कुड़हा ने यहां खुदाई कराई तो उसे एक मूर्ति दिखाई पड़ी। काफी खुदाई कराने के पश्चात भी इस मूर्ति का अंत न मिलने पर उसी स्थान पर उसने एक चबूतरे का निर्माण करा दिया। पुजारी ने बताया कि कूष्मांडा देवी के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1890 में कस्बे के चंदीदीन भुर्जी ने कराया था। सितंबर 1988 से मंदिर में मां कूष्मांडा की अखंड ज्योति निरंतर प्रज्ज्वलित हो रही है।

मं दुर्गा का चौथा रूप
पुजारी परशुराम दुबे बताते हैं कि, मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा देवी के रूप में ख्यात है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती है। इस कारण इन्हें कूष्मांडा देवी कहा गया। कुम्हड़े (एक फल) की बलि प्रिय होने के कारण भी इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है। सूर्यमंडल के भीतर निवास करने वाली कूष्मांडा देवी की कांति सूर्य के समान दैदीप्यमान है। मान्यता है कि इन्हीं के तेज से दसों-दिशाएं प्रकाशित होती हैं। आठ भुजाओं के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी कहा जाता है।

विकारों से बचाती हैं मां
पुजारी बताते हैं कि मां के दिव्य स्वरूप के ध्यान में हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सृजन में रत रहकर हम अपने मन को विकारों से बचा सकते हैं और अपने जीवन में हास-परिहास को स्थान दे सकते हैं। मां का ध्यान हमारी सृजन शक्ति को सार्थक कार्यों में लगाता है और हमें तनावमुक्त कर देश, समाज और परिवार के लिए उपयोगी बनाता है। हमें आत्मकल्याण की राह दिखाता है। मां कूष्मांडा का ध्यान हमारी कर्मेंद्रियों व ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर हमें सृजनात्मक कार्यों में संलग्न रहने का संदेश प्रदान करता है।

पिंडी से रिसता है जल
यहां मां कुष्मांडा एक पिंडी के स्वरूप में लेटी हैं, जिससे लगातर जल रिसता रहता है। आज तक वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता नहीं लगा पाए कि ये जल कहां से आता है। मान्यता है कि सूर्योदय से पूर्व स्नान कर 6 माह तक इस जल का प्रयोग किया जाए तो उसकी बीमारी शत प्रतिशत ठीक हो जाएगी। मंदिर परिसर पर स्थित दो तालाब भी हैं। यह तालाब कभी नहीं सुखते हैं। भक्त एक तालाब में स्नान करने के पश्चात दूसरे कुंड से जल लेकर माता को अर्पित करते हैं।

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