ग्राम पंचायत को देश को सबसे छोटी संसद माना जाता है। ग्राम पंचायतों में विकास कार्य कराने के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाये जाते हैं, लेकिन विकास के नाम पर सरकारी धनराशि की बंदरबांट शुरू हो जाती है। जनपद की 640 ग्राम पंचायतों के ग्राम प्रधानों के खिलाफ लोगों ने दर्जनों शिकायतें डीपीआरओ, सीडीओ, डीएम से लेकर शासन स्तर पर की, लेकिन जांच के दौरान कौन दोषी पाया गया और क्या कार्रवाई हुई। इसका कोई नतीजा नहीं निकल सका। पंचायती राज कार्यालय में बाबुओं की कारस्तानी के चलते ग्राम प्रधानों के खिलाफ हुई शिकायतों की फाइलें दबकर रह गई हैं।
पंचायती राज कार्यालय में फरियादों की संजीदगी उस समय खुलकर सामने आई थी, जब डीएम के निर्देश पर बीती 1 फरवरी को तत्कालीन अतिरिक्त मजिस्ट्रेट राजीव उपाध्याय ने औचक निरीक्षण किया था। उन्हें ग्राम प्रधानों की शपथ पत्र पर दी गई शिकायतें कूड़े की तरह डंप मिली थी। शिकायतों का रजिस्टर पर भी अंकन नहीं किया गया था। उन्होंने कार्रवाई के लिए रिपोर्ट डीएम को दी थी, लेकिन शिकायतों में क्या प्रगति हुई, इस बारे में अफसर भी अंजान हैं।
इससे खफा सीडीओ ने वित्तीय वर्ष 2015-16 से लेकर वर्ष 2017-18 के दौरान ग्राम प्रधानों की शिकायतों का पुलिंदा तलब किया है, जिससे पंचायती राज विभाग व ग्राम प्रधानों में हड़कंप मचा हुआ है। सीडीओ जोगिंदर सिंह ने बताया कि पिछले तीन वर्ष में ग्राम प्रधानों की शिकायतों में जांच के दौरान कौन दोषी पाया गया एवं उसके विरुद्ध क्या कार्रवाई अमल में लाई गई, इसका ब्योरा डीपीआरओ से मांगा गया है। जांच पत्रावली के समय से प्रस्तुत न करने में किस स्तर पर विलंब हुआ इस बारे में भी जानकारी तलब की गई है।