इस पूरी प्रक्रिया में सबसे अहम रोल कैमरे का होगा, जो फोटो क्लिक करके फौरन मॉनीटर तक पहुंचा देगा. वैसे आपको बता दें कि अभी करीब दो महीने पहले लैब मे लास्ट ट्रायल किया गया था जो कि पूरी तरह से सफल रहा. उस ट्रायल के बाद अब इसको प्रोसेस में लाने की जद्दोजहद तेजी के साथ शुरू कर दी गई है. सिर्फ यही नहीं डिहेंजिंग मेथर्ड का पेटेंट भी फाइल किया जा चुका है.
इस प्रोजेक्ट से जुड़े रिसर्च स्कॉलर हिमांशु कुमार ने बताया कि लैब लेवल पर कई बार ट्रायल किया जा चुका है. बीते डेढ़ साल से प्रो केएस वेंकटेश व प्रो सुमाना गुप्ता के साथ पीएचडी स्कॉलर सौमित भïट्टाचार्य व हिमांशु ने करीब डेढ़ साल पहले इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया था. इस मेथड में बेस्ट क्वालिटी का एक कैमरा, प्रोसेसिंग यूनिट के अलावा एक मॉनीटर का इस्तेमाल होता है. कैमरा जैसे ही इमेज क्लिक करेगा, उसकी प्रॉसेसिंग चंद सेकेंड में ही पूरी हो जाएगी और मानीटर पर ट्रैक की क्लियरेंस शो करने लगेगी.
अभी करीब दो महीने पहले लैब मे लास्ट ट्रायल किया गया था जो कि पूरी तरह से सफल रहा. उस ट्रायल के बाद अब इसको प्रोसेस में लाने की जद्दोजहद तेजी के साथ शुरू कर दी गई है. सिर्फ यही नहीं डिहेंजिंग मेथर्ड का पेटेंट भी फाइल किया जा चुका है. रोड व रेल ट्रैक दोनों ही जगह पर इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल एयरोप्लेन की फील्ड में भी कर सकेंगे. आने वाले समय में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल एंड्रायड फोन पर भी कर सकेंगे. इसको लेकर ये भी बताया गया है कि विजिबिलटी की जानकारी मानीटर पर मिल जाएगी.