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अब बिना सिंचाई खेतों में होगी गेहूं और जौं की फसल, सीएसए विशेषज्ञों ने किया शोध

locationकानपुरPublished: Feb 12, 2021 07:07:41 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

-चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने शोध किया हैं।
-प्रोटीन की मात्रा 12.7 फीसद है। अन्य प्रजातियों में 10 फीसद ही प्रोटीन रहती थी।

अब बिना सिंचाई खेतों में होगी गेहूं और जौं की फसल, सीएसए वैज्ञानिकों ने किया शोध

अब बिना सिंचाई खेतों में होगी गेहूं और जौं की फसल, सीएसए वैज्ञानिकों ने किया शोध

पत्रिका न्यूज नेटवर्क

कानपुर-खेतों में गेहूं की फसल तैयार करने में सिंचाई की समस्या से अब किसानों को निजात मिल जाएगी। अब किसान बिना पानी के ही खेतों में गेहूं और जौं की पैदावार कर सकते हैं। अब बिना पानी के किसानों के सामने फसल पैदावार की समस्या नहीं आएगी। इसके लिए चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने शोध किया हैं। जिसके बाद उन्होंने गेहूं और जौ की ऐसी प्रजाति विकसित की है, जिसमें कोई भी पानी लगाना नहीं लगाना पड़ेगा। सिर्फ खेतों में पलेवा के लिए हल्का पानी खेतों में लगाना होगा। अगर खेत की मिट्टी में नमी है तो वो भी नहीं लगाना होगा और समयानुसार खेतों में फसल लहलहाएगी।
इन वैज्ञानिकों की रही अहम भूमिका

ये प्रजातियां डॉ. एचजी प्रकाश, डॉ. सोमवीर सिंह, डॉ. पीके गुप्ता, डॉ. पीएन अवस्थी, डॉ. एलपी तिवारी, डॉ. विजय यादव, डॉ. वाईपी सिंह ने विकसित की हैं। जिस पर कुलपति डॉ. डीआर सिंह ने सभी कृषि विशेषज्ञों को बधाई दी है। इन प्रजातियों की प्रदेश के 10 कृषि संस्थानों और कृषि केंद्रों में परीक्षण हो चुका है। बताया गया कि ये दोनों प्रजातियां खासतौर पर सूखाग्रस्त क्षेत्रों के लिए तैयार की गई हैं। इसके साथ ही जौ की एक अन्य प्रजाति ऊसर मिट्टी के लिए विकसित की है। बताया गया कि विकसित की गई इन तीनों प्रजातियों को राज्य स्तरीय बीज विमोचन समिति ने हरी झंडी दे दी है। जल्द ही ये प्रजातियां खेतों में नजर आएंगी। इनमें गेहूं की प्रजाति का नाम के-1616 और जौ की प्रजाति का नाम केबी-1425 और केबी-1506 है। केबी-1425 ऊसर भूमि के लिए है।
ये है इनकी खासियत

डॉ. सोमवीर सिंह ने बताया के-1616 पूरी तरह से रोग प्रतिरोधक है। इसमें कीटों का हमला भी कम रहता है। यह 120 से 125 दिन में पककर तैयार हो जाती है। बोने का समय 25 अक्टूबर से 10 नवंबर है। साथ ही पीला रतुआ और काला रतुआ, पत्तियों में पीलापन की समस्या नहीं रहती है। वहीं डॉ. पीके गुप्ता ने बताया कि विश्वविद्यालय इससे पहले जौ की 32 प्रजातियां विकसित कर चुका है। बिना पानी के उगने वाली प्रजाति करीब 20 साल बाद तैयार हुई है। एक हेक्टर क्षेत्र में 33 क्विंटल उपज देती है। बोने का समय 10 से 25 नवंबर है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 12.7 फीसद है। अन्य प्रजातियों में 10 फीसद ही प्रोटीन रहती थी। केबी 1506 की प्रजाति एक हेक्टेयर में 28 क्विंटल की पैदावार देती है।

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