कानपुर

परेड के अद्भुत राम और अनंत लीला, मंचन देख अंग्रेज कलेक्टर भी रोया

1876 में रखी गई थी परेड ग्राउंड में रामलीला का नींव, अंग्रेज सरकार ने दी अपनी जमीन, मथुरा के राम को देखने के लिए उमड़ती है दर्शकों की भीड़
 

कानपुरOct 15, 2018 / 01:13 am

Vinod Nigam

परेड के अद्भुत राम और अनंत लीला, मंचन देख अंग्रेज कलेक्टर भी रोया

कानपुर। इस शहर को धर्म, क्रांति और अर्थ की नगरी के नाम से जाना जाता है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम के वनवास दिए जाने के बाद मां सीता बिठूर में कई साल बिताए और यहीं पर लव-कुश को जन्म दिया। उस वक्त की कई निशानियां आज भी यहां ज्यों कि त्यों मौजूद है। वाल्यमीकि जी ने रामायण की रचना यहीं पर की और नवरात्रि पर्व के अवसर पर करीब जिलेभर में सौ से ज्यादा स्थानों पर रामलीला का मंचन चल रहा है। लेकिन परेड की अद्भुत है। 142 साल पहले परेड की ऐतिहासिक रामलीला में मर्यादा पुरूषोत्तम के वनवास और राजा दशरथ की मृत्यु का करुण प्रसंग देखकर अंग्रेज कलेक्टर की आंखे बरबस ही ‘नम’ हो गयीं थीं और उसने आदेश जारी कर मंचन को कभी नहीं रोकने के दस्तावेज पर हस्ताक्षर कर दिए थे।

परेड की रामलीला का इतिहास
मोबाइल फोन और इंटरनेट के दौर में ‘रामलीला’ के प्रति युवाओं का आकर्षण भले ही कम हुआ हो मगर सदियों पहले कानपुर के परेड ग्राउंड की ऐतिहासिक रामलीला आज भी लोगों के दिल में बसी है और जिसे देखने के लिए हरदिन हजारों की संख्या में भगत परेड ग्राउंड पहुंचते हैं। सोसाइटी के पदाधिकारी रमेश अग्रवाल बताते हैं, कि परेड रामलीला आज से करीब 142 साल (वर्ष 1876) पहले शुरू हुई थी। इस मैदान में ब्रिटिश सैनिकों की परेड़ हुआ करती थी, जिसके कारण इसका नाम परेड मैदान पड़ गया। सोसाइटी के पदाधिकारी रमेश अग्रवाल बताते हैं 1876 में सबसे पहले पंडित प्रयाग नारायण तिवारी, लाला शिव प्रसाद खत्री और रायबहादुर विशंभरनाथ अग्रवाल ने रामलीला की अनुमति मांगी थी। अंग्रेजों द्वारा काफी सोचने-समझने के बाद इन्हें रामलीला की अनुमति दी गई थी। 1877 में जब पहली परेड रामलीला हुई, इसे देखने अंग्रेज भी आए थे। अंग्रेजों को रामलीला का मंचन इतना अच्छा लगा कि उन्होंने हर साल रामलीला आयोजन की अनुमति प्रदान कर दी।

मथुरा के कलाकार निभाते हैं रोल
परेड की रामलीला मंचन में सारे किरदार पुरूष ही निभाते हैं। मथुरा के कलाकार 142 सालों से यहां आकर अपनी लीला से लोगों को मंत्रमुग्ध करते हैं। आयोजनकर्ताओं ने रामलीला मंचन के लिए मथुरा की 40 सदस्यीय टोली बुलवाई है। भगवान श्रीराम का किरदार अदा कर रहे विष्णु चर्तुवेदी कहते हैं कि 7 साल की उम्र से हम रामलीला मंचन में भाग ले रहे हैं। लेकिन परेड की रामलीला में जो सद्भाव और आपसी भाईचारे की झलख देखकर हम कह सकते हैं कि कानपुर में ही रामराज्य है। विष्णु ने बताया कि लक्ष्मण का किरदार हमारे परिवार के सौरभ निभाते हैं। विष्णु कहते हैं कि रामलीला बहुत कुछ सिखाती है और इंसान को अच्छे और बुरे कामों में के बारे में जागरूक भी करती है।

पुरूष कलाकार करते हैं मंचन
इस रामलीला में किरदार निभाने वाले सभी पात्र पुरुष हैं। यही नहीं, सभी कलाकार वृंदावन से आए हैं और काफी सालों से रामलीला कर रहे हैं। उन्होंने राम की लीलाओं का ऐसा सजीव मंचन किया कि दर्शकों को लगा, वह परेड ग्राउंड में न होकर अयोध्या में हैं। मां सीता का किरदार अदा करने वाले राजू चर्तुवेदी कहते हैं कि वो 3 साल से परेड रामलीला मैदान में आ रहे हैं और मां सीता का रोल निभा रहे हैं। राजू कहते हैं कि इसके लिए हमें बहुत तैयारी करनी होती है। वहीं रावण का किरदार निभाने वाले शिवरतन कहते हैं कि परेड रामलीला में जब हम दहाड़ते हैं तो दर्शक अंगुली मुंह में दबा लेते हैं और कभी-कभी हम उन्हें हंसाते भी हैं।

एक ही परिवार के कलाकार
परेड रामलीला सोसाइटी के प्रचार प्रकाशन संयोजक महेंद्र कुमार शुक्ल ने बताया कि हमारी रामलीला में मथुरा से कलाकार आते हैं। पंडित महेशदत्त चतुर्वेदी व्यास हैं और कलाकार भी उन्हीं के परिवार और रिश्तेदारी में हैं। जब कलाकार यहां आते हैं तो मंचन तक व्यक्तिगत नाम नहीं पुकारते। जो सदस्य जिस भूमिका को निभा रहा होता है, वही नाम लिया जाता है। साथ ही वह मेस्टन रोड स्थित भवन से बाहर नहीं निकलते। भवन से सीधे मंचन स्थल ही पहुंचते हैं। बताया कि कानपुर में रामलीला की शुरुआत कब से हुई इसका सही सही उल्लेख नहीं मिलता, मान्यताओं के अनुसार सन 1531 में गोस्वामी तुलसी दास ने श्री रामचरित मानस की रचना की थी। सजेंडी के राजा हिन्दू सिंह ने जाजमऊ में पहला रामलीला मंचन की नींव रखी थी।

1876 में मिला रामलीला को बड़ा मंच
अनवरगंज में होने वाली छोटी सी रामलीला की जिम्मेदारी महाराज प्रयाग नारायण तिवारी ने संभाली। राय बहादुर विशम्भरनाथ अग्रवाल, बाबू विक्रमाजीत सिंह आदि सहयोगियों के साथ सन् 1876 में परेड रामलीला सोसाइटी गठित कर इसका मंचन परेड के मैदान में शुरू कराया। धीरे-धीरे इस रामलीला ने विशिष्ट पहचान बना ली। पांच वर्ष तक कमेटी के अध्यक्ष रहने के बाद प्रयाग नारायण तिवारी ने पंचायती व्यवस्था कर इसे सार्वजनिक रूप प्रदान किया और पदमुक्त हो गए। उनके द्वारा दिए गए रामलीला के विभिन्न मुखौटे, चांदी का सिंहासन और हनुमान का मुकुट आज भी परेड रामलीला सोसाइटी में हैं। इन्हें हर वर्ष रामलीला के समय निकाला जाता है।

 
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