गांव के बुजुर्ग शरद शर्मा बताते हैं कि दो दिन से हो रही खुदाई में यह मूर्तियां निकली हैं। खम्हैल देवी का यह स्थल कितना प्राचीन है, इसकी किसी को सही जानकारी नहीं है। प्राचीन समय की मान्यता के मुताबिक राजा जयचंद्र के समय उनके गुरु खंभेद ने यह गांव बसाया था। खंहैल देवी का यह धार्मिक स्थल बहुत प्राचीन है। नवरात्रि व अन्य विशेष अवसरों सहित प्रायः गांव के लोग यहां पूजन अर्चना करते हैं। माता सभी पर कृपा बरसाती हैं। ग्रामीणों के मुताबिक खम्हैल देवी के नाम से ही इस गांव का नाम खम्हैला पड़ा। गांव के उमाशंकर तिवारी के चबूतरे पर बने इस स्थल में ग्रामीणों की बड़ी आस्था है। बताया गया कि खम्हैल देवी के सिर का हिस्सा यहां निकला है और शेष धड़ का हिस्सा निटर्रा में स्थापित है।
आज जब इस स्थल पर कुछ पत्थर की मूर्तियों के निकलने की जानकारी हुई तो लोग देखने के लिए उमड़ पड़े। वहीं ग्रामीणों ने निकली मूर्तियों की पूजा अर्चना शुरू की। वहीं मान्यता के अनुसार ग्रामीण अभी भी उस स्थल की खुदाई करा रहे हैं। उनका मानना है अभी कुछ प्राचीन मूर्तियां और निकलेगी। गांव के बुजुर्ग जगदीश नारायण मिश्रा ने बताया कि प्राचीन धारणा के अनुसार राजा जयचंद्र के समय की बात है। उस समय वे अपनी सेना के साथ यहां रुके थे। राजा के कुल पुरोहित खंभेद ने इस स्थल को बनवाया था। उसी के नाम पर गांव का नाम खम्हैला पड़ गया। आस्था के मुताबिक गांव के लोग आज भी खम्हैल देवी के दर्शन के बाद नए कार्य की शुरुवात करते हैं।