एक समय कानपुर में करीब 400 पॉलिथीन बनाने वाली फैक्ट्रियां थीं। इनमें 20 से 25 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ था। करीब 500 थोक व्यापारी थे और दो हजार से ज्यादा फुटकर व्यापारी। काम सभी का छिना, इनमें करीब एक चौथाई लोगों को दोबारा रोजगार नहीं मिला। उत्तर प्रदेश प्लास्टिक मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरीश ईसरानी बताते हैं कि पॉलिथीन और प्लास्टिक से बने उत्पादों पर पाबंदी भले ही समय की मांग और पर्यावरण प्रदूषण से मुक्ति का रास्ता हो, लेकिन रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था न बन पाने की वजह से बेरोजगारी बढ़ी है। इतनी बड़ी संख्या में सभी सरकारी योजनाओं को मिला दें तो भी एक वर्ष में रोजगार के इतने साधन पैदा नहीं हुए।
सचिन गुप्ता एक साल पहले प्लास्टिक के बने आइटम के थोक विक्रेता थे। अक्तूबर 2017 में पाबंदी लगी तो महीने भर के भीतर काम समेटना पड़ा। इनके अधीन काम करने वाले आधा दर्जन फुटकर विक्रेताओं का भी काम बंद हुआ। चार हॉकर और चार मजदूर बेरोजगार हो गए। खुद नए रोजगार को जमाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। एक्सप्रेस रोड पर इखलाक मिर्जा का प्लास्टिक के दोने पत्तल व अन्य आइटम का बड़ा कारोबार था। पाबंदी के बाद रोजगार चौपट हो गया। करीब पांच लाख रुपये का नुकसान अलग से हुआ। एक्सप्रेस रोड, घंटाघर व नयागंज में ऐसे लोगों की संख्या सौ से ज्यादा है।
दादा नगर इंडस्ट्रियल कोआपरेटिव इस्टेट अध्यक्ष विजय कपूर बताते हैं कि इसके पीछे कोई एक कारण नहीं है। कहीं आर्थिक सुधारों की वजह से औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियां पटरी पर नहीं लौटीं, तो कहीं पर्यावरण के मानकों पर खरा न उतरने की वजह से औद्योगिक इकाइयों को झटका लगा। जीएसटी, नोटबंदी, डिजिटलाइजेशन की वजह से लोगों को कारोबार करने में परेशानी आ रही है।