आज भी मजबूत है संगठन
प्रदेश की सत्ता से कांग्रेस लगभग तीन दशक से बाहर है लेकिन, कांग्रेस का इस शहर का गहरा नाता है। क्रांतिकारियों की इस धरती से कांग्रेस की यादें स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़ी हैं। सिलसिला अब भी टूटा नहीं है। चुनावों में भले ही पार्टी को लगातार हार मिल रही हो लेकिन, कानपुर के संगठन की स्थिति आसपास के अन्य क्षेत्रों से बेहतर मानी जाती है। कांग्रेस उपुचनाव के साथ 2022 के चुनाव की तैयारी कर रही है। यूपी की बागडोर प्रियंका गांधी को दी गई है। यूपी में सेफीफाइनल के तौर पर उपचुनाव को देख रही प्रियंका ने टिकट युवाओं को थमाया है। पूर्व विधायक अजय कपूर की करीबी करिश्मा ठाकुर ब्राम्हण बाहूल्य सीट पर भाजपा को सीधे चुनौती दे रही हैं।
इस वजह से मिला टिकट
कांग्रेस ने गोविंदनगर सीट से युवा चेहरे करिश्मा ठाकुर पर दांव लगाया है। करिश्मा ने वर्ष 2103 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कालेज में दाखिला लिया। यहीं से उनके राजनीतिक करियर का शुभारंभ हुआ। एनएसयूआई से जुडने के बाद प्रथम वर्ष में ही उन्होंने दिल्ली छात्रसंघ का चुनाव लड़ा और पहली बार में अच्छे वोटों से जीत हासिल कर महासचिव बनीं। वर्तमान में वह एआईसीसी सदस्य और एनएसयूआई की राष्ट्रीय महासचिव हैं। करिश्मा ठाकुर को प्रियंका गांधी का करीबी बताया जा रहा है और उनके सिर पर पूर्व विधायक अजय कपूर का हाथ भी रखा हुआ है।
क्या है जातिगत आंकड़े
गोविंदनगर में करीब 3 लाख 49 हजार 3 सौ 42 मतदाता हैं। जिसमें 1 लाख 60 हजार ब्राम्हण वोटर्स हैं। अनुसूचित जाति 50 हजार, पिछड़े वर्ग के 41 हजार, 21 हजार पंजाबी, 19 हजार, मुस्लिम मतदाता हैं। जबकि क्षत्रिय 13 हजार, वैष्य 9 हजार, सिंधी 14 हजार, अन्य 12 हजार 3 सौ 42 मतदाता हैं। ऐसे में सभी दलों की निगाहें यहां के सबसे अधिक मतदाता 1 लाख 60 हजार ब्राम्हण पर है। बसपा ने ब्राम्हण चेहरा देवीप्रसाद को चुनाव के मैदान में उतार दिया है तो भाजपा भी इसी समाज के नेता को कमल का सिंबल दे सकती है।
कांग्रेस का रहा है दबदबा
किसी समय एशिया की सबसे बड़ी विधानसभा के रूप में चर्चित गोविंद नगर विधानसभा में 2017 के चुनाव में भाजपा के सत्यदेव पचैरी विधायक चुने गए थे। गोविन्द नगर विधान सभा हमेशा ही कानपुर की सबसे महत्वपूर्ण विधान सभा रही है। 1967 से लेकर 2017 तक के चुनाव में 1967, 1969, 1980, 1985, 2000 और 2007 में विधानसभा में कांग्रेस का कब्जा रहा, जबकि 1989, 1991, 1993, 1996 2012 और 2017 के चुनाव में इस सीट से भाजपा काबिज रही। सन 1974 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया और 1970 में जनता पार्टी ने यहाँ से चुनाव जीता था।
सभी सीटों पर जीतेगे थे कांग्रेसी
पार्टी नेताओं के मुताबिक, आजादी के बाद हुए पहले चुनाव में ही कांग्रेस कई दिग्गज नेता विधायक चुने गए थे। जबकि मजदूर नेता हरिहरनाथ शास्त्री सांसद बने। 1977 में इमरजेंसी के बाद कांग्रेस लगभग साफ हो गई। 1980 में जब इंदिरा गांधी के नेतृत्व में सरकार बनी तो प्रदेश में भी 306 विधानसभा सीटें कांग्रेस ने जीतीं। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने सभी दलों को साफ कर दिया। कानपुर की अधिकांश विधानसभा सीट जीतने के साथ ही सांसद नरेशचंद चतुर्वेदी बने।
तिलकहाॅल में पहला अधिवेशन
पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व विधायक भूधर नारायण मिश्र बताते हैं कि 1925 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन उसी स्थान पर हुआ था, जहां अब तिलक नगर बसा है। उसमें शामिल होने के लिए महात्मा गांधी खुद आए थे। कांग्रेस की पहली महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष सरोजिनी नायडू ने उस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। गणेश शंकर विद्यार्थी को 1929 में उप्र. कांग्रेस कमेटी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उनके बाद केंद्रीय मंत्री रहे श्रीप्रकाश जायसवाल 2001 में प्रदेश अध्यक्ष बने और 2003 तक रहे।