क्रांतिकारियों ने किले में बैठकर रणनीति बनाई और गर्म दल के रणबांकुरे तात्या टोपे ने 18 तोपों व करीब छह हजार सिपाहियों के साथ शाहपुर की रानी के किले से जंग का ऐलान कर दिया। फिर मौका पातेे ही तात्या टोपे व शाहपुर की रानी की फौज ने विढ़म कारथू की अंग्रेजी फौज को भौंती व सचेंडी तक खदेड़कर रख दिया और यही से कानुपर को आजाद कराने की शुरुआत की गयी थी। उस दौरान जमीदार हरी सिंंह अंग्रेजों के गुप्तचर बने हुए थे। गदर का कहर कुछ थमा हुआ था। तभी हरी सिंह ने अपना असली रूप दिखा दिया और उनकी गद्दारी के चलते अंग्रेजों ने रानी की फौज के सैकड़ों जवानों को मौत के घाट उतार दिया।
अंग्रेजी सेना से घिरा देख अंग्रेजों के हाथ आने से पहले ही रानी ने तलवार से खुद की गर्दन उड़ा दी और फिर अंग्रेजी फौज ने उनके महल को ध्वस्त कर दिया। फिर किले के नीचे बनी सराफा की 92 दुकानें लूट ली थीं। इसके बाद अंग्रेजों ने रानी की चार बीघे की कोतवाली नीलाम करते हुए पूर्णतया कब्जा कर लिया था। किले को ध्वस्त करने के बाद उसके अवशेष भाग में अंग्रेजों ने तहसील व कोतवाली बना ली थी। बाद में गद्दार जमींदार को इनाम के रूप में जागीर सौंपी थी लेकिन अभी वह कहर थमा नहीं था। सन 1858 में अंग्रेज अफसर हैवलाक ने इस किले में एक माह तक अदालत लगाई और कई वीर सपूतों को फांसी केे फंदे पर लटका दिया था। जिसकी सिसकियां आज भी उस ध्वस्त किले के अवशेष सुनाते हैं।