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शाहपुर के रानी के किले में बनी ऐसी बनीं रणनीति की कानपुर हो गया आज़ाद

locationकानपुरPublished: Aug 13, 2018 02:34:22 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

तात्या टोपे ने रानी के साथ इस किले में बनाई रणनीति फिर भौंती सचेंडी तक खदेडकर कानपुर को आज़ाद कराने की पहल की थी।

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इस किले में बनी थी अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति फिर कानपुर को मुक्त कराने की हुई थी शुरुवात

कानपुर देहात. 1857 की पहली स्वतंत्रता की क्रांति थी। जिले के चप्पे चप्पे पर अंग्रेजों का कहर बरस रहा था। कई रियासतदारों के किलों पर कब्जा हो चुका था लेकिन अकबरपुर में शाहपुर की रानी का किला एकमात्र था, जहां से क्रान्तकारियों की रणनीति तैयार हुई। तात्या टोपे ने इस जंग में अहम भागीदारी निभाते हुए वीर सपूतों के साथ शाहपुर की रानी की अगुवाई में 16 व 17 अगस्त को अंग्रेजों से मोर्चा लिया और जंग छेड़ दी। भारी फौज व बारूद के साथ कालपी रोड पर अंग्रेजी सेना को खदेड़ने के बाद कानपुर को मुक्त कराने की पहल की। इस तरह चपरघटा से लेकर अकबरपुर तक कब्जा कर लिया था।
तोपों और सैनिकों के साथ खदेड़ दिया था
क्रांतिकारियों ने किले में बैठकर रणनीति बनाई और गर्म दल के रणबांकुरे तात्या टोपे ने 18 तोपों व करीब छह हजार सिपाहियों के साथ शाहपुर की रानी के किले से जंग का ऐलान कर दिया। फिर मौका पातेे ही तात्या टोपे व शाहपुर की रानी की फौज ने विढ़म कारथू की अंग्रेजी फौज को भौंती व सचेंडी तक खदेड़कर रख दिया और यही से कानुपर को आजाद कराने की शुरुआत की गयी थी। उस दौरान जमीदार हरी सिंंह अंग्रेजों के गुप्तचर बने हुए थे। गदर का कहर कुछ थमा हुआ था। तभी हरी सिंह ने अपना असली रूप दिखा दिया और उनकी गद्दारी के चलते अंग्रेजों ने रानी की फौज के सैकड़ों जवानों को मौत के घाट उतार दिया।
शाहपुर की रानी ने तलवार से खुद काटी गर्दन
अंग्रेजी सेना से घिरा देख अंग्रेजों के हाथ आने से पहले ही रानी ने तलवार से खुद की गर्दन उड़ा दी और फिर अंग्रेजी फौज ने उनके महल को ध्वस्त कर दिया। फिर किले के नीचे बनी सराफा की 92 दुकानें लूट ली थीं। इसके बाद अंग्रेजों ने रानी की चार बीघे की कोतवाली नीलाम करते हुए पूर्णतया कब्जा कर लिया था। किले को ध्वस्त करने के बाद उसके अवशेष भाग में अंग्रेजों ने तहसील व कोतवाली बना ली थी। बाद में गद्दार जमींदार को इनाम के रूप में जागीर सौंपी थी लेकिन अभी वह कहर थमा नहीं था। सन 1858 में अंग्रेज अफसर हैवलाक ने इस किले में एक माह तक अदालत लगाई और कई वीर सपूतों को फांसी केे फंदे पर लटका दिया था। जिसकी सिसकियां आज भी उस ध्वस्त किले के अवशेष सुनाते हैं।
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