छह माह के अंदर देंनी है रिपोर्ट
कुलदीप सिंह भोगल ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में उन लोगों की जनहित याचिका पर प्रदेश सरकार ने एसआईटी का गठन किया है। अब जरूरत है सिख समाज को एकजुट होकर चलने की। गवाहों और रिपोर्ट दर्ज कराने वाले पीड़ितों को खोजकर टीम से मिलवाने की। तभी दंगा पीड़ितों को उचित मुआवजा और दोषियों पर कार्रवाई हो सकेगी। भोगल ने बताया कि एसआईटी में जिन चार लोगों को शामिल किया गया है, उनमें सेएक सेवानिवृत्त डीजीपी, एक सेवानिवृत्त जज, एक पुलिस अधीक्षक और एक निदेशक अभियोजन हैं। जांच के लिए छह माह का समय दिया गया है।
127 लोगों की गई थी हत्या
श्रीगुरु सिंह सभा लाटूश रोड के प्रधान हरविंदर सिंह लार्ड ने बताया कि शहर के 15 थाना क्षेत्रों में अधिक घटनाएं हुई थी। इसमें सर्वाधिक नौबस्ता में हुई थी। इसके अलावा सबसे कम नजीराबाद में। लार्ड ने बताया, दंगे से जुड़ी शहर की कुल 503 फाइलें है। इनमें से 250 फाइलों की जांच-पड़ताल हो चुकी है। शहर में 127 लोग मारे गए थे। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार ने 5-5 लाख रुपये देने की बात कही थी जो नहीं दिए। मनमोहन सिंह सरकार ने 715 करोड़ रुपये का पैकेज दिया था, उसमें से भी कुछ नहीं मिला है। लार्ड ने कहा एसआईटी के गठन के बाद अब इन सभी 15 थानों में जाकर दोबारा फाइलें खुलवानी हैं।
इंसाफ के लिए जारी है लड़ाई
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद फैले सिख विरोधी दंगों में लगभग पांच हजार निर्दोष सिखों की हत्या की बात कही जाती है। इस घटना के लगभग 35 साल बीत जाने के बाद सिखों को न्याय मिला है। हालांकि कोर्ट ने सज्जन कुमार को दोषी मानते हुए सजा सुनाई हैं, जबकि सिख समाज के लोग कांग्रेस के नेता जगदीश टाइटलर के अल्य अन्य के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। सिखों का कहना है कि एक नवंबर को कानपुर में सिखों का कत्लेआम किया गया था। लेकिन इस मामले में बहुत दिनों तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई। बाद में जब एफआईआर दर्ज की गई तो स्टेटस रिपोर्ट में कोई पुख्ता सबूत न होने की बात कहकर केस खत्म कर दिया गया। सिखों का कहना है कि यह शर्मनाक है कि 127 लोगों की हत्या हो गई और पुलिस को कोई सबूत नहीं मिलता।