भारतीय रिजर्व बैंक ने कालेधन और अघोषित लेनदेन पर नजर रखने के लिए धन के ऑनलाइन ट्रांसफर के नियमों को बदलने की तैयारी की है। ऑनलाइन बैंकिंग के बाद अवैध लेनदेन के मामलों में तेजी आई है। अकेले कानपुर रीजन में एक अप्रैल से तीस जुलाई तक 650 करोड़ रुपए से ज्यादा का ऑनलाइन ट्रांसफर संदेह के घेरे में है। पिछले पांच साल में ऑनलाइन या नेटबैंकिंग के ग्राहकों की संख्या बारह गुना बढ़ गई है। इस संख्या में बढ़ोतरी लगातार जारी है।
बैंकों को फंड ट्रांसफर करने से पहले खाताधारकों से मंजूरी लेनी होगी। इसके बाद ही पैसा उनके खाते में ट्रांसफर किया जाएगा। अभी तक कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे के खाते में रकम भेज सकता था, रकम प्राप्त करने वाला नेटबैंकिंग नहीं करता, तब भी रकम भेजने वाला उसे रजिस्टर कर लेता था। उस व्यक्ति की सहमति के बिना पैसा ट्रांसफर कर सकता था, पर अब ऐसा नहीं हो पाएगा।
रिजर्व बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई तो रकम ट्रांसफर होने में लगने वाला समय बढ़ सकता है। अभी नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर यानी नेफ्ट, रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट यानी आरटीजीएस, इमीडिएट पेमेंट सर्विस यानी आईएमपीएस के जरिए फंड ट्रांसफर होता है।
बैंक ऑफ बड़ौदा के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस प्रस्ताव को लागू करने से पहले प्रोसेस से जुड़ी टेक्नोलॉजी में बदलाव करना होंगे। इसमें कुछ समय लग सकता है। गलती से या जानबूझकर किसी के खाते में फंड ट्रांसफर नहीं होगा। प्रोसेस से जुड़ी टेक्नोलॉजी में करने पड़ेंगे बदलाव आरटीजीएस के जरिए अधिकतम दो लाख रुपए ट्रांसफर किए जा सकते हैं और अधिकतम एक घंटा फंड ट्रांसफर में लगता है। आईएमपीएस का इस्तेमाल ज्यादातर छोटे भुगतान के लिए किया जाता है और सबसे लोकप्रिय सिस्टम है।