जवाब नहीं दे सके अफसर
जांच के दौरान केंद्रीय कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक रवींद्र कुमार और राममनोहर लोहिया कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक मनोज रंजन से जब खर्च की बावत सवाल पूछे गए तो वे सही जवाब नहीं दे सके। जांच अधिकारियों ने बताया कि राममनोहर लोहिया कार्यशाला और केंद्रीय कार्यशाला में २५०-२५० बसों की बॉडी तैयार की गई थी। इसमें मानकों से खिलवाड़ किया गया और प्रति बॉडी ५० से ७५ हजार का खेल किया गया है।
जांच के दौरान केंद्रीय कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक रवींद्र कुमार और राममनोहर लोहिया कार्यशाला के प्रधान प्रबंधक मनोज रंजन से जब खर्च की बावत सवाल पूछे गए तो वे सही जवाब नहीं दे सके। जांच अधिकारियों ने बताया कि राममनोहर लोहिया कार्यशाला और केंद्रीय कार्यशाला में २५०-२५० बसों की बॉडी तैयार की गई थी। इसमें मानकों से खिलवाड़ किया गया और प्रति बॉडी ५० से ७५ हजार का खेल किया गया है।
अधिकृत कंपनियों से खरीदारी नहीं
बसों के निर्माण में स्थानीय स्तर पर सामान की खरीदारी और करोड़ों रुपए मेंटीनेंस के मद में खर्च किये जाने पर सवाल उठ रहे है। रोडवेज प्रबंधन ने बसों में लगने वाले ट्यूबलर पाइप के लिए दो कंपनियां अधिकृत की थीं। इसमें एक कंपनी ब्लैक लिस्टेड कर दी गई थी, जबकि दूसरी कंपनी से सामान खरीदा ही नहीं गया और स्थानीय स्तर पर खरीदारी करके बड़ा खेल किया गया।
बसों के निर्माण में स्थानीय स्तर पर सामान की खरीदारी और करोड़ों रुपए मेंटीनेंस के मद में खर्च किये जाने पर सवाल उठ रहे है। रोडवेज प्रबंधन ने बसों में लगने वाले ट्यूबलर पाइप के लिए दो कंपनियां अधिकृत की थीं। इसमें एक कंपनी ब्लैक लिस्टेड कर दी गई थी, जबकि दूसरी कंपनी से सामान खरीदा ही नहीं गया और स्थानीय स्तर पर खरीदारी करके बड़ा खेल किया गया।
साढ़े सात लाख रुपए प्रति बस बॉडी
५०० बसों की बॉडी के लिए रोडवेज प्रबंधन ने केंद्रीय कार्यशाला को प्रति बस साढ़े सात लाख रुपए दिए थे। जबकि निजी सेक्टर को ५०० बसों के लिए ही ११ लाख रुपए प्रति बस का भुगतान किया गया। केंद्रीय कार्यशाला में पैसे इसलिए कम दिए गए, क्योंकि यहां कर्मचारी और निर्माण उपकरण पहले से उपलब्ध हैं, इसलिए यहां लागत कम आती है। जबकि निजी सेक्टर को अलग से व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं। वैसे भी कार्यशालाओं में निर्माण की लागत साढ़े छह लाख ही आती है, इसलिए बजट सही था।
५०० बसों की बॉडी के लिए रोडवेज प्रबंधन ने केंद्रीय कार्यशाला को प्रति बस साढ़े सात लाख रुपए दिए थे। जबकि निजी सेक्टर को ५०० बसों के लिए ही ११ लाख रुपए प्रति बस का भुगतान किया गया। केंद्रीय कार्यशाला में पैसे इसलिए कम दिए गए, क्योंकि यहां कर्मचारी और निर्माण उपकरण पहले से उपलब्ध हैं, इसलिए यहां लागत कम आती है। जबकि निजी सेक्टर को अलग से व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं। वैसे भी कार्यशालाओं में निर्माण की लागत साढ़े छह लाख ही आती है, इसलिए बजट सही था।