कानपुर

ओडिएफ मुक्त जिले की खुली पोल, खुले में शौच करने को मजबूर हैं लोग

ओडिएफ मुक्त जिले की खुली पोल, खुले में शौच करने को मजबुर हैं लोग

कानपुरOct 13, 2017 / 03:18 pm

Ruchi Sharma

kanpur

विनोद निगम
कानपुर. ब्यूरोकेट्स अपनी कुर्सी बचाने और सरकार को खुश करने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ से वाहवाही लूटने के चलते नगर प्रशासन ने कानपुर को ओडीएफ मुक्त घोषित कर दिया। सीएम ने भी बिना जांच कराए नगर आयुक्त को राजधानी बुलाकर पुरुस्कार देकर नवाज दिया। लेकिन नगर निगम अॉफिस से कुछ दूरी पर स्थित पांच हजार आबादी वाले वार्ड नंबर 15 की दलित बस्ती में आज भी सैकड़ों लोग भोर पहर लोटा लेकर खुले में शौच के लिए मजबूर हैं। यहां के लोगों का कहना है कि सरकारी बाबुओं के चलते अभी तक उनको टॉयलेट नहीं मिले। इसी के चलते रेलवे लाइन, नहर और जंगलों में शौचक्रिया के लिए जाते हैं।

करीब तीन सौ घरों में नही बने टॉयलेट
कुछ दिन पहले नगर निगम विभाग ने शहर को खुले से शौच मुक्त घोषित कर रिपोर्ट को शासन के पास भेज दी थी। सीएम ने नगर प्रशासन के काम से प्रभावित होकर वर्तमान नगर आयुक्त अविनाश सिंह को पुरुस्कार देकर नवाजा था, लेकिन आज भी ऐसे दर्जनों मोहल्ले, वार्ड और बस्तियां हैं, जहां टॉयलेट नहीं होने के चलते लोग खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं।
वसर्ड नंबर 15 के दलित बस्ती में तीन सौ से ज्यादा लोगों के पास टॉयलेट नहीं होने के चलते सूर्य निकलने से पहले वो लोटा लेकर मैदान की ओर निकल पढ़ते हैं। बस्ती के रामखिलावन ने बताया कि सरकारी कर्मचारियों के चलते हमें अभी तक टॉयलेट नहीं मिले। बुढ़ापे में लाठी के सहारे नाले, व अन्य जगहों पर शौच के लिए जाना पढ़ता है। हमने स्थानीय भाजपा पार्षद को इस समस्या के बारे में अवगत कराया, उन्होंने टॉयलेट देने का आश्वासन दिया, लेकिन अभी तक मिला नहीं।
डरती हैं, पर खुले में शौच मजबूरी

बस्ती की महिलाएं व युवतियां भी सुबह और शाम को खुले में शौच के लिए जाने को विवश हैं। एक छात्रा ने बताया कि हम लोग डर के साथ घर से निकलते हैं। कभी-कभी कुछ अराजकतत्व हमें गलत नजर से देखते हैं, पर मजबूरी है, शौच के लिए जाएं तो कहां। युवती अंजली ने बताया कि हम अपनी मां के साथ शौच के लिए जाते हैं। अराजकतत्वों से बचने के लिए हमें हरदिन नई जगह तलाश करनी पढ़ती है। अंजली बताती हैं कि अगर सुबह उठने में थोड़ी भी देरी हो गई तो हम शौच के लिए शाम का इंतजार करना पढ़ता है।
महिला ने बताया कि छह माह पहले हमें दो युवकों ने शौच के दौरान खराब नियम से हाथ डालने की कोशिश की। किसी तरह से उनके चुगंल से छूटकर घर आई और जेवरात बेचकर टॉयलेट बनवाया। वहीं जब एक छात्रा से पूछा गया कि आप खुले में शौच क्यों जाती हैं तो उसने कहा टॉयलेट नहीं है।

दलित- मुस्लिम आबादी
यहां पर दलित और मुस्लिम सुमदाय के लोग रहते हैं। अधिकतर लोगों ने खुद के पैसे से टॉयलेट बनवा लिए हैं और तीन सौ से ज्यादा घरों के बाहर शौचायल नहीं हैं। यहां के लोगों का कहना है कि एक टॉयलेट के निर्माण में चालीस से पचास हजार का खर्च आता है। इतनी बढ़ी रकम हमलोगों के पास नहीं हैं। असलम कहते हैं कि हमने यहां के क्षेत्रीय विधायक इरफान सोलंकी से अपनी पीढ़ा बताई। उन्होंने जिला प्रशासन से बातकर टॉयलेट के निर्माण की बात कही थी। लेकिन दो महिने बीत जाने के बाद भी हमारे हाथ खाली हैं।
अमजद ने कहा कि चुनाव के वक्त नेता आते हैं और सारी समस्या का समाधान करने की बात करते हैं, लेकिन इलेक्शन जीतने के बाद वो सब भूल जाते हैं। परवाना कहती हैं कि हमें भी पीएम-सीएम की मुहिम के साथ खड़ा होना चाहते हैं, लेकिन क्या करें टॉयलेट नहीं होने के चलते बाहर जाना पढ़ता है।
कुछ इस तरह से बोले नेता व अफसर

इस मामले में जब स्थानीय विधायक इरफान सोलंकी से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पांच हजार की आबादी वाले इस वार्ड में अधिकतर घरों में टॉयलेटों का निर्माण हो चुका है। जिनके पास टॉयलेट नहीं है, उन्हें जल्द मुहैया करा दिए जाएंगे। नगर आयुक्त अविनाश सिंह ने कहा कि स्वच्छता मिशन का हमारा अभियान युद्ध स्तर पर चल रहा है। जहां-जहां शौचायल नहीं हैं, वहां दिनरात काम कराकर नए टॉयलेटों का निर्माण करवाया जा रहा है। दलित बस्ती के बारे में कहा कि मेरी जानकारी में ऐसा मामला तो नहीं आया, बावजूद मैं खुद मौके पर जाकर जानकारी करूगां। अगर बस्ती में टॉयलेट नहीं है तो जल्द से जल्द वहां टॉयलेटों का निर्माण कार्य कराया जाएगा।
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