वैसे यह पहला मामला नहीं है जब दीवारों पर इस तरह के ज्ञान बांटे गए हों। अक्सर देखा जाता है कि कई दीवारों पर भिन्न-भिन्न तरह के स्लोगन लिखे गए हैं। उदाहरण के तौर पर जैस “श्रीमान खतरों के खिलाड़ी, जाओ शौचालय छोड़ो झाड़ी”, “दीवार पर शौच कभी मत सोच”, इत्यादी। ये अक्सर उन्हीं दीवारों पर लिखे जाते हैं, जहां लोग लघुशंका करते हैं, लेकिन विडम्बना ऐसी है कि सामने दीवार पर अपना उपहास उड़ता देख भी इन लोगों को रत्ती भर शर्म नहीं आती है और जो काम करने आए हैं, उसे वह कर के ही मानते हैं। शायद इसलिए कि उनके जीवन में इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
सरकार को नहीं दे सकते दोष- यहां यदि कोई कहे कि खुले में शौच के लिए सरकार जिम्मेदार है तो यह मनमानी होगी। पबल्कि टायलेट आज हर क्षेत्र में हैं। साथ ही यदि गॉंवों की बात करें, जहां सबसे ज्यादा यह समस्या देखने को मिलती है, तो वहां पर भी सरकार दवारा घर-घर में बनाए गए शौचालय का प्रयोग नाम मात्र हो रहा। लोगों में अब भी बाहर शौच करने की प्रवृत्ति नहीं रूकी है। अफसरों द्वारा शौचालय का उपयोग करने की बात कही जाती है, लेकिन आदत से मजबूर, कोई कैसे माने। हैरान करने वाली तस्वीरें तो यह भी दिखा रही हैं, गांवों में घरों में शौचालय की जहगों को वह स्टोररूम की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। मतलब खुले में शौच की आदत से कोई समझौता नहीं।
खूब चलाए जा रहे अभियान- लोगों में खुले में शौच न करने और बाथरूम की आदत अपनाने के लिए विभिन्न तरह के अभियान चलाए गए हैं। स्कूल से लेकर दफ्तरों में, यहां तक बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार की फिल्म ‘टायलेट-एक प्रेम कथा’ के जरिए लोगों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश की गई है। पत्रिका भी आपसे शौचालय का उपयोग करने का आग्रह करती है। खुद जागरूकर होकर दूसरों को भी जागरूक करें। भारत को स्वच्छता की ओर अग्रसर करें।