ग्रामीणों ने बताया कि…. मान्यता और यहां वर्तमान में उपस्थित बुजुर्गों के अनुसार यह गांव राजा जयचंद के गुरु खंभेद के द्वारा बसाया गया था। गांव में पहले से ही एक बहुत ही समृद्ध मारवाड़ी मंदिर स्थित है। यहां पर उत्तर पूर्व की दिशा में एक बहुत ही बड़ा टीला था, जिसे यहां के लोग खेड़ा कहते थे। आज उस टीले पर एक बस्ती बसी हुई है। वर्तमान में इस गांव में खम्हैल देवी का मंदिर है। वह मंदिर एक पीपल के पेड़ के नीचे चारों तरफ बनाए गए घेरे में रखी हुई पत्थर की सिलाओं के द्वारा निर्मित है और उन्हीं सिलाओं का पूजन ग्रामीण हर एक नवरात्रि में तथा शेष अन्य दिनों में करते हैं। ग्रामीण आशू शुक्ला ने बताया कि अभी कुछ लोगों की मंशा के अनुरूप मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए यहां खुदाई शुरू हुई तो उसमें प्राचीन पत्थर की मूर्तियां निकली हैं, जो ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं।
देवी को लेकर ये है मान्यता गांव के बुजुर्ग पंडित प्रदीप त्रिपाठी ने बताया कि ये खम्हैल देवी का प्राचीन मंदिर हैं और गांव की कुलदेवी हैं। इन्हीं के नाम से गांव का नाम खम्हैला पड़ा। प्रत्येक वर्ग के लोग किसी भी कार्यक्रम में इन्हे आमंत्रित करते हैं। यहां जीर्णोद्धार के दौरान शिवलिंग सहित देवी व अन्य मूर्तियां निकली हैं। अभी भी पीपल के पेड़ की जेडी के समीप एक बड़ी शिला दिख रही है। बहुत प्रयास किया गया, लेकिन वह अधिक बड़ी होने के कारण निकलना मुश्किल है। फिलहाल मंदिर को भव्य रूप देने का कार्य जारी है। उन्होंने बताया कि मान्यता के अनुसार राजा जयचंद्र के समय में युद्ध के दौरान खम्हैल देवी का सिर यही रह गया और उनका धड़ सदलपुर ब्लाॅक क्षेत्र के निटर्रा गांव में है, जहां उनका भव्य मंदिर बना है।