2016 में की थी बैठक
आपातकाल के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी ने कानपुर के फूलबाग से रैली कर दिल्ली में सरकार बनाई थी। इसी के बाद से मजदूरों का शहर राजनीतिक दलों के केंद्र में रहा। 2017 विधानसभा की तर्ज पर लोकसभा चुनाव 2019 फतह करने के लिए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत फिर से शहर आ रहे हैं। वो यहां पूरे सात दिन तक रूक कर राममंदिर और लोकसभा चुनाव को लेकर मंथन करेंगे। इस दौरान संघ प्रमुख तीन प्रमुख राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हुए चुनाव और उसके परिणाम से बना राजनीतिक और सामाजिक माहौल, दूसरा बिंदु होगा आगामी लोकसभा चुनाव, तीसरा और महत्वपूर्ण बिंदु होगा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया शुरू करना, पर स्वयंसेवकों से साथ चर्चा कर रणनीति बनाएंगे।
इन प्रान्तों के प्रमुख रहेंगे मौजूद
संघ प्रमुख मोहन भागवत के प्रवास के दौरान पूर्वी उप्र से जुड़े संघ के चार प्रांतों गोरखपुर, काशी, अवध और कानपुर प्रांत के पदाधिकारी, स्वयं सेवक भी महानगर में प्रवास करेंग, जिसमें प्रमुख रूप में क्षेत्र संघ चालक वीरेंद्रजीत सिंह, क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रांत प्रचारक संजय, सह प्रांत प्रचारक श्रीराम सिंह, गोरखपुर प्रांत प्रचारक मुकेश, काशी प्रांत प्रचारक रमेश, अवध प्रांत प्रचारक कौशल के अलावा कानपुर प्रांत संघ चालक ज्ञानेंद्र सचान, सभी विभाग प्रमुख, सह प्रमुख के अलावा अन्य पदाधिकारी जुटेंगे। संघ प्रमुख का प्रवास कहां होगा, इसके लिए स्थान चयन की प्रक्रिया चल रही है। अभी तीन स्थानों पर विचार किया जा रहा है। पहला बीएनएसडी शिक्षा निकेतन, दूसरा बिठूर स्थित महाराणा प्रताप कालेज, तीसरा नारायण इंजीनियरिंग कालेज।
इसलिए अहम है कानपुर
19 सितंबर 1978 में इंदिरा गांधी ने कानपुर में एक रैली की थी। इस रैली का ही असर था कि पूरे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए जोरदार माहौल बना और 1980 में कांग्रेस दोबारा सरकार में लौटी। 90 के दशक में राम लहर आई और कानपुर बड़े आंदोलनों का गवाह बना। इसके बाद 19 अक्टूबर 2013 को कल्यानपुर इलाके में बीजेपी के पीएम कैंडिडेट नरेंद्र मोदी की यूपी में पहली रैली की और दिल्ली में कमल की सरकार बनीं। 2004 में अटल बिहारी वाजपेई और 2009 में लालकृष्ण आडवाणी ने भी लोकसभा चुनाव प्रचार का बिगुल कानपुर से ही फूंका था। 2007 के विधानसभा चुनाव की कैंपेनिंग की शुरुआत सोनिया गांधी ने परिवर्तन रैली कर कानपुर से ही की थी। इसी के चलते संघ और भाजपा की कोर टीम और केंद्र व प्रदेश सरकार की मशीनरी का मुख्य केंद्र भी कानपुर होगा। हर लिहाज से साल के शुरुआत में कानपुर देश और दुनिया की नजर में रहेगा।
हरपार्टी को मिलती है एनर्जी
जानकारों के मुताबिक, यूपी के सबसे बड़े शहर कानपुर में एक जमाने में मजूदरों का बोलबाला रहा है। यह शहर प्रदेश के बिलकुल बीच में होने के कारण यहां दिया गया मेसेज पूरे प्रदेश में आसानी से पहुंचता है। यहां से हर पार्टी को एक किस्म की एनर्जी मिलती है। अगर यहां कोई रैली या सभा कामयाब होती है, तो पार्टी अपने आने वाले दिनों का अनुमान आसानी से लगा लेती है। राजनीति के प्रोफेसर दीपक श्रीवास्तव बताते हैं कि यूपी में 2017 से पहले यूपी में भाजपा की स्थित बहुत अच्छी नहीं थी। जातिगत राजनीति से जकड़े सूबे को मुक्त करने के लिए मोहन भागवत ने 2016 में अहम बैठक कर दलित और पिछड़ों के बीच जाकर अपनी विचारधारा पहुंचाई और यूपी में भाजपा की सरकार बनी।