संयुक्त शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष दुष्यंत सिंह ने बताया कि बीती 25 जुलाई को Supreme Court द्वारा Shiksha Mitra Samayojan रद करने का फैसला दिये जाने से शिक्षामित्र आंदोलनरत थे। मुख्यमंत्री द्वारा एक अगस्त को वार्ता के बाद समस्या का हल निकालने का आश्वासन दिये जाने पर आंदोलन को स्थगित कर दिया गया था। अभी तक उनके मांगपत्रों पर कोई विचार नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि ऐसी स्थिति में शिक्षामित्र फिर आंदोलन के लिए बाध्य हुए और अपने हक की लड़ाई के लिए लखनऊ कूच कर गए हैं। उनकी मांग है कि सरकार संशोधन अध्यादेश लाकर शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पर समायोजन करे। समायोजन होने तक समान कार्य समान वेतन लागू किया जाए।
शिक्षामित्रों के धरना-प्रदर्शन से प्रदेश के साथ ही जिले की शिक्षा-व्यवस्था पटरी से उतर गई है। इसके चलते जिले के 500 स्कूलों में पढ़ाई प्रभावित हुई है। परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं का भविष्य चौपट हो रहा है। संयुक्त शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष ने कहा कि प्रदेश के 1 लाख 72 हजार शिक्षामित्र 25 जुलाई से सड़कों पर हैं। प्रदेश सरकार ने 15 दिन का समय मांगा था लेकिन इसके बाद भी कोई फैसला नहीं लिया। इससे शिक्षामित्र सदमे में हैं। 21 जुलाई को समान कार्य के लिए समान वेतन व स्थाईकरण के लिए प्रदेश भर के शिक्षामित्र लखनऊ में धरना दें रहे हैं। यह धरना बेमियादी होगा। शिक्षामित्रों ने प्रदेश सरकार को चेतावनी दी है कि उनके भविष्य पर शीघ्र फैसला लिया जाए।
संयुक्त शिक्षामित्र संघर्ष मोर्चा के जिलाध्यक्ष ने बताया कि प्रत्येक विकासखंड से 3-3 बसों को लखनऊ ले जाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन शिक्षामित्रों की संख्या ज्यादा होने के चलते कुछ सरकारी बसों और ट्रेनों से लखनऊ पहुंचे हैं। वहीं परिषदीय बंद स्कूलों को खोलने के लिए डीएम ने बीएसए के साथ बैठक की। बैठक में निर्देश दिए गए कि बंद स्कूलों को हर हाल में खुलवाया जाए। बीएसए ने इसकी जिम्मेदारी खंड शिक्षाधिकारियों को सौंपी है।
पूर्व रिटायर्ड शिक्षक शिवरतन शुक्ला कहते हैं कि शिक्षामित्रों का आंदोलन ठीक नहीं है। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का पालन करना चाहिए। पहले की सरकारों ने उन्हें सहायक अध्यापक पद के बजाय Shiksha Mitra के पद पा संविदा पर नौकरी दी थी। कक्षा दसवीं में अच्छे अंक लाने वाले स्टूडेंट्स को बच्चों को पढ़ाने के लिए रखा गया था। जबकि सहायक अध्याक पद के लिए बीएड, बीटीसी के साथ ही टीईटी पास होना जरूरी है। आंदोलन कर रहे शिक्षामित्रों को सरकार ने सहूलियत दी है और उन्हें स्कूलों में पढ़ाने को कहा है। वे बच्चों को पढ़ाएं और टीईटी का एग्जा क्वालीफाई करें और बिना रूकावट के सहायक अध्यापक के पद पर काम करें।