scriptचाचा-भतीजे की दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की सियासत का समीकरण | shivpal singh yadav and akhilesh yadav relation updated latest news | Patrika News

चाचा-भतीजे की दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की सियासत का समीकरण

locationकानपुरPublished: Jun 12, 2019 09:06:19 am

तीन चुनावों में करारी हार से अखिलेश पर दवाब ज्यादा

shivpal singh yadav, akhilesh yadav, mulayam singh yadav

चाचा-भतीजे की दुश्मनी को दोस्ती में बदलने की सियासत का समीकरण

लखनऊ. लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त ने मुलायम सिंह यादव को सैफई के यादव कुनबे को एकजुट करने के लिए मजबूर कर दिया है। बसपा के साथ गठबंधन से परहेज के पक्ष में रहे मुलायम चुनाव परिणाम के बाद अपने अनुज शिवपाल सिंह और बेटे अखिलेश यादव के बीच रिश्ते सामान्य करने की कोशिश में जुटे हैं। मुलायम और सपा के कद्दावर नेताओं का मानना है कि शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी की वोटकटवा भूमिका के कारण कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे एक दर्जन सीटों पर सपा को हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में शिवपाल को साथ लेने पर विचार करना चाहिए। इस प्रस्ताव पर सपा के सुल्तान अखिलेश यादव ने धमाकेदार फैसला किया है। उन्होंने फिलहाल चाचा की सपा में इंट्री पर बैन लगा दिया है। अखिलेश किसी भी सूरत में पार्टी में सत्ता के कई केंद्र नहीं चाहते हैं। उनका मानना है कि अभी नहीं तो कभी तो चुनाव अपने दम पर जीत ही लेंगे।
तीन चुनावों में करारी हार से अखिलेश पर दवाब ज्यादा

वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव, फिर वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव और अब वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव, यानी तीन चुनावों में पार्टी की दुर्गति ने अखिलेश को परिवार और पार्टी में बैकफुट पर खड़ा कर दिया है। दोनों लोकसभा चुनावों में पार्टी को यूपी की 80 में सिर्फ 5 सीटें हासिल हुईं। बीते लोकसभा चुनाव में तमाम कोशिश के बावजूद अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल को कन्नौज और चचेरे भाई अक्षय को फिरोजाबाद तथा धर्मेंद्र को बदायंू से नहीं जीता पाए। विधानसभा चुनावों में भी सपा को सिर्फ 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ऐसे में सैफई परिवार के सदस्यों का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव की ससम्मान वापसी होनी चाहिए।
चाचा शिवपाल के साथ टीपू के समीकरण अच्छे नहीं

उधर, चाचा की चुनावी गणित के कारण पत्नी और चचेरे भाइयों की हार से तिलमिलाए अखिलेश यादव का तर्क है कि अभी नहीं तो कभी तो अपने बूते चुनाव जीते ही लेंगे, लेकिन बड़ी मुश्किल से पार्टी पर वर्चस्व स्थापित किया है। इस वर्चस्व को चुनौती देने वाले चेहरों से दूर रहना ही उचित है। अखिलेश के करीबियों का कहना है कि शिवपाल को पार्टी में वापस लिया गया तो पार्टी में कई ध्रुव बनेंगे, जोकि अखिलेश के सियासी भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा। दूसरी ओर, शिवपाल से हमदर्दी रखने वालों का कहना है कि जब अखिलेश यादव धुर विरोधी कांग्रेस और बसपा से गठबंधन कर सकते हैं तो सगे चाचा के साथ राजनीति करने में क्या दिक्कत हैं। दोनों के अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र तय होंगे तो दो ध्रुव और सत्ता के अलग-अलग केंद्र जैसी कोई बात नहीं होगी। अलबत्ता फिलहाल चाचा से दूरी का फैसला करने के साथ ही अखिलेश ने अपने निर्णय से पिता को अवगत करा दिया है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो