तीन चुनावों में करारी हार से अखिलेश पर दवाब ज्यादा वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव, फिर वर्ष 2017 का विधानसभा चुनाव और अब वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव, यानी तीन चुनावों में पार्टी की दुर्गति ने अखिलेश को परिवार और पार्टी में बैकफुट पर खड़ा कर दिया है। दोनों लोकसभा चुनावों में पार्टी को यूपी की 80 में सिर्फ 5 सीटें हासिल हुईं। बीते लोकसभा चुनाव में तमाम कोशिश के बावजूद अखिलेश अपनी पत्नी डिंपल को कन्नौज और चचेरे भाई अक्षय को फिरोजाबाद तथा धर्मेंद्र को बदायंू से नहीं जीता पाए। विधानसभा चुनावों में भी सपा को सिर्फ 47 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। ऐसे में सैफई परिवार के सदस्यों का कहना है कि शिवपाल सिंह यादव की ससम्मान वापसी होनी चाहिए।
चाचा शिवपाल के साथ टीपू के समीकरण अच्छे नहीं उधर, चाचा की चुनावी गणित के कारण पत्नी और चचेरे भाइयों की हार से तिलमिलाए अखिलेश यादव का तर्क है कि अभी नहीं तो कभी तो अपने बूते चुनाव जीते ही लेंगे, लेकिन बड़ी मुश्किल से पार्टी पर वर्चस्व स्थापित किया है। इस वर्चस्व को चुनौती देने वाले चेहरों से दूर रहना ही उचित है। अखिलेश के करीबियों का कहना है कि शिवपाल को पार्टी में वापस लिया गया तो पार्टी में कई ध्रुव बनेंगे, जोकि अखिलेश के सियासी भविष्य के लिए अच्छा नहीं होगा। दूसरी ओर, शिवपाल से हमदर्दी रखने वालों का कहना है कि जब अखिलेश यादव धुर विरोधी कांग्रेस और बसपा से गठबंधन कर सकते हैं तो सगे चाचा के साथ राजनीति करने में क्या दिक्कत हैं। दोनों के अधिकार क्षेत्र और कार्यक्षेत्र तय होंगे तो दो ध्रुव और सत्ता के अलग-अलग केंद्र जैसी कोई बात नहीं होगी। अलबत्ता फिलहाल चाचा से दूरी का फैसला करने के साथ ही अखिलेश ने अपने निर्णय से पिता को अवगत करा दिया है।