कानपुर

मायावती के गढ़ में शिवपाल की नजर, बुंदलेखंड में हाथी की बढ़ी धड़़कन

4 लोकसभा और 19 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा, दलित-‘मुस्लिम बाहुल्य सात जिलों में सेक्युलर मोर्चा उतारेगा उम्मीदवार, कई दिग्गज नेता हो सकते हैं शामिल

कानपुरOct 17, 2018 / 01:19 pm

Vinod Nigam

मायावती के गढ़ में शिवपाल की नजर, बुंदलेखंड में हाथी की बढ़ी धड़़कन

कानपुर। समाजवादी पार्टी से बगावत कर पूर्व मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन पर यूपी की राजनीति में तहलका मचा दिया। पिछले एक माह के दौरान वो अपने भतीजे अखिलेश यादव के नेताओं को एक-एक कर मोर्चे में शामिल कर मुलायम सिंह के गढ़ में रोड शो के जरिए अपनी ताकत का एहसास करा अब मायावती के किले की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। करीब 18 लाख दलित बाहूल्य बुंदेलखंड के सात जिलों की चार लोकसभा सीटों पर बीजेपी के साथ ही हाथी को रोकने के लिए चक्रव्यूह बना रहे हैं। शिवपाल 18 अक्टूबर को कानपुर आ रहे हैं। वो चौधरी हरमोहन सिंह के घर जाएंगे और एक कार्यक्रम में भाग लेंगे। इस दौरान उनसे बुंदेलखंड के कई नेता मुलाकात कर सकते हैं। कानपुर मंडल प्रभारी रघुराज शाक्य ने बताया कि मोर्चा पूरी ताकत के साथ बुंदेलखंड में उतरने जा रहा है। बसपा व बीजेपी के दिग्गज नेता मोर्चे के साथ आने वाले हैं। हमारा मकसद बीजेपी को सत्ता से बाहर रखना है और नेता जी के बताए रास्ते पर चलकर गरीबों, मजदूरों और दलित-पिछड़ों को हक दिलाना है।

जल्द ही बड़ी रैली
समाजवादी सेक्युलर मोर्च के अध्यक्ष शिवपाल यादव की नजर अब मायावती के गढ़ बुंदेलखंड पर लग गई है। 2014 से पहले यहां पर सिर्फ बसपा का सिक्का चलता था। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर के चलते मायातवी का ये किला जमींदोज हो गया और यहां की चारों लोकसभा और 19 विधानसभा सीटों पर कमल खिला। इसी के चलते अब पूर्व मंत्री ने अपने दल के दलित बाहूल्य इलाके में पैर जमाने के लिए कमर कस ली है। वो अक्टूबर के आखरी सप्ताह में बांदा के अलावा चित्रकूट में रैली कर सकते हैं और सपा से नाराज चल रहे कई नेता मोर्चे में शामिल हो सकते हैं। चर्चा ये है कि शिवपाल यादव बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, झांसी कालपी और ललितपुर का रुख कर रहे हैं। यहां पर उन सपाइयों से संपर्क किया जा रहा है, जो सपा छोड़ चुके हैं, या फिर सपा की मुख्यधारा से अभी अलग – थलग हैं।

ददुओ के भाई- बेटे पर नजर
पाठा के जंगल का डकैत ददुआ का बुंदेलखंड के कई जिलों में राज था। उनके फरमान में यहां वोट पड़ते थे। 2003 तक ददुआ बसपा के लिए सियासी जमीन तैयार करता था और इसी के चलते मायावती का यहां अच्छा-खासा रूतबा था। लेकिन 2004 में ददुआ ने दल बदल कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली और अपने पूरे परिवार को सदस्यता दिला दी। ददुआ के आर्शीवाद से पाठा में साइकिल दौड़ी और हाथी को नुकसान उठाना पड़ा। 2007 में सीएम बनते ही मायावती ने ददुआ का इनकाउंटर करा दिया और उसके परिजनों को सलाखों के पीछे भिजवा दिया। 2012 में सपा सरकार बनने के बाद ददुआ का बेटा विधायक बना तो भाई सांसद चुना गया। पूरा परिवार राजनीति में उतर आया और यहां से बसपा के वोट धीरे-धीरे खिसकने जगा। अब शिवपाल यादव अपने पुराने साथियों को मोर्चे में लाकर बसपा को नुकसान पहुंचाने के लिए जुट गए हैं।

शिवपाल ने दिलाई थी सदस्यता
पूर्व मंत्री शिवपाल यादव ने ददुआ की फेमली को समाजवादी पार्टी की सदस्यता दिलाई और टिकट देकर चुनाव के मैदान में उतारा। परिवार के सभी सदस्य जन्रपतिनिधि चुने गए। इनसमें से ददुआ का भाई बालकुमार पटेल (पूर्व सांसद) बेटा वीरसिंह पटेल (पूर्व एमएलए, चित्रकूट) बहू ममता पटेल (पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष, कर्वी) बेटी चिरौंजी देवी (पूर्व प्रमुख, धाता ब्लॉक, फतेहपुर) भतीजा रामसिंह पटेल (पूर्व एमएलए, प्रतापगढ़) भतीजा राकेश सिंह पटेल (एसपी छात्र सभा पूर्व अध्यक्ष, रायबरेली) से चुने गए। कानपुर मंडल प्रभारी रघुराज शाक्य ने बताया कि मार्चे में हम उन सभी नेताओं को शामिल रह रहे हैं, जिन्हें अपनी-अपनी पार्टियों में सम्मान नहीं मिलता। ददुआ का परिवार अगर मोर्चे में शामिल होता है तो इसका हमलोग स्वागत करते हैं।

बीजेपी व बसपा के नेताओं पर नजर
शिवपाल यादव बंदेलखं डमें बसपा व बीजेपी से नाराज होकर अगल होने वाले नेताओं से सपंर्क बनाने भी शुरू कर दिए हैं। जानकारों की मानें तो पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद पूर्व मंत्री बादशाह सिंह भी शिवपाल यादव का दामन थाम सकते हैं। यदि शिवपाल यादव बुंदलेखंड अपनी रणनीति में कामयाब होते हैं, तो बसपा प्रमुख को बड़ा झटका लगेगा। क्योंकि बुंदेलखंड में दलित, मुस्लिम और क्षत्रीय मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है। साथ ही यहां यादव दो गुटों में बंटा हुआ है। जो दूसरा गुट है, वो यहां अखिलेश यादव द्वारा 2017 में लिये गये निर्णय से नाराज रहा था और यही कारण था और चुनाव के वक्त जमकर भीतरघात किया । जिसका परिणाम रहा कि बसपा के साथ सपा का यहां से सफाया हो गया। यादव बाहूल्य गांवों के वोट बीजपी को चले गए।

 

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