सरसों के तेल में साबुन का तेल मिलाकर हो रही बिक्री
सस्ता होने की वजह से ज्यादा कमाई के लालच में सेहत से खेल रहे
खतरनाक खिलवाड़ पर सतर्क हुआ कस्टम विभाग, की जाएगी जांच

कानपुर। साबुन बनाने के नाम पर शहर में आने वाला लाखों लीटर सोप ऑयल खाने के तेल में मिलाया जा रहा है। यह तेल खाने में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए, फिर भी इसे सरसों के तेल में मिलाकर बाजार में खपाया जा रहा है। सोप ऑयल बेहद सस्ता होता है, इसी वजह से इसकी मिलावट कर मोटी कमाई की जा रही है। खास बात तो यह है कि जिस काम के नाम पर सोप ऑयल शहर में आ रहा है उस काम के लिए इसका इस्तेमाल होता ही नहीं है। पूरा का पूरा सोप ऑयल मिलावट के काम आता है। सेहत के साथ इस खतरनाक खिलवाड़ और मोटी राजस्व चोरी की आशंका में कस्टम विभाग अब पूरे मामले की जांच करेगा।
साबुन इंडस्ट्री में नहीं होता प्रयोग
साबुन इंडस्ट्री में सोप ऑयल का इस्तेमाल न के बराबर होता ह। इसके बावजूद साबुन बनाने के नाम पर भरपूर सोप आयल विदेशों से आ रहा है। शहर में रिफाइंड, वनस्पति और सरसों के तेल की इंडस्ट्री 10 हजार करोड़ की है, जबकि डिटर्जेन्ट और साबुन इंडस्ट्री 6000 करोड़ रुपए के आसपास है। इसमें करीब 85 फीसदी हिस्सा डिटर्जेन्ट का है, जिसमें सोप ऑयल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। सोप ऑयल का इस्तेमाल करने वाली साबुन इकाइयों की संख्या 20 से ज्यादा नहीं है, जिनकी प्रतिदिन की कुल क्षमता बमुश्किल 150 टन है।
हर महीने खपाया जा रहा ३० लाख लीटर तेल
साबुन के नाम पर हर महीने करीब 30 लाख लीटर तेल अखाद्य तेल आयात हो रहा है। राइस मिलों सहित देसी बाजार से 20 लाख लीटर अखाद्य तेल हर महीने शहर में पहुंच रहा है। साफ है कि इतनी भारी मात्रा में आने वाला अखाद्य तेल को खाने के तेल में मिलाया जा रहा है। रिफाइंड और वनस्पति की कुछ इकाइयां तो कागजों पर साबुन की फर्जी फैक्ट्री चला रही हैं और उनके नाम पर आने वाले तेल को खाद्य तेलों में खपाया जा रहा है।
शरीर के लिए होता घातक
सोप ऑयल में में फ्री फैटी एसिड (एफएफए) करीब 80 से 100 फीसदी होती है जो शरीर के लिए बेहद घातक है। पाम फैटी आयल का मेल्टिंग प्वाइंट 44 से 46 डिग्री सेल्सियस होता है। यानी इतनी भीषण गर्मी में भी ये तेल नहीं पिघलता। इंडोनेशिया से आने वाले इस तेल की कीमत 36 रुपए किलो है। पाम फैटी आयल में ग्लिसरीन मिलाकर पतला किया जाता है। एक किलो पाम फैटी में लगभग दस रुपए की ग्लिसरीन मिलाई जाती है। इस प्रक्रिया में लगभग पांच रुपए खर्च होते हैं। 15 रुपए किलो कमाई के चक्कर में सेहत से खिलवाड़ किया जाता है।
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