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कैंसर से जीतने के लिए दवा के साथ यह तरीका भी बेहद कारगर

locationकानपुरPublished: Feb 04, 2020 12:48:53 pm

कैंसर से जंग जीतने में कानपुर के लोगों ने हासिल किया नया मुकाम२० साल से कैंसर रोगियों के लिए बने प्रेरणा, मरीजों को मिलती हिम्मत

कैंसर से जीतने के लिए दवा के साथ यह तरीका भी बेहद कारगर

कैंसर से जीतने के लिए दवा के साथ यह तरीका भी बेहद कारगर

कानपुर। कैंसर ऐसा नाम है, जिसे सुनकर ही दिल कांप उठता है। मगर यह बीमारी लाइलाज नहीं है। कैंसर से लडक़र भी व्यक्ति जिंदगी की जंग जीत सकता है। यह उदाहरण पेश किया है कानपुर के कई ऐसे मरीजों ने, जिन्होंने कैंसर के आगे घुटने नहीं टेके और डटकर मुकाबला कर जीत हासिल की। कैंसर को हराकर अब वे दूसरे मरीजों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। आज विश्व कैंसर दिवस पर इससे पीडि़त मरीजों को इस पर विजय पाने का संकल्प लेने की जरूरत है।
जितना जल्दी उतना बेहतर
कैंसर को हराने के लिए सतर्कता और जागरूकता पहली प्राथमिकता है। मरीज का जितनी जल्दी इलाज शुरू होगा उतनी ही जल्दी इससे छुटकारा मिलेगा। शहर के कई ऐसे लोग हैं जिन्हें कैंसर हुआ था मगर जल्दी इलाज से वह ठीक हो गए 20 साल से कैंसर रोगियों के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। जेके कैंसर संस्थान के विशेषज्ञों के मुताबिक कैंसर से लड़ाई तब मुश्किल होती है जब तीसरे और चौथे स्टेज में मरीज पहुंचते हैं।
इलाज के बाद जीते सामान्य जीवन
डॉक्टरों का कहना है कि मरीज की पहले स्टेज या उससे पहले ही स्क्रीनिंग हो जाए तो इंसान की जिंदगी सामान्य व लम्बी हो सकती है। जेके कैंसर संस्थान के निदेशक प्रो. एसएन प्रसाद का कहना है कि मरीज जब अंतिम स्टेज में पहुंचते हैं तो उनके साथ कुछ नहीं हो सकता है। मगर ऐसे मरीज भी संस्थान को नजीर हैं जो 20 वर्ष पूर्व कैंसर का इलाज करा चुके हैं। अब वह मरीज नहीं है।
सतर्कता जरूरी
कैंसर के प्रति जागरूक होने की जरूरत है। कैंसर के थोड़े से लक्षण नजर आने पर स्क्रीनिंग (जांच) करवाने में हिचकिचाए नहीं। वक्त रहते कैंसर के पकड़ में आने पर इसका उपचार संभव है। आमतौर पर ब्रेस्ट, सर्वाइकल, प्रोस्टेट, मुंह और बड़ी आंत के कैंसर के मामले ज्यादा आते हैं। इनकी जांच की सुविधा छोटे शहरों में भी उपलब्ध है। ये जांचें न केवल आसान हैं, बल्कि सस्ती भी होती हैं।
हार ना मानें तो ही होगी जीत
कैंसर को हराने के लिए पहली जरूरत है हार ना मानने की। अक्सर मरीज कैंसर का नाम सुनकर ही जीने की उम्मीद खो बैठता है, यह कैंसर के लिए अनुकूल स्थिति बन जाती है। जबकि दवा के साथ हौसले का टॉनिक भी बेहद जरूरी होता है। अगर मरीज के अंदर जीने की चाहत है और सही होने की उम्मीद है तो दवा उस पर दोगुना असर करेगी।
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