गिरफ्तार होने पर भी झंडा नहीं छोड़ा
ताऊ जी ने जेल में १५ साल गुजारे और जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो वे हाथों में झंडा लिए हुए थे। पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया पर उन्होंने हाथों से झंडा नहीं छोड़ा। कोतवाली तक उन्हें घसीटकर ले जाया गया और वे रास्ते भर आजादी का तराना गाते रहे। आजादी के बाद वे दो बार विधायक भी रहे।
ताऊ जी ने जेल में १५ साल गुजारे और जब पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया तो वे हाथों में झंडा लिए हुए थे। पुलिस ने उन्हें पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया पर उन्होंने हाथों से झंडा नहीं छोड़ा। कोतवाली तक उन्हें घसीटकर ले जाया गया और वे रास्ते भर आजादी का तराना गाते रहे। आजादी के बाद वे दो बार विधायक भी रहे।
पहली बार स्कूल के बाहर दी गिरफ्तारी
हमीद उल्लाह उर्फ ताऊ जी का जन्म २६ अक्टूबर १९०० में कानपुर के डेरापुर में हुआ था। उनके पिता छेदा खान उर्सला अस्पताल में फार्मेसिस्ट थे। एक दिन स्कूल के बाहर कुछ हंगामा होने लगा और पुलिस भी आ गई। स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए गए पर वे कूदकर बाहर आ गए और गिरफ्तारी दी।
हमीद उल्लाह उर्फ ताऊ जी का जन्म २६ अक्टूबर १९०० में कानपुर के डेरापुर में हुआ था। उनके पिता छेदा खान उर्सला अस्पताल में फार्मेसिस्ट थे। एक दिन स्कूल के बाहर कुछ हंगामा होने लगा और पुलिस भी आ गई। स्कूल के दरवाजे बंद कर दिए गए पर वे कूदकर बाहर आ गए और गिरफ्तारी दी।
बड़े नेताओं के थे करीबी
आजादी की लड़ाई के दौरान हमीद उल्लाह की चर्चा हर ओर होने लगी। उनकी चर्चा बड़े नेताओं तक भी पहुंची। देखते ही देखते वे जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अबुल कलाम आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी और हसरत मोहानी के चहेते बन गए।
आजादी की लड़ाई के दौरान हमीद उल्लाह की चर्चा हर ओर होने लगी। उनकी चर्चा बड़े नेताओं तक भी पहुंची। देखते ही देखते वे जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, अबुल कलाम आजाद, गणेश शंकर विद्यार्थी और हसरत मोहानी के चहेते बन गए।
झंडा सत्याग्रह में हुए शामिल
वे १९१६ में कांग्रेस में शामिल हुए। १९२१ में अंग्रेजों ने कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जहां उन्हें सात महीने की सजा काटनी पड़ी। झंडा सत्याग्रह में वे कानपुर से इलाहाबाद पहुंचे और जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास के साथ नागपुर गए।
वे १९१६ में कांग्रेस में शामिल हुए। १९२१ में अंग्रेजों ने कांग्रेस को गैर कानूनी घोषित कर दिया और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जहां उन्हें सात महीने की सजा काटनी पड़ी। झंडा सत्याग्रह में वे कानपुर से इलाहाबाद पहुंचे और जवाहरलाल नेहरू और पुरुषोत्तमदास के साथ नागपुर गए।