कौन थे शहीद रामदुलारे
राम दुलारे तिवारी का जन्म फतेहपुर जनपद के कौंह गांव में हुआ था। कक्षा दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने सेना में जाने का मन बना लिया। माता-पिता ने उन्हें सेना के बजाए दूसरी नौकरी ज्वाइन करने को कहा, पर राम दुलारे तिवारी नहीं मानें और कानपुर स्थित बर्रा आ गए। यहीं पर रहकर उन्होंने सेना की तैयारी की और पहले प्रयास में राम दुलारे को सफलता मिल गई। उन्हें राजपूत रेजीमेंट(सोलजर) में सैनिक पद पर पहली तैनाती राजस्थान बार्डर में मिली। सेना की वर्दी में जब घर लौटे तो पिता ने सीने से लगाया और उनकी शादी तय कर दी।
खेमकरण सेक्टर में थे पोस्टेड
शहीद की पत्नी शियाप्यारी के भाई महेश बताते हैं वीर अब्दुल हमीद और बहनोई राम दुलारे तिवारी पंजाब के तरनतारण जिले के खेमकरण सेक्टर में पोस्टेड थे। पाकिस्तान ने उस समय के अमेरिकन पैटन टैंकों से खेमकरण सेक्टर के असल उताड़ गांव पर हमला कर दिया। अब्दुल हामिद के साथ ही हमारे बहनोई राम दुलारे ने भी दुश्मनों के टैंकों को जमीदोज करने का प्रण लिया। बताते हैं 9 और 10 सिबंतर को अकेले अब्दुल हामिद ने 7 टैकों को बर्बाद किया था तो वहीं राम दुलारे भी एक टैंक को ध्वास्थ कर पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। अब्दुल हामिद शहीद हो गए तो वहीं राम दुलारे सहित अन्य सैनिकों ने पाकिस्तानियों को चुन-चुन कर मारा और बार्डर पर तिरंगा फहराया।
20 को शहीद हुए थे राम दुलारे
महेश बताते हैं कि पाकिस्तान पर जीत से राजपूत सैनिक टुकडी में खुशी की लहर थी। सभी सैनिक जीत का जश्न मना रहे थे। 20 सितम्बर 1965 को युद्ध के अंतिम दिन पाकिस्तान ने अचानक बमों से हमला कर दिया। यहां से जवाबी कार्रवाई हुई और जंग-ए-मैदान में आखरी सांस तक लड़ते-लड़ते राम दुलारे शहीद हो गए। महेश बताते हैं कि युद्ध के वक्त उन्होंने एक पत्र पत्नी सियाप्यारी के नाम लिखा था और उसमें वीर अब्दुल हामिद की वीरता का जिक्र किया था। महेश बताते हैं तत्कालीन सरकार ने शहीद की विधवा के नाम पर सात बीघे खेत और राशन की दुकान आवंटित की थी। फिलहाल वह हमारे साथ कानपुर के यशोदानगर में रहती हैं और 15 अगस्त, 26 जनवरी और 20 सितंबर को गांव जाकर शहीद स्मारक में माथा टेकती हैं।
14 वर्ष की आयू में विधवा
शियाप्यारी बताती हैं, शादी के तीन माह हुए थे। तभी भारत और पाकिस्तान के बीच 1965 की जंग शुरू हो गई। शादी के बाद एक दिन ही अपने पति के साथ रही। बताया शादी के समय उसकी उम्र 14 वर्ष थी। जबकि पति की 26 वर्ष थी। वह अपनी ससुराल कौंह गांव एक बार गई। शादी के बाद नवरात्रि में ससुराल जाने की तैयारी चल रही थी कि उसके मायके बबई में पति के शहीद होने की खबर मिली। पति के शहीद होने के बाद शियाप्यारी ने अपनी जिंदगी गरीब, मजदूर और जरूरतमंदों के नाम कर दी। वह अपने छोटे भाई महेश के साथ रहती हैं और जो कमाती हैं वह सारे पैसे शहीदों के परिजनों के नाम करती हैं।
पाकिस्तान पर भारी पड़ी सेना
शहीद की पत्नी शियाप्यारी बताती हैं कि भारत को 1947-49 के दौरान पाकिस्तान के साथ हुए कश्मीर वॉर में अपने कई सैनिकों से हाथ धोना पड़ा था। तब पाकिस्तान को लगा कि भारत उसकी सैन्य क्षमता के आगे काफी कमजोर है। पाकिस्तान ने इसी गलतफहमी में 1965 में एक बार फिर से युद्ध छेड़ दिया जिसका भारत से मुंहतोड़ जवाब मिला। इस युद्ध में पाकिस्तानियों पर वीर अब्दुल हमीद भारी पड़े थे। खुद उनके पति ने कई टैकों को मिट्टी में मिला दिया था और दुश्मन देश के सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।
पर दुख जरूर होता है
शियाप्यारी कहती हैं कि आजादी के संघर्ष को नई पीढ़ी भूल न जाएं, इसलिए वह बबईगांव में 15 अगस्त, 26 जनवरी और 20 सितंबर को मेले का आयोजन कर युवाओं को देश के शहीदों के बारे में जानकारी देती हैं। कहती हैं कि उन्हें अपने पति के शहीद होने पर गर्व है। हां इतना जरूर अफसोस है कि सरकार की तरफ से हमें कोई सहयोग नहीं मिला। कहती हैं कि पहले तो अधिकारी व जनप्रतिनिधि 20 सितंबर को गांव आया करते थे पर पिछले 20 साल से कोई नहीं आता। 1965 के वक्त जो सरकारी मदद मिली उसे भी छीन लिया गया। शिकायत किसी ने नहीं पर दुख जरूर होता है।