मंदिर व शुक्ल तालाब हैं नायाब मुगलकाल में अकबरपुर का ऐतिहासिक शुक्ल तालाब वास्तु कला का नायब नमूना होने के साथ ही हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक है। आज भी दूर दराज से लोग यहां आते हैं। इसकी प्राचीनतम कहानी है। 1857 की क्रांति की यादें संजाऐ इस परिसर में स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर लोगों की आस्था व आराधना का केंद्र बना हुआ है। बुजुर्गों के मुताबिक वर्ष 1556 में जब शहंशाह अकबर दिल्ली की गद्दी पर बैठा तो उसने 1563 ईसवी में शीतल शुक्ल को अकबरपुर का दीवान व नत्थे खां को आमिल नियुक्त किया था। इसी बीच अकबरपुर में अकाल पड़ गया। इस पर दोनों लोगों ने सरकारी पैसे से 1578 में पहले इस तालाब का निर्माण कराया था। धन जमा न होने पर अकबर बादशाह ने स्वयं यहां आकर जांच की। इस पर धन के सदुपयोग की जानकारी पर उन्होने दोनों को इनाम भी दिया था। इधर शीतल शुक्ल व उनके परिवार के लोगों को भगवान महादेव में घोर आस्था थी। इसलिए शीतल शुक्ल ने उसी परिसर में नर्मदेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था। उस दौरान जनपद का यह अनूठा व भव्य मंदिर था। बाद में लोगों की आस्था बढ़ गयी। मौजूदा समय में यह तालाब व मंदिर पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित है।
सावन में होते हैं ऐसे आयोजन सावन माह में इस प्राचीन शिव मंदिर में पूजन का विशेष महत्व है। यहां आने वाले भक्त प्रत्येक सोमवार को भगवान शंकर का पूजन व जलाभिषेक करते हैं। जबकि अंतिम सोमवार को यहां विशेष पूजन, रुद्राभिषेक के साथ भंडारे का भी आयोजन होता है। इस मौके पर यहां बड़ी संख्या में भक्तों के आने की संभावना के चलते सभी तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं। स्थानीय लोग पूरी तरह से तल्लीन हो जाते हैं। सआफ सफाई के साथ आयोजन के लिए लोग सहयोग करते हैं। मान्यता है कि रुद्राभिषेक के आयोजन में यहां श्रद्धालु पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: का जप करते हैं, जिससे लोगों के कष्ट दूर होने के साथ मनौतियां पूर्ण होती हैं।
मंदिर के पुजारी कैलाशनाथ कहते हैं कि भगवान नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित अति प्राचीन शिवलिंग का पूजन कर महामृत्युंजय का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं। जबकि सावन के अंतिम सोमवार को होने वाले रुद्राभिषेक व विशेष पूजन में भाग लेकर इस ऐतिहासिक शिवालय में पंचाक्षरी मंत्र ओम नम: शिवाय के जप से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।