कानपुरPublished: Aug 05, 2018 02:05:53 pm
Vinod Nigam
साइकिल के जरिए घर-घर पहुंचाते थे सब्जी मसाला, देश भर में पहचाना जाता है दोस्ती को गोल्डी मसाला
friendship day 2018- गंगा किनारे मिले, एक-दूसरे का हाथ थामा…. अब हैं 800 करोड़ के मालिक
कानपुर। कहते हैं इस दुनिया में सबसे प्यारा रिश्ता दोस्ती का होता है और ऐसे हजारों दोस्त हैं, जिन्होंने यारी को आखरी सांस तक जिंदा रखा। इन्हीं में से कानपुर के दो दोस्त हैं, जिन्होंने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और 55 बरस बीत जाने के बाद भी यारी जारी है। दोनों ने गरीबी और मुफलिसी देखी और उसे ही अपना हथियार बना आगे बढ़ने की शपथ खाई और सब्जी मसाले के जरिए तकदीर संवारने के लिए साइकिल पर सवार होकर निकल पड़े। गली, मोहल्लों और लोगों के घर-घर जाकर किचन का तड़का बेचा, जो कनपुरियों को भा गया। हाथ में पैसे आए तो इन्होंने सोलह सौ रूपए से किचन के सब्जी मसाले की नींव रख दी। हम बात कर रहे हैं उद्यमी सोम गोयनका और सुरेंद्र गुप्ता की, जिन्हें आज देश-दुनिया के लोग गोल्डी किंग के नाम से पुकारते हैं।
कौन हैं दोनों दोस्त
तिलक नगर निवासी सोम गोयनका की मुलाकात बिठूर घाट में विष्णुपुरी निवासी सुरेंद्र गुप्ता से हुई। सोम गोयना के पिता के पास प्रिंटिंग प्रेस का काम करते थे, वहीं सुरेंद्र गुप्ता के पिता सब्जी मसाले की दुकान चलाते थे। सुरेंद्र गुप्ता बताते हैं कि हम दोनों की दोस्ती ने पूरे 55 बरस पूरे कर लिए। इन सालों में सब्जी मसाले ने कई अयाम गढ़े, लेकिन पैसे और शोहतर के आवोहवा में हम नहीं फंसे। महज 16 सौ रूपए में शुरू किया गया कारोबार आज आज 800 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर तक पहुंच गया है। सुरेंद्र गुप्ता कहते हैं कि हम दोनों आज भी प्रतिदिन मिलते हैं और एकसाथ चाय पीकर व्यापार के बारे में चर्चा करते हैं। अगर सोम शहर से बाहर होते हैं तो सूरज की पहली किरण पड़ते ही हमें फोन लगाकर हाल-चाल पूछते हैं। वहीं सोम कहते हैं कि अब बपचन की यारी, आखरी सांस तक जिंदा रहेगा। हम तो इस दुनिया को छोड़ कर चले जाएंगे पर लोग हमें नहीं हमारी दोस्ती को याद रखेंगे।
इस कारण खोली फैक्ट्री
सुरेंद्र गुप्ता बताते हैं कि हम अपनी दुकान पर बैठे थे। तभी एक ग्राहक सब्जी मसाला लेने आया। हमने पैसे लेकर उसे मसाला दे दिया। दो घंटे के बाद ग्राहक गुस्से में हमारी दुकान में आया और मसाले को फेंक दिया और अपशब्द कहे। ग्राहक का आरोप था कि सब्जी मसाले की क्वालिटी घटिया है। हम दुकान बंद कर सोम के पास गए और सब्जी मसाले की क्वालिटी को लेकर मंथन किया। हमने ं ने तय कर लिया कि खुद के ब्रान्ड को स्थापित करेंगे। इसी के चलते दोनों सब्जी मसाला साइकिल व ठेले के जरिए लोगों के घर-घर जाकर बेचने लगे। जैसे ही 16 सौ रूपए हाथ में आए वैसे ही सब्जी मसाले के कारोबार करने की ठान ली। दोनों ने दानाखोरी, हूलागंज स्थित दुकान में चक्की लगवाई। खुद ही मसाला पीसते, उसकी पैकिंग करते। खुद ही साइकिल और रिक्शे से अपने बनाए उत्पाद बाजारों में बेचते। सोम बताते हैं कि उस वक्त हम दोनों 24 घंटे काम करते और थक जाते तो चक्की कें ही सो जाते। भूख लगती तो चाय पीकर रात गुजारते।
मसाला पीसने की लगाई चक्की
सोम बताते हैं, यह सिलसिला दो साल तक चला। 1980 में हमने किदवई नगर एम ब्लॉक में किराये का भवन लिया। यहां मसाला पीसने की बड़ी मशीन लगाई। यहीं से तरक्की का रास्ता तैयार हुआ। एक साल के बाद हम दोनों ने बैंक से कर्जा लेकर दादानगर में फैक्ट्री खरीदी और बड़े पैमाने पर सब्जी मसाले व अन्य उत्पादों का निर्माण शुरू किया। क्वालिटी की वजह से उत्पाद बाजार में छाते गए। कारोबार बढ़ता गया। 90 के दशक में मंधना में 40 एकड़ एरिया में फैक्ट्री स्थापित की। कारोबार शहर से निकलकर प्रदेश के तमाम जिलों तक पहुंचा। वर्तमान में इनके 150 से अधिक उत्पाद देश के 21 राज्यों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। सालाना टर्नओवर 800 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
भटकी है दोस्ती
सुरेंद्र गुप्ता कहते हैं कि आज की युवा पीढ़ी अपने स्वार्थ के चलते दोस्त बनते हैं और पैसे के चलते यारी को दाग लगा देते हैं। हमारी जमाने में ऐसा नहीं था। सुरेंद्र ने बताया कि जब हम आठ साल के थे, तब पिता जी दोस्तों की कहानी किस्से सुनाया करते थे। वो अक्सर हमसे यही कहते थे कि बेटे जिससे भी दोस्ती करना उसे पूरी जिंदगी जारी रखना। वहीं सोम कहते हैं कि हम तो आज की युवा पीढ़ी से कहते हैं कि समाज के लिए कुछ करना है तो पहले एक अच्छा इंसान बनों और फिर ऐसा दोस्त चुनों जो तुम्हें गलत निर्णय के वक्त लाठी की तरह खड़ा रहे। जब भी पैर भटके तो उसे रोक दे। सोम बताते हैं कि इन 55 सालों में हम दोनों की जिंदगी में कई उतार-चड़ाव आए पर यारी की ताकत के चलते हम नहीं डिगे।