दो दशक पुराने मानकों के आधार पर हुए शिक्षक संघों ने सर्वे का विरोध शुरू कर दिया है। शिक्षक संघों का कहना है कि यह मानक तब के हैं जब छात्र संख्या अधिक हुई करती थी। अनेक कारणों से छात्र संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है। इन मानकों के आधार पर अगर जनशक्ति (छात्र संख्या के आधार पर शिक्षकों की संख्या) निर्धारण हुआ तो व्यवस्था चरमरा जाएगी। इससे प्रबंधक व शिक्षक दोनों चिंता में हैं।
सर्वे में 1999 के मानकों को आधार माना गया है। इन मानकों के आधार पर कक्षा 06 से 08 तक 60 छात्र पर एक सेक्शन, 91 तक दूसरा सेक्शन और 151 तक तीसरा सेक्शन तय होता है। कक्षा 09 से 10 तक पहले सेक्शन पर यह संख्या 65, दूसरे सेक्शन पर 98 और तीसरे सेक्शन पर 163 है। कक्षा 11 व 12 में पहले सेक्शन में 80, दूसरे में 121 और तीसरे में 281 छात्र संख्या तय की गई थी। सेक्शन के आधार पर छात्र संख्या के मानक पहली बार 1974 में बने। 1999 में संशोधन हुआ। छात्र संख्या लगभग दो गुना कर दी गई। शिक्षकों की संख्या भी कम हो गई। 2019 में शासन ने जो टास्कफोर्स से सर्वे कराया है उसमें 1999 के मानकों के आधार पर शिक्षक और छात्र का अनुपात देखा जाना है।
इस मामले पर माध्यमिक शिक्षक संघ (पांडेय गुट-बाबा) ने हाईकोर्ट जाने का फैसला किया है। संघ के महामंत्री हरिश्चंद्र दीक्षित ने बताया कि उन्होंने मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव (माध्यमिक) को पत्र लिखकर दो दशकों में बदली स्थितियों का हवाला देते हुए मानकों पर पुनर्विचार के लिए कहा है। यदि शासन ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो संघ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा। उधर, भाजपा शिक्षक प्रकोष्ठ के डॉ. दिवाकर मिश्र ने कहा कि वे बुधवार को शिक्षा मंत्री से भेंट कर नए जनशक्ति निर्धारण के बारे में वार्ता करेंगे।