इस तरह की मानसिक बीमारी में पहले मरीज को दवाइयां दी जाती हैं। शुरूआती लक्षण होने पर दवाइयों से ही आराम मिल जाती है, लेकिन जिन मरीजों में यह बीमारी जटिल स्तर तक पहुंच जाती हैं उनकी सर्जरी करनी पड़ती है। इसमें दिमाग के सबसे जटिल हिस्से थैलमस और बेसल गैंगलिया से यह बीमारी कंट्रोल होती है। यहां का ऑपरेशन बेहद जटिल होता है।
इस तरह की बीमारी में दो तरह से सर्जरी की जाती है। डॉ. मनीष सिंह के मुताबिक एक थैलमस के हिस्से में कुछ न्यूरांस को डैमेज कर देते हैं और दूसरे तरह की सर्जरी में ब्रेन की कुछ कोशिकाओं में छेद करके छोटा सा इलेक्ट्रोड लगा देते हैं। पार्किंसन में भी इलेक्ट्रोड काम करता है। यह बिल्कुल पेसमेकर की तरह ही काम करता है और यह बटन से नियंत्रित होता है जो ब्रेन के बाहरी हिस्से में लगाया जाता है।
इस तरह की सर्जरी बेहद महंगी होती है। देश के कुछ अस्पतालों में ही यह सुविधा फिलहाल मौजूद है। जिनमें इसका खर्च करीब पांच लाख रुपए आ रहा है। इसमें आयुष्मान योजना के जरिए मरीजों को लाभ मिल सकता है। आयुष्मान योजना से मरीजों को इलेक्ट्रोड खरीदने में परेशानी नहीं होगी। जल्द ही हैलट अस्पताल में भी इस तरह की सर्जरी शुरू हो जाएगी।