स्वास्थ्य विभाग को लेकर सरकार हमेशा से प्रयासरत रही है। समाज मे फैले कुपोषण को लेकर सरकार बड़ा अभियान चला रही है। जिसमें स्वास्थ्य विभाग का अहम रोल है बावजूद इसके स्वास्थ विभाग के अफसर ही पलीता लगा रहे हैं। अभियान को सफल बनाने के लिए माध्यमिक, परिषदीय व आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों की नियमित स्वास्थ जांच के लिए सभी ब्लाकों में दो-दो चिकित्सीय आरबीएसके टीमें लगाई गई हैं। इसमें माइक्रोप्लान के अंतर्गत निश्चित दिन केंद्र व स्कूल पर जाकर बच्चों का वजन करते हुए कुपोषण की जांच करना होता है। जहां बीमार बच्चों का उपचार व रेफर किया जाता है। सरकार द्वारा इस कार्य के लिए सभी आरबीएसके टीमों पर प्रतिमाह करीब 6 लाख रुपये फूंके जा रहे हैं, लेकिन टीमें स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्रों पर न जाकर कागजों पर सारा खेल कर देती हैं।
बता दें कि पिछले वर्ष 11 माह बीतने के बाद भी बाल विकास को स्वास्थ अधिकारियों ने माइक्रोप्लान ही नहीं दिया था। डीआईओएस द्वारा जिला स्वास्थ समिति की बैठक में मामला उठाए जाने पर सीडीओ की सख्ती के बाद वित्तीय वर्ष के दस दिन शेष रहने पर माइक्रोप्लान उपलब्ध कराया गया था। वहीं वर्तमान वित्तीय वर्ष के दो माह पूरे होने के करीब हैं और आरबीएसके टीमों के माइक्रोप्लान अभी तक नही मिले हैं। इससे कुपोषण के खिलाफ चल रही जंग कागजों पर सिमट कर रह गई है। स्वास्थ विभाग की ओर से आंगनबाड़ी केंद्रों पर आरबीएसके टीमों के भ्रमण का अभी तक माइक्रोप्लान नहीं मिला है। सीडीओ को जानकारी दी गई है। सीडीओ जोगिंदर सिंह ने बताया कि जिला कार्यक्रम अधिकारी राकेश यादव द्वारा माइक्रो प्लान न देना गंभीर विषय है। सीएमओ को तत्काल माइक्रोप्लान उपलब्ध कराने का पत्र भेजा जाएगा।