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जेसीबी और टै्रक्टर से लखनऊ-दिल्ली तक जाते हैं केडीए के अधिकारी

locationकानपुरPublished: Feb 22, 2020 01:33:16 pm

टैक्सी के नाम पर लगाए गए बिल देख चौंके जांच अधिकारी बाइक और जेसीबी से हुई दिल्ली और प्रयागराज तक की यात्रा टैक्सी घोटाले की शिकायत पर शुरू हुई जांच से मचा हडक़ंप

जेसीबी और टै्रक्टर से लखनऊ-दिल्ली तक जाते हैं केडीए के अधिकारी

जेसीबी और टै्रक्टर से लखनऊ-दिल्ली तक जाते हैं केडीए के अधिकारी

कानपुर। केडीए यानि कानपुर विकास प्राधिकरण के अफसरों ने नए तरीके का घोटाला कर अपनी जेब भरी। जब इसका खुलासा हुआ तो जांच अधिकारी भी तरीका देखकर चौंक पड़े। इसे टैक्सी घोटाला नाम दिया गया है, लेकिन टैक्सी के नाम पर जिन वाहनों का इस्तेमाल दिखाया गया है, उन वाहनों पर शायद ही किसी विभाग के अधिकारी यात्रा करते हों। मामला सामने आने के बाद कमिश्नर ने इसकी जांच कराई, जिसमें कई बिल ऐसे थे जिन्हें देख जांच अधिकारी भी चौंक पड़े। दरअसल जिन वाहनों नंबरों को यात्रा बिलों पर दिखाया गया है उनमें कई के नंबर टैक्सी नहीं बल्कि दूसरे वाहनों के निकले।
कार नहीं बाइक और जेसीबी से गए दिल्ली
केडीए के अफसरों को जेसीबी की सवारी इतनी पसंद है कि वे कानपुर शहर में इसी पर चलते हैं और तो और प्रयागराज और दिल्ली तक की यात्रा इसी से कर डालते हैं। पढक़र भले ही आपको यकीन ना हो लेकिन लगाए गए टैक्सी बिल इस बात को साबित करते हैं। जिससे पता चलता है कि कार से चलते वाले अफसर कागजों के मुताबिक मोटरसाइकिल और जेसीबी से चलते हैं। कागज बताते हैं कि हाईकोर्ट की तारीख अटेंड करने के लिए किसी ने इलाहाबाद तक जेसीबी से यात्रा का बिल लगाया तो किसी ने बाइक पकड़ ली। लखनऊ में प्रमुख सचिव आवास और विधानसभा समितियों की बैठकों में जाने को ऑटो और ट्रैक्टर तक की सवारी की है।

कागजी खेल में कई फसेंगे
सब जानते हैं कि अफसर केवल लग्जरी कारों से ही चलते हैं, लेकिन बिलों के मुताबिक वह किन वाहनों से चल रहे हैं, यह शायद ही उन्हें पता है। जांच के बाद इसका खुलासा होगा। उन्होंने जब बिल पर हस्ताक्षर किए होंगे तो वाहन नंबर तक नहीं देखा होगा। अगर देखा भी होगा तो यह पता नहीं होगा कि यह नंबर किसी लग्जरी कार का है या ट्रैक्टर अथवा जेसीबी का। दरअसल बिलों में किसी और की निजी कारें लग्जरी से टैक्सी बन जाती हैं।
टैक्सी की आड़ में टैक्स चोरी
नियमानुसार सरकारी काम के लिए की गई यात्रा की बुकिंग में टैक्सी नंबर की गाडिय़ां ही चलनी चाहिए। केडीए ने टैक्सी के लिए जो टेंडर निकाला था उसे लेने वाले को किसी की टैक्सी नंबर की गाड़ी देनी होती है मगर ऐसा नहीं होता। अधिकांश निजी गाडिय़ों को ही टैक्सी के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। कच्चे बिल पर तो सब घालमेल चल जाता है मगर जब पक्के बिल की बात आती है तो टैक्सी नंबर ही देना होता है। यानि, सीधे तौर पर असलियत छिपाकर टैक्सी चोरी भी की जाती है। इसीलिए नंबर उल्टे सीधे दे दिए जाते हैं ताकि ठेकेदार की गर्दन न फंसे। मगर इस बार मामला फंस ही गया।

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