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कक्षा में सबसे पीछे बैठते थे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,जन्मदिन पर डीएवी से लेकर परौंख गदगद

locationकानपुरPublished: Oct 01, 2019 06:43:52 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

कानपुर देहात के एक किसान के घर पर 1945 को हुआ था राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जन्म, ऐसे पहुंचे परौंख से रायसीना हिल्स।

कक्षा में सबसे पीछे बैठते थे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,जन्मदिन पर डीएवी से लेकर परौंख गदगद

कक्षा में सबसे पीछे बैठते थे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद,जन्मदिन पर डीएवी से लेकर परौंख गदगद

कानपुर। देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जन्मदिन बड़े धूम-धाम के साथ मनाया। उनके मित्रों ने केक काटकर लंबी उम्र की कामना की। वहीं राष्ट्रपति के पूर्व अध्यापक त्रिलोकी नाथ टंडन और हरि राम कपूर इस मौके पर अपने छात्र की बचपन की बातों को याद कर भावुक हो गए। त्रिलोकी नाथ टंडन ने बताया कि कुछ फरवरी में वो कानपुर आए थे और हमें कार्यक्रम स्थल पर बुलाया था। मंच से खुद नीचे उतर कर आए और स्वास्थ्य के साथ ही समस्याओं के बारे में पूछा था। गर्व है कि हमारी क्लास में सबसे पीछे बैठने वाला छात्र आज देश की सबसे बड़ी कुर्सी पर बैठा है और समाज के उत्थान के लिए कार्य कर रहा है।

परौंख में हुआ था जन्म
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का जन्म कानपुर देहात के परौंख गांव में 1945 को हुआ था। रनौख-परौंख से रायसीना हिल्स तक की इस यात्रा में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद कई उतार-चढ़ाव देखे। राज्यसभा से लेकर राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे, लेकिन कभी जमीन को नहीं छोड़ा। त्रिलोकी नाथ टंडन बताते हैं कि राष्ट्रपति बनने के बाद भी उनके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया है। कुछ दिन पहले मुलाकात हुई तो हमें गले लगाया और स्कूल के दिनों की बातों को याद कर हंस पड़े। कहते हैं, राष्ट्रपति जमीन से निकले नेता हैं और जनसेवा में पूरा जीवन अपर्ण कर दिया।

पैर छूकर लिया था आर्शीवाद
त्रिलोकी नाथ टंडन ने बताया कि फरवरी 2019 में राष्ट्रपति कानपुर आए थे। हमें हरि राम कपूर और प्यारे लाल वर्मा को सम्मानित किया था। हम उन्हें गणित के अध्यापक पढ़ाते थे तो हरिराम कपूर एकाउंट्स के अध्यापक थे, जबकि प्यारे लाल वर्मा कामर्स पढ़ाते थे। बताया, राष्ट्रपति ने अंगवस्त्र पहनाने के बाद हम दोनों के चरण छुए। 96 वर्ष के प्यारेलाल मंच पर आने में असमर्थ थे तो राष्ट्रपति खुद मंच से नीचे आए। अपने वयोवृद्ध गुरु के चरण स्पर्श किए और उनसे आशीर्वाद लिया।

इस वजह से बैठते थे पीछे
त्रिलोकी नाथ टंडन बताते हैं कि वह जानबूझकर कक्षा में सबसे पीछे बैठते थे। क्योंकि आगे बैठने वाले बच्चों से सवाल पूछे जाते थे। शिक्षक के सवालों से बचने के लिए पीछे बैठते थे। लेकिन जब क्लास के छात्र कोई प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते तो रामनाथ कोंविद खड़े होकर तत्काल उसका जवाब दे दिया करते थे। बताते हैं, राष्ट्रपति लाल इमली के पास बनें क्वाटर्स के बाहर रात में रोड लैम्प के नीचे पढ़ाई करते थे। सुबह गर्मी बहुत होती थी इसलिए घर से बाहर बैग लेकर निकलते थे।

सबसे छोटे हैं राष्ट्रपति कोविंद
रामनाथ कोविंद पांच भाइयों व चार बहनों में सबसे छोटे हैं। दो भाइयों व चारो बहनों का निधन हो चुका है। एक भाई मध्य प्रदेश के गुना व दूसरे आज भी गांव में रहते हैं। वे स्वयं भी नियमित गांव से जुड़े रहते हैं। उन्होंने कानपुर के दयानंद विहार में अपना घर भी बनवा लिया, फिर भी वे गांव लगातार जाते रहे। गांव वालों की परेशानियों से जुड़ते हुए उन्होंने अपना गांव वाला घर बारातशाला के लिए दान कर दिया। साथ ही गांव में प्राइमरी स्कूल खुलवाया।

सिविल सर्विसेज में पाई सफलता
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने पढ़ाई की शुरुआत कानपुर देहात के संदलपुर ब्लाक के खानपुर प्राइमरी स्कूल से थी। नौवीं में कानपुर नगर के बीएनएसडी इंटर कालेज में प्रवेश लिया तो वहीं से 12वीं पास कर बीकॉम की पढ़ाई डीएवी कालेज से की। डीएवी लॉ कालेज से एलएलबी कर वे आईएएस की तैयारी करने दिल्ली चले गए। सिविल सर्विसेज की परीक्षा में वे सफल भी हुए किन्तु आईएएस कॉडर न मिलने के कारण उन्होंने सिविल सर्विसेज में न जाने का फैसला किया और दिल्ली हाई कोर्ट में वकालत करने लगे।

इस तरह से सियायत में एंट्री
आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी तो कोविंद तत्कालीन वित्तमंत्री मोरारजी देसाई के संपर्क में आए। वे उनके निजी सचिव बने। इसके साथ ही वे भाजपा नेतृत्व के संपर्क में आए तो धीरे-धीरे भाजपा की दलित राजनीति के चेहरे बन गए। पार्टी ने 1990 में कोबिद को घाटमपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया, किन्तु वे चुनाव हार गए। इसके बाद 1993 व 1999 में पार्टी ने उन्हें राज्य सभा भेजा। इस दौरान वे भाजपा अनुसूचित मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बने। फिर राज्यपाल बनाए और केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति चुने गए।

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