सीएसजेएमयू ने किया अलर्ट
सीएसजेएमयू के शोध में इसका खुलासा हुआ है। साथ ही अलर्ट किया गया है कि अगर रोक न लगी तो गंगा में रहने वाले जलीय जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इस प्रदूषित पानी से जहरीले क्रोमियम हेक्सावैलेंट की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिसका सीधा असर मछलियों के साथ हर तरह के जलीय जंतुओं पर भी पड़ रहा है। विवि के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिक डॉ. धर्म सिंह और छात्रों ने पिछले एक साल के दौरान गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण पर रिसर्च किया है। धर्म सिंह के मुताबिक गंगा में टेनरियों का पानी गिरने से प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
सीएसजेएमयू के शोध में इसका खुलासा हुआ है। साथ ही अलर्ट किया गया है कि अगर रोक न लगी तो गंगा में रहने वाले जलीय जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इस प्रदूषित पानी से जहरीले क्रोमियम हेक्सावैलेंट की मात्रा लगातार बढ़ रही है, जिसका सीधा असर मछलियों के साथ हर तरह के जलीय जंतुओं पर भी पड़ रहा है। विवि के पर्यावरण विभाग के वैज्ञानिक डॉ. धर्म सिंह और छात्रों ने पिछले एक साल के दौरान गंगा में बढ़ रहे प्रदूषण पर रिसर्च किया है। धर्म सिंह के मुताबिक गंगा में टेनरियों का पानी गिरने से प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
जलीय जीवों पर किया गया शोध
गंगाजल के प्रदूषण को मापने के लिए कई शोध हो चुके हैं लेकिन इसका मछली या जलीय जंतुओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, यह पता लगाना जरूरी था। इसी को देखते हुए कवायद शुरू की गई। गंगा में सबसे अधिक मिलने वाली चन्ना मछली पर शोध शुरू किया। स्वच्छ गंगा में मछली सामान्य और स्वस्थ पाई गई जबकि प्रदूषित पानी में मिली मछली में कई बदलाव सामने आए। मछली का आकार सीधे के बजाए घुमावदार होने लगा। उसकी त्वचा को क्षति पहुंच रही है। मछली के स्केल्स का क्षरण हो रहा है, जिससे त्वचा पर घाव हो रहे हैं। इस केमिकल के कारण मछली के घाव न होने के बावजूद अक्सर खून का रिसाव होता रहता है। उनका विकास भी बाधित हो रहा है।
गंगाजल के प्रदूषण को मापने के लिए कई शोध हो चुके हैं लेकिन इसका मछली या जलीय जंतुओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, यह पता लगाना जरूरी था। इसी को देखते हुए कवायद शुरू की गई। गंगा में सबसे अधिक मिलने वाली चन्ना मछली पर शोध शुरू किया। स्वच्छ गंगा में मछली सामान्य और स्वस्थ पाई गई जबकि प्रदूषित पानी में मिली मछली में कई बदलाव सामने आए। मछली का आकार सीधे के बजाए घुमावदार होने लगा। उसकी त्वचा को क्षति पहुंच रही है। मछली के स्केल्स का क्षरण हो रहा है, जिससे त्वचा पर घाव हो रहे हैं। इस केमिकल के कारण मछली के घाव न होने के बावजूद अक्सर खून का रिसाव होता रहता है। उनका विकास भी बाधित हो रहा है।
मछली खाने वालों के लिए खतरा
धर्म सिंह ने बताया कि गंगा में पाई जाने वाली अधिकतर मछलियां खाई भी जाती हैं और क्रोमियम हेक्सावैलेंट वाले पानी में रह रही चन्ना पनचटा मछली को कोई भी खाता है तो निश्चित है कि वह भी किसी न किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है। हालांकि इसका मनुष्य जीवन पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह शोध का विषय है। बताया कि टेनरियों के पानी से गंगा में पीएच, बीओडी, डीओ, नाइट्रेट समेत कई तरह के प्रदूषण तेजी से बढ़ रहे हैं। इसी से क्रोमियम के स्तर में भी वृद्धि हो रही है।
धर्म सिंह ने बताया कि गंगा में पाई जाने वाली अधिकतर मछलियां खाई भी जाती हैं और क्रोमियम हेक्सावैलेंट वाले पानी में रह रही चन्ना पनचटा मछली को कोई भी खाता है तो निश्चित है कि वह भी किसी न किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो सकता है। हालांकि इसका मनुष्य जीवन पर कितना प्रभाव पड़ेगा, यह शोध का विषय है। बताया कि टेनरियों के पानी से गंगा में पीएच, बीओडी, डीओ, नाइट्रेट समेत कई तरह के प्रदूषण तेजी से बढ़ रहे हैं। इसी से क्रोमियम के स्तर में भी वृद्धि हो रही है।