scriptअखिलेश के भरोसे को कायम नहीं रख पायीं डिंपल | The reason for the defeat of SP on Kannauj Lok Sabha seat | Patrika News

अखिलेश के भरोसे को कायम नहीं रख पायीं डिंपल

locationकानपुरPublished: May 24, 2019 03:46:48 pm

मंच पर माया के पैर छूना फायदेमंद रहा या हुआ नुकसान,आखिर यादव क्यों हुआ नाराज, परंपरागत वोट छिटका

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अखिलेश के भरोसे को कायम नहीं रख पायीं डिंपल

कानपुर। समाजवार्दी पार्टी का गढ़ कही जाने वाली कन्नौज लोकसभा सीट गंवाना सपाध्यक्ष को भी समझ में नहीं आ रहा है। २० सालों तक अपने कब्जे में रही इस सीट पर प्रचार के दौरान जब डिंपल यादव ने सपाई संस्कार कहकर मायावती के पैर छुए तो यह उम्मीद जताई कि इससे दलित वोट बैंक पर उनकी पकड़ मजबूत हो जाएगी, लेकिन यादव क्यों नाराज हो गया इस बात को लेकर क्षेत्र में चर्चा है।
पूरे भरोसे से अखिलेश ने छोड़ी थी सीट
अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सीट पर उपचुनाव लड़कर सांसद बनने वाले अखिलेश यादव के लिए कन्नौज शुरू से ही सुरक्षित सीट रही। २० सालों से यह सीट सपा के कब्जे में थी। पहले मुलायम फिर अखिलेश और बाद में डिंपल यादव यहां से सांसद रहीं। अखिलेश को पूरा भरोसा था कि कन्नौज में जीत उनके नाम पर ही मिलती है, और इसी भरोसे के साथ अखिलेश कन्नौज छोड़कर आजमगढ़ से चुनाव लड़े।
गठबंधन के चलते मानी थी जीत पक्की
हमेशा से ही अखिलेश यादव अकेले अपने दम पर कन्नौज जीतते आए। जब अखिलेश सीएम बने तो कन्नौज में उपचुनाव कराया और डिंपल को सांसद बना दिया। फिर २०१४ में डिंपल को मैदान में उतारा और १९००० वोटों के अंतर से जीत दिलाई। इस बार बसपा से गठबंधन हुआ तो अखिलेश को लगा कि अब तो बसपा का वोट भी उनके साथ है तो जीत को कोई टाल नहीं सकता। मगर बसपा से गठबंधन भी यह सीट उनकी झोली में नहीं डाल सका।
कहां गया यादव वोटबैंक
चुनाव प्रचार के दौरान २५ अप्रैल को तिर्वा में महागठबंधन की रैली के दौरान मंच पर जब डिंपल यादव ने मायावती के पैर छुए तो सियासत में बड़ी हलचल पैदा हो गई। मीडिया में यह तस्वीर छा गई। डिंपल ने इसे सपाई संस्कार कहा। लेकिन डिंपल के इस कदम से कन्नौज सीट पर ढाई लाख से ज्यादा यादवों का वोट बिखर गया। कन्नौज के एक सपा नेता ने बिना नाम बताए कहा कि गठबंधन तो ठीक था पर पैर छूने की कोई जरूरत नहीं थी। शहर के ही अनिल मिश्र बताते हैं कि तिर्वा में जो हुआ उसके बाद सपाई इस बात की चर्चा भी नहीं कर रहे थे। पूछने पर भी बात घुमा देते थे। सपा कार्यकर्ता संदीप दुबे भी मानते हैं कि पार्टी में इस बात को लेकर लोग खुश नहीं थे।
बाबा साहब का अपमान नहीं भूले दलित
एक ओर डिंपल ने मायावती के पैर छूकर दलितों को अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया तो दूसरी ओर दो दिन बाद २७ अप्रैल को तिर्वा में ही रैली के दौरान पीएम मोदी ने सपा शासनकाल के दौरान बार-बार किए गए बाबा साहेब के अपमान की याद ताजा कर दी। मोदी बोले कि सपा सरकार ने तिर्वा में मेडिकल कॉलेज का नाम बाबा साहब के नाम से बदलकर राजकीय मेडिकल कॉलेज कर दिया था। बाबा साहेब के नाम वाला बोर्ड तोड़ा गया और पैरों तले कुचला गया।
पहले आगे रहीं फिर पिछड़ गईं डिंपल
मतगणना के शुरुआती दौर में डिंपल कुछ आगे रहीं, पर दोपहर बाद से वह पिछडऩे लगीं, जिसके बाद से बराबरी पर नहीं आ पाईं। सुब्रत ने 12 हजार 86 वोटों से जीत हासिल की। कुल 11,37,100 वोटों की गिनती में सुब्रत को 5,61,286 वोट मिले जबकि डिंपल 5,49,200 मत पा सकीं। डिंपल ने पिछली बार से वोट बैंक जरूर बढ़ाया पर सफलता हासिल करने से दूर रह गईं।
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