scriptआज के नए दौर में भी लड़कियों को होना पड़ रहा पुरानी सोच का शिकार | The society believes in the difference between boys and girls | Patrika News

आज के नए दौर में भी लड़कियों को होना पड़ रहा पुरानी सोच का शिकार

locationकानपुरPublished: Jun 13, 2019 11:33:22 am

उपेक्षा और भेदभाव के चलते उनकी सेहत पर पड़ रहा बुरा असर, अपनी बात कहने में भी लगता है डर, लड़कों से माना जाता पीछे

difference between boys and girls

आज के नए दौर में भी लड़कियों को होना पड़ रहा पुरानी सोच का शिकार

कानपुर। आज की लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं, यह बात केवल कहने भर की है। लड़कियों को देवी का रूप मामने वाले समाज में भी लड़कियों को लड़कों के मुकाबले कम आंका जाता है। वारिस की जरूरत के चलते लड़कों को लड़कियों से ज्यादा महत्व दिया जाता है। कई परिवारों में तो लड़का पैदा न होने पर बहू को भी उत्पीडऩ का शिकार होना पड़ता है। जन्म के बाद से ही लड़कियों को लड़कों के मुकाबले अनदेखा किया जाता है। इसी भेदभाव के चलते लड़कियों की जिंदगी घुटन भरी हो जाती है और वे अपनी बात कहने से भी कतराती हैं।
गर्भ में हत्या पर अंकुश नहीं
भले ही ***** परीक्षण को कानूनी तौर पर अपराध घोषित किया गया हो, पर आज भी कई जगह चोरी छिपे ***** परीक्षण होता ही है। जिसके चलते लड़की होने पर उसे गर्भ में ही मार दिया जाता है। ***** परीक्षण और भ्रूण हत्या के मामले अक्सर अखबारों की सुर्खियां बनते हैं। जो बच जाती हैं उन्हें उपेक्षा झेलनी होती है। आज भी 80 फीसदी लड़कियों के साथ घर के अंदर और घर के बाहर भेदभाव बरता जा रहा है। इससे उनके स्वास्थ्य और व्यक्तित्व पर खराब असर पड़ रहा है।
एक अजीब सा खौफ
लड़कियां खुलकर अपनी बात नहीं कह पा रही है। उनके अंदर एक खौफ है। वह समझ चुकी हैं कि लड़कों के मुकाबले में उनकी नहीं चलने वाली है। घर में मां-बाप के सामने वह समझौता वादी हो रही हैं यानी लड़कों की ही पसंद को अपनी पसंद मान रहीं। यह तथ्य, चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विवि के कॉलेज ऑफ होमसाइंस के आहार विज्ञान एवं पोषण विभाग के रिसर्च में सामने आए हैं। शोधकर्ता डॉ. सीमा सोनकर और रुखसार ने 250 लड़कियों से उनकी रोजमर्रा जिंदगी से जुड़े 10 सवाल किए। इन सवालों में घर और बाहरी समाज में उनके सामने आने वाली दिक्कतों पर बातचीत की गई।
घर में उपेक्षा, बाहर छींटाकशी
डॉ. सीमा सोनकर के मुताबिक शोध में शामिल लड़कियों को काफी काउंसिलिंग की गई और उनका नाम पता गोपनीय रखने की बात कही गई तब जाकर उन्होंने खुलकर बात कही। डॉ. सीमा सोनकर के मुताबिक शोध का एक चरण पूरा हो चुका है। 70 फीसदी लड़कियों ने माना है कि उन्हें स्कूल और कॉलेज आने जाने में कभी न कभी पुरुषों की छींटाकशी का शिकार होना पड़ा है। बड़ी संख्या में किशोरियों ने माना कि उनके साथ लगभग रोजाना रास्ते में छींटाकशी होती है मगर वह कुछ कर नहीं पाती हैं। अपने साथ हुई घटना के बारे में घर पर बताने पर उल्टे मां-पिता हिदायत देने लगते हैं।
हर मामले में दोयम दर्जा
ज्यादातर परिवारों में लड़के को ही हर मामले में प्राथमिकता दी जाती है और लड़कियों को दोयम दर्जे का माना जाता है। लड़के की हर ख्वाहिश पूरी होती है, जबकि लड़कियों को इंतजार करना पड़ता है, या फिर कई बार मना ही कर दिया जाता है। पढ़ाई में भी लड़के को ऊंची शिक्षा दिलाई जाती है और लड़कियों को बस जरूरी शिक्षा ही मिलती है। वह अपनी सेहत के बारे में भी खुलकर घर में बातचीत नहीं करती हैं। इलाज कराने में भी प्राथमिकता के दूसरे पायदान पर रहती हैं। अगर लड़के को बीमारी होती है तो उसे फौरन इलाज के लिए ले जाया जाता है मगर अभिभावक लड़कियों के मामले में टालमटोल करते हैं।

ट्रेंडिंग वीडियो