प्रशासन और पुलिस की सख्ती की वजह से देसी पटाखे बाजार में ज्यादा नहीं बिक सके, लेकिन ब्रांडेड पटाखों की वजह से भी जमकर प्रदूषण फैला. महताब, कलर्ड फुलझड़ी और हंटर जैसे पटाखों ने खासा प्रदूषण बढ़ाया. इन पटाखों के चलाने पर बच्चों को भी सांस लेने में काफी दिक्कत हुई. हवा न चलने से भी प्रदूषण का स्तर बढ़ता चला गया. वहीं परेवा के दिन भी भारी मात्रा में लोगों ने पटाखे जलाए. भाई दूज के दिन प्रदूषण का स्तर थोड़ा सामान्य हुआ, जो रात होते-होते फिर से बढ़ गया.
पटाखों की वजह से कानपुर में स्मॉग की गहरी चादर देखने को मिली. गंगा बैराज, मोतीझील, जाजमऊ, पनकी आदि क्षेत्रों में हालात यह हो गए थे कि 5 मीटर विजिबिलिटी भी नहीं बची थी. इससे हाई-वे पर वाहन भी रेंग-रेंग कर चलते रहे. वहीं यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी कहते हैं कि अभी आंकड़े उनके पास नहीं हैं, लेकिन पिछले सालों की तुलना करें तो पीएम-2.5 का लेवल दीपावली के मौके पर खतरनाक स्तर पर होता है. इस बार भी शुरुआती जांच में मालूम चला कि कानपुर में हवा न चलने से स्मॉग की गहरी चादर रही, जिसने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़े.