पिता थे प्रोफेसर
रवि कुमार मेहरोत्रा की जन्म आर्यनगर निवासयी छोटेलाल मेहलोत्रा के घर में हुआ था। छोटेलाल वीएसएसडी कालेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। इनके पांच बेटे व दो बेटियां थीं। छोटेलाल के बड़े बेटे डॉक्टर मुराली लाल मेहरोत्रर ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) विशेषज्ञ रहे। जबकि छोटे बेटे श्याम बिहारी, विपिन बिहारी, शशि कुमार मेहरोत्रा के अलावा कांति और सुशीला बेटियां थी। रवि बाबू ने बारवीं तक की पढ़ाई सिविल लाइंस स्थित गुरुनानक खत्री (जीएनके) इंटर कालेज से की। शिक्षा-दिक्षा के बाद उन्होंने नौकरी के अपने कॅरियर की शुरूआत की और फिर पानी के जहाज का कारोबार शुरू किया। आज रवि बाबू को शिपिंग के कारोबार में डंका बजता है।
पहले की नौकरी
1964 में मरीन इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने प्राइवेट शिपिंग कंपनी शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया में नौकरी की। कुछ सालों तक काम करने के बाद इन्होंने ईरान की शिपिंग कंपनी ज्वाइन की। मार्च, 1975 में ईरान-ओ-हिंद के मैनेजिंग डायरेक्टर बने। ईरान में एक दशक तक काम किया। 1984 के बाद इन्होंने लंदन में अपना खुद का शिपिंग कारोबार स्थापित किया। तब से से परिवार समेत वहीं पर रह रहे हैं। रवि के चार भाई और दोनों बहनों का निधन हो चुका है। इनका बेटा सौरभ और बेटी मंजरी सेठ भी विदेश में रहते हैं। इन्होंने अपने एक जहाज का नाम आमेर-कानपुर रखा है।
मां के नाम से ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट
रवि कुमार के बचपन के मित्र सुखदेव श्रीवास्तव बताते हैं कि आर्यनगर में जिस स्थान पर रवि बाबू का घर था, वहां अब उनकी मां अमर देवी के नाम से अमर-मेरीटाइम ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुला है। मां के निधन के बाद वर्ष 2000 में उन्होंने उत्तर भारत के पहले मरीन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की। उनकी पहली कंपनी का नाम भी अमर शिपिंग है। सुखदेव कहते हैं कि पिछले माह रवि बाबू कानपुर आए थे और कहा था कि उनकी कंपनी में जितने जहाज बढ़ते जाएंगे, उन सभी के नाम उत्तर प्रदेश के शहरों के नाम पर होंगे। सुखदेव ने बताया कि 2021 तक प्रयागराज और दूसरे जहाज वाराणसी बनकर तैयार हो जाएंगे।
नहीं बदले रवि बाबू
सुखदेव बताते हैं कि रवि बाबू जब भी मिलते हैं तो वही कनपुरिया स्टाइल में बातें करते हैं। पिछले माह अन्य मित्रों के साथ वो पैदल ही आर्यनगर से मोतीझील तक गए। पंडित जी की दुकान में चाय की। उन्होंने उस वक्त बताया था कि इन जहाजों का अपने शहरों के नाम पर इसलिए किया ताकि उन्हें अपनी माटी और अपनों की याद आती रहे। सुखदेव ने बताया कि रवि बाबू की ससुराल बरेली में हैं। वो साल में दो से तीन बार कानपुर आते हैं और बिठूर स्थित ब्रम्हवर्त घाट में डुबकी लगाते हैं।