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शिपिंग किंग का तन लंदन पर मन में भारत, यूपी के शहरों के नाम से जहाजों की पहचान

locationकानपुरPublished: Feb 21, 2019 01:41:35 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

आर्यनगर निवासी उद्योगपति रवि मेलहोत्रा नहीं भूले अपनी कनपुरिया स्टाइल, जब भी आते हैं तो गंगा में डुबकी लगाते हैं, भारत का बढ़ा रहे मान।

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शिपिंग किंग का तन लंदन पर मन में भारत, यूपी के शहरों के नाम से जहाजों की पहचान

कानपुर। बचपन से देश के लिए कुछ अलग करने की चाहत थी। पढ़ाई-लिखाई के बाद सरकारी बाबू बनने की लालसा छोड़ कारोबार के जरिए भारत के अंदर बेरोजगारों को रोजगार देने के चलते उन्होंने अपने पैर कानपुर से बाहर निकाले और मुम्बई स्थित एक शिपिंग कंपनी में नौकरी की। फिर खुद का एक छोटे से कारोबार की शुरूआत की। कड़ी मेहनत और लगन के बल पर आर्यनगर निवासी रवि कुमार मेहरोत्रा विश्वविख्यात शिपिंग (पानी के जहाज) कंपनी के मालिक बन गए और अपना नया ठिकाना लंदन में बना लिया। पर वो विदेश जाने के बाद भी अपनी माटी को नहीं भूले। मेलहोत्रा ने अपने दो जहाजों के नाम कानपुर और आगरा रखा है। जबकि तीसरा प्रयागाराज तो चौथे का नाम बनरस रखेंगे।

पिता थे प्रोफेसर
रवि कुमार मेहरोत्रा की जन्म आर्यनगर निवासयी छोटेलाल मेहलोत्रा के घर में हुआ था। छोटेलाल वीएसएसडी कालेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर थे। इनके पांच बेटे व दो बेटियां थीं। छोटेलाल के बड़े बेटे डॉक्टर मुराली लाल मेहरोत्रर ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) विशेषज्ञ रहे। जबकि छोटे बेटे श्याम बिहारी, विपिन बिहारी, शशि कुमार मेहरोत्रा के अलावा कांति और सुशीला बेटियां थी। रवि बाबू ने बारवीं तक की पढ़ाई सिविल लाइंस स्थित गुरुनानक खत्री (जीएनके) इंटर कालेज से की। शिक्षा-दिक्षा के बाद उन्होंने नौकरी के अपने कॅरियर की शुरूआत की और फिर पानी के जहाज का कारोबार शुरू किया। आज रवि बाबू को शिपिंग के कारोबार में डंका बजता है।

पहले की नौकरी
1964 में मरीन इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने प्राइवेट शिपिंग कंपनी शिपिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया में नौकरी की। कुछ सालों तक काम करने के बाद इन्होंने ईरान की शिपिंग कंपनी ज्वाइन की। मार्च, 1975 में ईरान-ओ-हिंद के मैनेजिंग डायरेक्टर बने। ईरान में एक दशक तक काम किया। 1984 के बाद इन्होंने लंदन में अपना खुद का शिपिंग कारोबार स्थापित किया। तब से से परिवार समेत वहीं पर रह रहे हैं। रवि के चार भाई और दोनों बहनों का निधन हो चुका है। इनका बेटा सौरभ और बेटी मंजरी सेठ भी विदेश में रहते हैं। इन्होंने अपने एक जहाज का नाम आमेर-कानपुर रखा है।

मां के नाम से ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट
रवि कुमार के बचपन के मित्र सुखदेव श्रीवास्तव बताते हैं कि आर्यनगर में जिस स्थान पर रवि बाबू का घर था, वहां अब उनकी मां अमर देवी के नाम से अमर-मेरीटाइम ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खुला है। मां के निधन के बाद वर्ष 2000 में उन्होंने उत्तर भारत के पहले मरीन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की। उनकी पहली कंपनी का नाम भी अमर शिपिंग है। सुखदेव कहते हैं कि पिछले माह रवि बाबू कानपुर आए थे और कहा था कि उनकी कंपनी में जितने जहाज बढ़ते जाएंगे, उन सभी के नाम उत्तर प्रदेश के शहरों के नाम पर होंगे। सुखदेव ने बताया कि 2021 तक प्रयागराज और दूसरे जहाज वाराणसी बनकर तैयार हो जाएंगे।

नहीं बदले रवि बाबू
सुखदेव बताते हैं कि रवि बाबू जब भी मिलते हैं तो वही कनपुरिया स्टाइल में बातें करते हैं। पिछले माह अन्य मित्रों के साथ वो पैदल ही आर्यनगर से मोतीझील तक गए। पंडित जी की दुकान में चाय की। उन्होंने उस वक्त बताया था कि इन जहाजों का अपने शहरों के नाम पर इसलिए किया ताकि उन्हें अपनी माटी और अपनों की याद आती रहे। सुखदेव ने बताया कि रवि बाबू की ससुराल बरेली में हैं। वो साल में दो से तीन बार कानपुर आते हैं और बिठूर स्थित ब्रम्हवर्त घाट में डुबकी लगाते हैं।

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