रेट्रो बलबर तकनीक हुई कामयाब अभी तक ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर आंख निकालने की ही गाइड लाइन है। मगर ऐसा पहली बार संभव हो सका है। जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभाग ने ब्लैक फंगस को लेकर दो शोध पूरे किए हैं। पहला शोध रेट्रो बलबर तकनीक से रोगियों की आंख बचाने का है। खास बात यह है कि एक तो इस तकनीक से रोगियों की आंखें बच गईं और दूसरे सीधे आंख में इंजेक्शन लगाने पर कम मात्रा में दवा दी जाती है। जिससे दवा का इस्तेमाल भी कम हुआ है। अब रेट्रो बलबर तकनीक से 30 रोगियों की आंख बचाने संबंधी शोध अमेरिका के जर्नल में भेजा गया है।
दूसरे शोध में मिली ऐसी कामयाबी दूसरे शोध में डॉक्टरों ने ब्लैक फंगस के संक्रमण में आंख की नसें खराब होने के मामले में कामयाबी पाई है। यह शोध छह रोगियों पर इस्तेमाल किया गया। नसों से संबंधित शोध ताइवान के जर्नल में भेजा गया है। नेत्ररोग विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने बताया कि अमूमन ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर रोगी की आंख निकाल दी जाती है। यहां रोगियों की आंख बचाई गई, आंख में मूवमेंट भी आ गया। हालांकि सिर्फ उन्हीं रोगियों की आंख निकाली गई, जो पूरी तरह से खराब हो चुकी थी, जिसका कोई विकल्प नहीं था। फिलहाल रेट्रो बलबर तकनीक का प्रयोग कामयाब रहा है।