कानपुर में नहीं आया कश्मीरी सेब, रोजेदारों को रूला रहे विदेशी फल
कानपुर। यूं तो महंगाई से हर तबका त्रस्त है, मगर इसके प्रभाव से वे लोग भी नहीं बच पा रहे, जो ईश्वर अथवा अल्लाह में
ध्यान लगाते हैं। मुस्लिमों के अति पवित्र समझे जाने वाले रमजान माह की शुरुआत हो चुकी है। अल्लाहताला की इबादत में रोजे रखने वाले मुस्लिमों को इफ्तार की महंगी हुयी वस्तुओं की चिंता सताने लगी है। पिछले साल की तुलना में इस बार रमजान के माह में कश्मीरी सेब की मिठास रोजेदारों को नहीं मिल रही है। इसके बदले वाशिंगटन, स्वीटजरलैंड व अन्य देशों से आने वाली बैरायटी, चिली कैलोनियम व रायल गालस बाजार में छाई हैं। इससे सेब के भाव बड़ गए हैं। तो दूसरे फल भी ताव खा रहे हैं। इससे साफ है कि इस बार फल रमजान में रोजेदारों का बजट बिगाड़ रहे हैं। इस बार चील की फूजी सबे बाजार में पूरी तरह से नकारा दिया गया है। इसमें गड़बड़ी मिल रही थी। वेसे भी चीन के से पर सरकार प्रतिबंध भी लगा चुकी है। इससे दस साल बाद विदेशों के फल बाजार में दिख रहे हैं।
सेब के बजाए अन्य फल खरीद रहे रोजेदाररमजान का महिना शुरू हो गया है। कानपुर में सैकड़ों की संख्या में लोग रोजे हैं पर उन्हें इस बार कश्मीरी सेब बाजार में नहीं दिख रहा। उसके बदले वाशिंगटन और स्वीटजरलैंड से आयात होकर आये फल बाजार में भरे पड़े हैं, जिनकी कीमत आसमान छू रही है। ऐसे में रोजेदार सेब के बजाए अन्य सस्ते फल खरीदने को विवश हैं। फल व्यापारी रमजानी का कहना है कि हर साल कश्मीर का फल आता था। जिससे विदेशी फल के दाम नरम रहते थे। बाजार की मांग की कश्मीर का सेब ही पूरी करता था। इस बार इसकी आवक नरम पड़ने से विदेशी सेब भारी पड़ रहा है। बाजार में इस वक्त दो सौ से लेकर तीन सौ रूपए प्रतिकिलो की रेप से सेब बाजार में बिक रहा है। छोटे दुकानदार सेब की जगह अन्य फल की बिक्री कर रहे हैं। क्योंकि विदेश से आया सेब की बिक्री नाम मात्र की हो रही है, जिससे वह खराब हो जाता है।
चीन का सेब भी बाजार से गायबफल थोक व्यापारी नीतू सिंह का कहना है कि वाशिगंठन और स्वीटजरलैंड का सेब मुम्बई बंदरगाह के रास्ते आता है। 20 सेब का पैक 113 से 125 रूपए में आता है। ुटकर यह किलो के भाव बिकता हे। वहीं नवंबर के आसपास कोल्ड स्टारेज में रखा गया कश्मीरी सेब निकलने में नरमी रही। इसका असर अब दिख रहा है। व्यापारी बताते हैं कि चीन का माल प्रतिबंध के चलते मंगाना बंद कर दिया। यह सेब सस्ता होता था। लेकिन सेहत के लिए ठीक नहीं था। वहां के व्यापारी सेब को विदेश में ज्यादा दिन तक सनरक्षित करने के लिए मोम की परत लगा देते थे। नीतू सिंह ले बताया कि बाजार में वाशिंगटन का सेब आ रहा है। शिमला के सेब की आवक जुलाई से होगी। जब भाव गिरने की उम्मीद है। उसके बाद कुल्लू मलाली कश्मीर का सेब आता है आम आने वाला है। लीची जून तक आएगी।
अन्य पर भी महंगाई की मार रमजान में चिप्स, पापड़ से लेकर अफ्तार के लिए पवित्र माने जाने वाले खजूर तक पर महंगाई का ग्रहण लगा है। इस वर्ष महंगाई ने कुछ इस कदर पैर जमाये हैं कि गरीबों के पैर केवल भाव सुनकर ही डगमगाने लगते हैं। रमजान शुरू होते ही बाजार भले ही गुलजार होने लगे हैं, लेकिन महंगाई ने नमाजियों के पसीने छुड़ा दिए हैं। खजूर से लेकर पापड़, चिप्स, बिस्कुट, सूतफेनी, पाव, मठरी सहित सभी खाद्य सामग्री पर महंगाई की मार है। आशिफ खान अनवार खान कहते हैं कि त्योहार तो बस बड़ों के होते हैं हम तो केवल काम चलाते हैं। अल्लाह की इबादत करनी है, चाहे जैसे करें। इसके लिए यह जरूरी नहीं कि लजीज व्यंजन और पकवान ही जरूरी हों।
गरीबों के घरों से दूर हुए फज शमीम अहमद ने कहा कि महंगाई बढ़ी तो है, लेकिन अल्लाह की इबादत तो करनी ही पड़ेगी। उनका कहना था कि रोजेदारों के लिए इफ्तार और सहरी में उपयोग की जाने वाली खाद्य सामग्री के दामों में वृद्धि से ऊंचे घरानों के लोगों पर भले ही कोई प्रभाव नजर न आ रहा हो, लेकिन निर्धन और मध्यमवर्गीय लोगों को दिक्कत हो रही है। अल्लाह की इबादत में रोजे रखकर सस्ती वस्तुओं से ही वे काम चला रहे हैं। शमीम कहते हैं कि पहले कश्मीरी सेब की आवक रमजान के महिने में हो जाती थी, जिसकी मिठास बहुत अच्छी थी। जबकि विदेशी सेब में केमिकल की मात्रा अधिक होने के साथ ही बहुत महंगा है।