कौन हैं जामवन्त
पंडित बलराम तिवारी के मुताबिक, जामवंतजी को अग्नि पुत्र कहा गया है। जामवंत की माता एक गंधर्व कन्या थी। सृष्टि के आदि में प्रथम कल्प के सतयुग में जामवंतजी उत्पन्न हुए थे। जामवंत ने अपने सामने ही वामन अवतार को देखा था। बताते हैं, पुराणों में जिक्र है कि जामवंत के साथ ही वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, दुर्वासा, अश्वत्थामा, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम, मार्कण्डेय ऋषि, वेद व्यास आदि कई ऋषि, मुनि और देवता सशरीर आज भी जीवित हैं।
भगवान श्रीकृष्ण से लड़ा युद्ध
पंडित बलराम तिवारी बताते हैं कि मणि की चोरी का इल्जाम श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा के पिता सत्राजित ने लगाया था। इसी मणि की खोज में श्रीकृष्ण एक गुफा में जा पहुंचे जहां जामवंत अपने पुत्री के साथ रहते थे। इस मणि को हासिल करने के लिए श्रीकृष्ण को जाम्बवंतजी से युद्ध करना पड़ा। जाम्बवंत जब युद्ध में हारने लगे तब उन्होंने अपने प्रभु श्रीराम को पुकारा और उनकी पुकार सुनकर श्रीकृष्ण को अपने रामस्वरूप में आना पड़ा। तब जाम्बवंत ने समर्पण कर अपनी भूल स्वीकारी और उन्होंने मणि भी दी।
जामवंत जी विद्धान थे
पंडित बलराम तिवारी बताते हैं कि जामवंत जी बहुत ही विद्वान् हैं। वेद उपनिषद् उन्हें कण्ठस्थ हैं। वह निरन्तर पढ़ा ही करते थे और इस स्वाध्यायशीलता के कारण ही उन्होंने लम्बा जीवन प्राप्त किया था। युद्ध के बाद जामवंत ने भगवान श्रीकृष्ण से वरदान मांगा। उन्होंने हामी भर दी। जामवन्त जी ने कहा कि आप मेरी पुत्री जाम्बवती से विवाह करें। जाम्बवती-कृष्ण के संयोग से महाप्रतापी पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम साम्ब रखा गया। इस साम्ब के कारण ही कृष्ण कुल का नाश हो गया था।
जामवंती परम ज्ञानी
पंडित बलराम तिवारी बताते हैं, वाल्मीकि रामायण के युद्धकांड में जामवंत का नाम विशेष उल्लेखनीय है। जब हनुमानजी अपनी शक्ति को भूल जाते हैं तो जामवंतजी ही उनको याद दिलाते हैं। माना जाता है कि जामवंतजी आकार-प्रकार में कुंभकर्ण से तनीक ही छोटे थे। जामवंत को परम ज्ञानी और अनुभवी माना जाता था। उन्होंने ही हनुमानजी से हिमालय में प्राप्त होने वाली चार दुर्लभ औषधियों का वर्णन किया था जिसमें से एक संजीविनी थी।
युद्ध का सपना पूरा हुआ
पंडित बलराम तिवारी बताते हैं कि, रावध वध के बाद जब भगवान राम विदा होकर अयोध्या लौटने लगे तो जामवंतजी ने उनसे कहा कि प्रभु युद्ध में सबको लड़ने का अवसर मिला परंतु मुझे अपनी वीरता दिखाने का कोई अवसर नहीं मिला। मैं युद्ध में भाग नहीं ले सका और युद्ध करने की मेरी इच्छा मेरे मन में ही रह गई। उस समय भगवान ने जामवंतजी से कहा तुम्हारी ये इच्छा अवश्य पूर्ण होगी जब मैं अगला अवतार धारण करूंगा। तब तक तुम इसी स्थान पर रहकर तपस्या करो। द्धावर युग में श्रीकृष्ण के रूप में प्रथ्वीलोक में भगवान श्रीराम आए और जामवंत के साथ युद्ध लड़ा।
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