कौन हैं पूर्व दस्यू पंचम सिंह
जिला भिंड के गांव सिंहपुरा में एक किसान के घर मे ंपंचम सिंह का जन्म हुआ। गांव में उनकी साफ सुथरी छवि थी। 35 साल की उम्र में आते-आते वो गांववालों के दिल में बस गए। 1958 में ग्राम पंचायत के चुनाव के दौरान गांव के दबंग प्रत्याशी ने अपने पक्ष में पचंम सिंह को प्रचार करने को कहा। पंचम सिंह ने दबंग की बात मानने से इंकार कर दूसरे उम्मीदवार को वोट देने की अपील कर दी। जिसका असर रहा कि दबंग उम्मीदवार चुनाव हार गया और उसने पचंम सिंह को घर में घुसकर बेरहमी से पीटा और सत्ता के बल पर उन्हें जेल भिजवा दिया। जमानत पर छूटने के बाद दबंग उन्हें और परिवार को परेशान करना शुरू कर दिया। इससे ऊबकर पंचम सिंह बीहड़ में कूद कर चंबल घाटी के कुख्यात दस्युसम्राट मोहर सिंह के गिरोह में शामिल हो गए। इस के बाद उन्होंने इस गिरोह की मदद से खुद को और घर वालों को पीटने वाले 12 लोगों को चुनचुन कर मौत के घाट उतार दिया।
दो करोड़ का था इनाम
125 मर्डर करने वाला 550 डाकुओं का सरदार 2 करोड़ का इनामी डकैत बन गया। 14 साल तक चंबल के बीहड़ों पर किया राज। कत्ल, अपहरण व डकैती के लगभग तीन सौ से ज्यादा केस। डाकू पंचम सिंह का नाम सब से ज्यादा वांछित दस्यु सम्राटों में आ गया था। .इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में उन्होंने उन्हें चैलेंज कर दिया था कि उन के इलाके में उन के बजाय उन की सरकार बेहतर चलेगी। इस से नाराज हो कर इंदिरा गांधी ने चंबल में बमबारी कर के डाकुओं का सफाया करने का आदेश दे दिया था, लेकिन बाद में इस आदेश को वापस ले कर डाकुओं से आत्मसमर्पण कराने पर विचार किया जाने लगा था। आखिरकार इंदिरा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को डकैतों से आत्मसमर्पण कराने की जिम्मेदारी सौंपी। उन की पहल पर कई दस्यु सम्राट अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण को तैयार हो गए। अपनी आत्मा की आवाज पर सन 1972 में पंचम सिंह ने भी अपने साथियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था।
अदालत ने सुनाई फांसी की सजा
1972 में अदालत ने पंचम सिंह, भोर सिंह और माधो सिंह को फांसी की सजा सुना दी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्रपति के पास जाकर फांसी की सजा माफ करने के लिए रहम की अपील की और डकैतों की फांसी की सजा उम्रकैद की सजा में तबदील कर दी गई। इस के साथ इन कैदियों की यह शर्तें भी स्वीकार कर ली गई थीं कि उन्हें खुली जेल में रह कर खेतीबाड़ी करते हुए परिवार के साथ सजा काटने का मौका दिया जाए। पंचम सिंह को उसी तरह के अन्य दुर्दांत कैदियों के साथ मध्य प्रदेश की खुली मूंगावली जेल में रखा गया. वहीं पर उन की जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बीता। उम्रकैद की सजा होने के बावजूद 8 साल बाद सरकार ने पचंम सिंह रिहा को रिहा कर दिया। पंचम 25 राज्यों की 400 जेलों में प्रवचन कर चुके हैं।
इन डकैतों का कराया समर्पण
अपने आत्मसमर्पण के बाद उन्होंने फूलन देवी, मलखान सिंह, सीमा परिहार और सुमेर गुर्जर का भी आत्मसमर्पण कराने में मदद की थी। इस के अलावा उन्होंने दक्षिण भारत के चंदन तस्कर वीरप्पन से मिल कर अभिनेता राजकुमार को उस के चंगुल से मुक्त करवाने में पुलिस की मदद की थी। दस्यु सुंदरी सीमा परिहार कहती हैं कि जिस वक्त वीरप्पन ने राजकुमार को अगवा किया, उस दौरान दो राज्यों के अलावा केंद्र सरकार हिल गई थी। तब महाराष्ट्र की पुलिस ने पंचम सिंह से मदद मांगी थी। पंचम सिंह अकेले दक्षिण के जंगलों में उतर गए और वीरप्पन के पास पहुंच गए थे। उन्हें देखकर खुद वीरप्पन ने सिर झुकाकर पैर छुकर राजकुमार को छोड़ा था। सीमा कहती हैं कि एक डाकू होने और हर पल विपरीत परिस्थितियों में जीने के बावजूद पंचम सिंह ने अपनी मर्यादा को बचाए रखा और यही उन के जीवन की सब से बड़ी उपलब्धि है।