कानपुर देहात. बस वक्त ही बुरा था मां बाप के घर से पति की चौखट पर आयी थी। कुछ वर्ष गुजरे और फिर समय का कुचक्र शुरू हुआ। बीमारी ने पति को अपनी आगोश में ले लिया और फिर जीवन का वह पल जो कभी नहीं भूल पाऊंगी। पति का निधन हो गया। एक तरफ जमीन पर पड़ा उनका मृत शरीर और दूसरी तरफ रोती बिलखती मासूम बेटियां, जिनके आंखों से आंसू नहीं रुक रहे थे। जीवन का वह समय जब दुखों का पहाड़ सिर पर आ गिरा।
दोहरे कठिन राह पर खड़ी जिले के अकबरपुर क्षेत्र के तिंगाई की गीता कश्यप यह निर्णय नहीं कर पा रही थी। अब एक पहिये से ये जीवन का लारी कैसे चलेगी। जैसे-तैसे जीवन चलने लगा, समय चक्र गुजरता गया। बेटियां बड़ी होने लगी बाहर मदद के लिये जाने पर लोग ताने मारने लगे।
आखिर कब तक वह सब कुछ सहती। तब उसने इस मोड़ पर आकर दुखियारी महिला का चोला उतार फेंका और मजदूरी शुरू की बेटियों के बाहर नल पर पानी लेने व शौच को जाने पर लोग छींटाकशी करने लगे। गरीबी के हालातों से जूझ रही गीता ने फिर तिंगाई की ही सुमनलता के कारखाने पर कोल्हू चलाकर मजदूरी शुरू कर दी।
अपने कठिन परिश्रम से उसने बेटियों के लिये एकत्रित किये धन से एक वर्ष पूर्व घर में शौचालय बनवाया। कारखाने की संचालक सुमनलता जहां आज गीता की मुरीद है, वहीं गीता भी उन्हे मां का दर्जा दिये है। आज गीता क्षेत्र की गरीब, लाचार महिलाओं लिये एक जुनून बन गयी है।
10 वर्ष पूर्व बीमारी से हुयी पति की मौत गीता कहती हैं कि वैवाहिक जीवन सामान्य रूप से गुजर रहा था। अचानक समय ने करवट ली और पति सुरेंश चंद्र बीमार हो गये, लेकिन गरीबी के हालातों के चलते अच्छा इलाज नहीं मिल सका और उनका निधन हो गया। उमा, रमा, श्यामा, महिमा, हेमा, और लालिमा 6 पुत्रियों का भार उसके कंधे पर आ गया। कोई पुत्र न होने के चलते किसी का सहारा नहीं रहा।उसका धैर्य जवाब दे रहा था। जैसे तैसे गुजारा होने लगा, लेकिन 6 बेटियों की शादी करना उसे आसमान छूने जैसा लगने लगा।
कारखाने में कोल्हू चलाकर बनवाया शौचालय आमदनी का श्रोत न होने पर पूरा परिवार भुखमरी की कगार पर आ गया। हिम्मत जुटाकर गीता ने तिंगाई के ही सुमनलता के पुत्र हरिओम से काम मांगा। कारखाने में कोल्हू देख गीता की हिम्मत टूटी, लेकिन 6 बेटियों के परवरिश को लेकर परेशान गीता ने कोल्हू चलाना प्रारम्भ कर दिया।
करीब 9 वर्ष गुजरने पर उसका जीवन सामान्य हुआ। इधर बेटियों के पानी व शौचालय के लिये बाहर निकलने पर लोग छींटाकशी करने लगे तो धीरे-धीरे उसने घर में नल लगवाया
और एकत्रित किये धन से घर में एक वर्ष पूर्व 2016 मे शौचालय भी बनवाया, आज वह बहुत खुश है।
और एकत्रित किये धन से घर में एक वर्ष पूर्व 2016 मे शौचालय भी बनवाया, आज वह बहुत खुश है।
इस हद तक गीता करती है मजदूरी तिंगाई स्थित धर्मवीर आटा चक्की किसान सेवा केंद्र के संचालक सुमनलता ने गीता की खुद्दारी देख उसे काम दिया। जिस पर गीता ने दिन रात मेहनत कर कोल्हू, आटा चक्की, पालेसर चलाकर पुरुषों को पीछे छोड़ दिया। इधर गीता की लगन देख सुमनलता ने उसकी एक बेटी उमा की शादी के बाद शेष 5 बेटियों के पढ़ाई-लिखाई, खाने-पीने का जिम्मा लेते हुये उसे चार हजार रुपये महीने में देने शुरू किये। जिससे गीता का गुजर बसर होने लगा।
सरकारी योजनाओं का नहीं मिला लाभ इतनी गरीबी लाचारी से गुजर कर रही गीता पर ग्राम प्रधान से लेकर आला अफसरों को कोई रहम नहीं आया। शासन से गरीबों को लाभांवित करने वाली कोई योजना गीता के दर तक नहीं पहुंची, जिससे वह लाभांवित हो सके। पति के देहांत के बाद मजदूरी करने वाली विधवा की पेंशन तक नही बनवाई गयी, लेकिन स्वाभिमानी गीता खुद पर भरोसा कर अपने कर्म पर आज भी डटी है और योजनाओं के रहमो करम की बजाए अपने आत्म विश्वास पर भरोसा करती है। जो आज महिलाओं के लिये प्रेरणाश्रोत बनी हुयी है।
गीता कश्यप कहती है कि पति के निधन के बाद और 6 बेटियों का जिम्मा होने के चलते मजदूरी करना मजबूरी भी बन गयी थी। शासन से कोई मदद नहीं मिली, लेकिन सुमनलता ने मुझे वह सब कुछ दिया, जो घर का एक मुखिया देता है। इंसान को अपने कष्टों को देखने की बजाए हिम्मत जुटाकर अपने कर पर लग जाना चाहिये, समय खुद ब खुद रास्ता बदल लेता है।