कानपुर

गंगा के उस पार पहुंचाई शिक्षा की अलख, बिना गुरू दक्षिणा के तैयार कर रहे अर्जुन

अशिक्षित बच्चों को देख शिक्षित करने का उठाया बीणा, परमठ मंदिर पर हर दिन बच्चों की लगती है पाठशाला

कानपुरMay 26, 2018 / 12:36 pm

Vinod Nigam

नदियां के उस पार पहुंचाई शिक्षा की अलख, बिना गुरू दक्षिणा के तैयार कर रहे हैं अर्जुन

कानपुर। मेरे ख्याल से एक समय था जब नेतृत्व का मतलब बल होता था, लेकिन वर्तमान में इसका मतलब लोगों को मुकाम दिलाना है।’ महात्मा गांधी की ये पंक्ति कानपुर के परमठ निवासी सचिन कुमार पर खरी उतरती है, जो खुद सिविल परीक्षा की तैयारी करते हैं और गंगा के उस पार के बच्चों के अंदर क्षिशा की ज्योति जलाकर उन्हें अर्जुन बना रहे हैं। सचिन बताते हैं कि उनके पिता रिक्शा चलाकर उन्हें पढ़ाया। हाईस्कूल से लेकर बीएससी प्रथम श्रृणी में उत्तीर्ण की। कभी ट्यूशन नहीं लिया, दोस्तों के नोट्स के जरिए तैयारी की। जज बनने का सपना सजोए सचिन कहते हैं कि जिस कॉलेज से राष्ट्रपति रामनाथ कोंवद और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने लॉ की डिग्री ली, वहीं से हमने भी एलएलबी कर आगे की पढ़ाई घर में शुरू कर दी। इसी दौरान गंगा के उस बार स्कूल नहीं होने के चलते हमने एक दर्जन से ज्यादा गांवों में मुनादी कराई और वहां के बच्चों को हररोज नाव के जरिए परमठ मंदिर बुलवाते हैं और दो घटे क्लास लगाते हैं।
दो घंटे सजती है पाठशाला
परमठ निवासी सचिन जो पिछले दो सालों से कटरीक्षेत्र के एक दर्जन गांवों के गरीब बच्चों को हर दिन दो घंटे आन्देश्वर मंदिर परिसर पर बुलाकर उन्हें पढ़ाते हैं। सचिन की यह क्लास शाम चार से छह बजे तक चलती है। दो घंटे के दौरान डेढ़ सौ बच्चों को वह बेतहर शिक्षा, कम्प्यूटर, डांस और अंग्रेजी सहित सभी सब्जेक्ट की शिक्षा से दक्ष कर रहे हैं। सचिन ने बताया कि घर की आर्थिक स्थित टीक नहीं होने के चलते हमने क्लास के छात्रों के नोट्स बुक लेकर पढ़ाई की। एमएससी तक बिना ट्यूशन के परीक्षा एग्जाम दिया और मेहनत रंग लाई और हर प्रथम श्रृणी में हम पास होते गए। पिता का सपना था कि हमज ज बन कर लोगों को न्याय दें। इसी के चलते डीएबी लॉ कॉलेज से एलएलबी की पढ़ाई की। वकालत के बजाए हमने सिविल जे की परीक्षा की तैयारी करले लगे।
बच्चों का हाल देख बदल ली डगर
सचिन ने बताया कि तीन साल पहले हम गंगा के उस पार कटरी गांव घुमने के लिए गए थे। एक ऐसे गांव पहुंचे, जहां एक भी इंसान पढ़ा लिखा नहीं मिला। हमने गांववालों से इस पर चर्चा की तो उन्होंने बताया कि आसपास स्कूल नहीं है, इसी के कारण बच्चो को शिक्षा के बजाए मजदूरी के काम में लगा देते हैं। सचिन ने यह सुन इन बच्चों को शिक्षित करने की ठानी। गांवों में मुनादी करवाई और एक जहग बच्चों के अभिभावकों को बुलाया। चौपाल सजा कर बच्चों के अभिभावकों को शिक्षा के बारे में जानकारी दी और बच्चों को परमठ भेजे जाने को कहा। पहले साल पचास बच्चे हमारी क्लास में शामिल हुए और उनका हमने सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया और जड़ें मतबूत रहें, इसके लिए दो घंटे हरदिन कोंचग शुरू कर दी।
गांव की लक्ष्मी को बनाया सारथी
सचिन ने बताया कि कटरी गांव की लक्ष्मी जो स्नातक तक पढ़ीं थी उन्हें हमने अपना सारथी बनाया। गंगा के उस पार से इस पार लाने ले जाने का काम लक्ष्मी को दिया। वह हर दिन बच्चों को नाव के जरिए गंगा पार कर परमठ लाती हैं और हमारे साथ ही बच्चों को पढ़ाती हैं। दूसरे साल बच्चों की संख्या सौ के पार पहुंच चुकी और 2018 में हमारी क्लास में गंगा के उस पार के डेढ़ सौ बच्चे हर दिन पढ़ने के लिए आते हैं उन्हें अंग्रेजी, मैथ सहित अन्स सब्जेक्ट से दक्ष किया जा रहा है। साथ ही कम्प्यूटर, डांस और गीत-संगीत और स्पोर्ट की कोंचग दी जा रही है। हमारी ही क्लास की एक छात्रा कानपुर के ग्रीनपार्क में क्रिकेट टीम के सिलेक्ट हुई है। क्रिकेट के साथ ही अन्य स्पोर्ट का प्रक्षिशण हमारे मित्र अवधेष निशुल्क में देते हैं। शनिवार और रविवार को पढ़ाई के बजाए खेल-कूद और कम्प्यूटर सहित अन्य विषयों के बारे में बच्चों को ट्रेंड किया जाता है। लक्ष्मी ने बताया कि शाम के वक्त सभी बच्चे गंगा के किनारे आ जाते हैं और उन्हें हम लेकर नाव के जरिए परमठ मंदिर पहुंचती हैं।
आईआईटी की तैयारी भी कराएंगे
सत्यपाल इसके पीछे वजह बताते हैं कि वे एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं, उन्हें ये मुकाम हासिल करने के लिए दिन-रात परेशानियों से जूझना पड़ा है, वे चाहते हैं कि देश की ऐसी प्रतिभाएं जो आर्थिक अभाव में अपने सपनों से दूर हैं, उनको सही राह दिखाई जाए और हर संभव उनकी मदद की जाए। ताकि वो अपने सपनों को नई उड़ान दे सकें। यही वजह है कि उन्होंने नौकरी के बजाए सिविल की तैयार के साथ ही एक ऐसे संस्थान की नींव रखा। सचिन की क्लास में कक्षा एक से लेकर बारवीं तक के छात्र पढ़ने के लिए आते हैं। सचिन की योजना है कि गरीब तबके के मेधावी बच्चों को फ्री में आईआईटी की कोचिंग दी जाए। बच्चों की योग्यता परखने के लिए वह एक टेस्ट आयोजित करेंगे और जो इस टेस्ट में खुद को साबित करेंगे उनकी फीस माफ करवाले के लिए आईआईटी प्रशासन से बात करेंगे।
मंदिर को बना डाला पाठशाला
सचिन गंगा के गांव के बजाए परमठ में पाठशाना खोली। इसके पीछे वे वजह बताते हैं कि मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक भंडारा और प्रसाद चड़ता है। शाम को मंदिर के पुजारी हमें हरदिन फल-मिठाई बच्चों के खाने के लिए देते हैं। सचिन ने बताया कि गरीब बच्चों के माता-पिता के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वह बच्चों को बेतहर भोजन मुहैया करा सकें। पहले बच्चे यहां आने से कतराते थे, लेकिन जैसे ही उन्हें मंदिर का प्रसाद खाने के लिए दिए जाने लगा, वैसे बच्चों की संख्या में इजाफा हुआ है। सचिन ने बताया कि यह नुख्शा काम कर गया। हर दिन मंदिर से प्रसाद आता है, जिसे कोंचंग के बाद बच्चों को दिया जाता है।

 
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