कानपुर। उत्तर प्रदेश की येगी सरकार ने मंगलवार को प्राईवेट स्कूल में मनमानी फीस वसूली के खिलाफ एक आदेश जारी किया। जिसमें संचालकों को कई नियमों का पालन करना होगा। उल्लंघन करने पर स्कूल मान्यता रद्द के साथ कानूनी कार्रवाई की बात कही गई है। सीएम योगी के इस आदेश के बाद कानपुर के बच्चों के अभिभावकों से उनकी राय ली गई। अधिकतर ने कहा कि पिछले वर्ष भी सरकार ने कई गाइडलाइन और नियम बनाए, लेकिन उनका जमीन पर अमल नहीं हुआ। अभिभावक संघ के सचिव राजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि योगी सरकार के फैसले तो सब सराहनीय होते हैं, वह जमीन पर नहीं दिखते। सरकार लाख कोशिश कर ले पर स्कूल संचालकों की मनमानी रूकने वाली नहीं। क्योंकि आधे से ज्यादा कान्वेंट स्कूल सत्ताधारी व विपक्ष के नेताओं के शहर में चल रहे हैं।
नियमों का उल्लंधन के बाद होगी कड़ी कार्रवाईयूपी कैबिनेट ने मंगलवार को एक अहम फैसलर लिया गया, जिसमें प्राईवेट स्कूल अब मनमानी नहीं कर सकेंगे। उन्हें सरकार के नियमों का पालन करना होगा। गाइडलाइन के वितरीत चलने पर ऐसे स्कूलों की मान्यता रद्द करने के साथ ही कानूनी कार्रवाई की जाएगी। डिप्टी सीएम व शिक्षामंत्री
दिनेश शर्मा ने प्रेस को बताया कि अब स्कूल संचालक सात से आठ फीसदी से अधिक फीस नहीं बढ़ा सकेंगे। कैबिनेट की बैठक में निजी स्कूलों में मनमानी फीस पर नियमावली का प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे पारित कर दिया गया है. इस नियमावली के दायरे में प्रदेश के 20 हजार रुपये से अधिक फीस लेने वाले स्कूल आएंगे। साथ ही नियमों का उल्लंघन करने पर स्कूलों के ऊपर कड़ी कार्रवाई भी की जाएगी। अगर स्कूल नियमों का उल्लंघन करते हैं तो ऐसा पहली बार करने पर 1 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा. दूसरी बार ऐसा करने पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगेगा. और तीसरी बार भी नियमों को उल्लंघन किया गया तो स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
यह नियमों का करना होगा पालननई नियमावली के अनुसार निजी स्कूलों को हर साल 7-8 फीसदी से ज्यादा फीस वृद्धि अब नहीं हो सकती। 12वीं तक सिर्फ 1 बार एडमिशन फीस ली जाएगी। अगर स्कूल फीस बढ़ाना चाहते हैं तो तो अध्यापकों के वेतन वृद्धि के आधार पर ही ऐसा संभव हो सकेगा। अधिकांश स्कूल अपने यहां कॉमर्शियल एक्टिविटी करते हैं. उसकी आय को उन्हें स्कूल की आय में दिखाना होगा। इससे स्कूल की आय बढ़ जाएगी। अगर कोई अभिभावक या प्रबंधक इससे असहमत होता है तो एक अपीलिंग कमेटी बनेगी वहां सुनवाई की जा सकेगी। स्कूल रेजिस्ट्रेशन फीस, एडमिशन फीस, परीक्षा शुल्क समेत चार शुल्क अनिवार्य होंगे., जबकि बस, मेस, हॉस्टल जैसी सुविधाएं वैकल्पिक होंगी। स्कूल शैक्षिक सत्र के 60 दिन पहले अलग-अलग मदों के खर्च को डिस्प्ले करेगा, शुल्क प्रभार की रसीद देनी होगी। 5 वर्षों तक ड्रेस में परिवर्तन नहीं कर सकते। सभी खर्चों को वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा। त्रैमासिक, अर्ध वार्षिक शुल्क ही लिया जा सकता है. सालभर की फीस एक साथ लेने पर भी पाबंदी। निर्धारित दुकान से किताब और यूनिफार्म खरीदने को बाध्य नहीं होंगे अभिभावक
।कुछ ने अच्छा निर्णयसरकार के फैसले से कुछ अभिभावक खुश दिखे और निर्णय की सराहना की। डीपीएस पब्लिक स्कूल नवाबगंज निवासी राधेश्याम और दिलीप गुप्ता कहते हैं कि यह नियम और कानून तो ठीक हैं, पर इन्हें जमीन पर उतारने के लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। दिलीप कहते हैं कि सरकार लोगों के निए
काम तो करती है पर सरकारी बाबू उनके हर कार्य में बाधा डालते हैं। सीएम को स्कूल संचालकों के साथ ही अधिकारियों पर कानून बनाना चाहिए। जिससे शिकायत पाए जाने पर उस पर भी कार्रवाई हो। कानपुर में जितने भी प्राईवेट सकूल हैं, वह अफसरों के रहमों-करम पर अभिभावकों से जबरन पैसा वसूलते हैं।
तो कुछ बोले हवा-हवाईयोगी सरकार के नए आदेश पर जब अभिभावकों से बात की गई तो उनका कहना था कि 2017 में भी सीएम
योगी आदित्यनाथ ने कई नियम बनाए, लेकिन एक का पालन आज तक नहीं हुआ। पंडित दीनदयाल में पढ़ रही बेटी के अभिभावक ने कहा कि यह स्कूल खास तौर भाजपा व संघ से जुड़ा है। यहां साल में तीन बार फॅीस वसूली जाती है। अभिभावक ने बताया कि तीन माह में हमें छह हजार रूपए सिर्फ फीस के तौर पर देने होते हैं। वहीं ड्रेस, कॉपी, किताब और एडमीशन फीस भी स्कूल मैनजेमेंट वसूलता है। एसराज नवाबगंज में अपनी बेटे को पढ़ा रहे अभिभावक रवि गुप्ता ने बताया कि बेटी की पहली कक्षा में है। स्कूल मैनेजमेंट ने तीन माह की फीस, ड्रेस, कॉपर-किताबों का पूरा लेखा-जोखा हमारे पास भेजा है। क्या करें पढ़ना है तो भईया स्कूल संचालकों की मनमानी माननी ही होगी।