कानपुर

बीजेपी के खिलाफ था गुस्सा, इस समाज ने दबाया नोटा

तीन राज्यों में बीजेपी को मिली करारी हार के बाद सवर्ण संगठनों ने बताई ये वजह, अगर ऐसे ही उपेक्षा होती रही तो 2019 में नोटा ही होगा आप्शन।

कानपुरDec 13, 2018 / 11:56 pm

Vinod Nigam

बीजेपी के खिलाफ था गुस्सा,इन्होंने ने दबाया नोटा

कानपुर। पांच राज्यों में बीजेपी को मिली हार और वोटों की गिनती के बाद नोटा मतों की संख्या में बढ़ोतरी के बाद ब्राम्हण युवजन सभा के अध्यक्ष पंकज दीक्षित खासे गदगद हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संसद में अध्यादेश लाकर पलट दिया, इसी का खामियाजा बीजेपी को उठाना पड़ा। पंकज दीक्षित ने कहा कि 2014 लोकसभा चुनाव के वक्त लोगों ने देश की बागडोर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में दी थी। हमें विश्वास था कि वो जातिगत के बजाए सबका-साथ, सबको न्याय देंगे। लेकिन वोटबैंक के चलते उन्होंने ऐसा नहीं किया और जिसका परिणाम बीजपी को हार के साथ उठाना पड़ा।

नोटा में दबाया वटन
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले सुप्रीमकोर्ट के एससी-एसटी एक्ट के फैसले को मोदी सरकार ने संसद से अध्यादेश लाकर बदल दिया। जिसके बाद देशभर में सवर्ण समाज से जुड़े संगठनों ने जमकर प्रदर्शन किया और सरकार से निर्णय पर पुनः विचार करने की मांग की। लेकिन सरकार ने उनकी मांगों को नहीं मानीं, जिसके बाद पूरे सवर्ण समाज ने पांच राज्यों के अलावा लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के साथ सपा, बसपा व कांग्रेस को वोट नहीं देने का ऐलान कर दिया था। इसी वजह से तीन राज्यों में मतदाताओं ने नोटा में बड़ै पैमाने पर वोट दिया। ब्राम्हण युवजन सभा के अध्यक्ष पंकज दीक्षित ने कहा कि अभी वक्त है और अपने किए निर्णय को मोदी सरकार को वापस लेना चाहिए। यदि वो भी अन्य दलों की तरह जातिगत राजनीति करेंगे तो जनता 2019 में तख्ता पलट देगी।

जल्द ही फिर शुरू होगा आंदोलन
ब्राम्हण युवजन सभा के अध्यक्ष पंकज दीक्षित ने कहा कि, खंड-खंड में मत बांटों, काले एक्ट को भंग करो। पंकज कहते हैं कि इस काले कानून को भंग किए जाने तक लड़ाई जारी रहेगी। एक देश में सबके लिए एक कानून होना चाहिए। उन्होंने कहा कि क्या आज के दिन के लिए ही देश के जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी, यह कानून भाई-भाई को आपस में लड़ाएगा। मन में भेद पैदा करेगा। जाति आधारित राजनीति आखिर कब बंद होगी। उन्होंने कहा कि इस कानून को रद्द किया जाना चाहिए। पंकज कहते हैं, अगले चरण में इसके विरोध में सांसदों और विधायकों को घेरकर ज्ञापन दिए जाएंगे। इसके लिए जनवरी में में हमलोग पैदल यात्रा शुरू करेंगे। सवर्णो को जगाएंगे और अपनी ताकत के बारे में उन्हें एहसास कराएंगे। पंकज कहते हैं कि सवर्ण समाज के युवा पढ़ लिखकर भी बेरोगजार हैं।

क्या है एससी-एसटी एक्ट
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था। जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए। इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके। पर सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के बदलाव करते हुए कहा था कि मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के साथ कई नियम बदल दिए थे। इसी के बाद दलित संगठन सड़क पर उतरे और केंद्र सरकार को कोर्ट का नियम बदलना पड़ा था।

इतने वोट नोटा में पड़े
मंगलवार को आए पांच राज्यों के चुनाव में दो राज्यों में भारतीय जनता पार्टी के पिछड़ने का सबसे बड़ा कारण नोटा को माना जा रहा है। मध्यप्रदेश और राजस्थान के परिणामों पर गौर करें तो तो भाजपा और कांग्रेस के वोटों में जितना अंतर नहीं हैं, उससे अधिक वोट तो नोटा ें डाले गए हैं। पंकज दीक्षित ने बताया कि चुनाच आयोग के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में करीब साढ़े चार से पांच लाख के बीच मतदाताओं ने नोटा में वोट डाला तो वहीं छत्तीसगढ़ में 1.78 लाख मतदाता, राजस्थान में 4.38 लाख से ज्यादा, तेलंगाना में 2.03 लाख से ज्यादा और मिजोरम में 2917 वोट नोटा में पड़े। पंकज कहते हैं कि बीजेपी से नाराज वोटरों ने नोटा के पक्ष में वोट डाला है। इससे स्पष्ट है कि मतदाताओं का रुख भाजपा और कांग्रेस में से किसी को भी जिताने का नहीं था।

 

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