संस्थान के निदेशक प्रो. मुकेश कुमार सिंह ने बताया कि कोरोना वायरस जैसे अनेक वायरस के संक्रमण से बचने के लिए मास्क अत्यंत जरूरी हो गया है। अच्छे मास्क की कीमत अधिक है और जो मास्क सडक़ किनारे या ठेलों पर सामान्य कीमत में बिक रहे हैं, वे प्रभावी नहीं हैं। इस समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक शोध किया। प्रो. सिंह ने बताया कि संस्थान में लाइक्रा धागे की तकनीक से मास्क तैयार किया गया। इसके साथ ही यह 20 से 50 रुपए में बिक रहे अन्य मास्क से काफी बेहतर है और काफी हद तक वायरस को रोकता है।
लाइक्रा एक कृत्रिम रेशा है। यह दूसरे धागों के मुकाबले अधिक मज़बूत होता है। रसायनज्ञ सी एल सैन्डक्विस्ट और जोसेफ़ शिवर्स ने इसे सन 1959 में ड्यूपॉन्ट की वर्जीनिया स्थित बेंजर प्रयोगशाला में विकसित किया था। यह पॉलीयूरेथेन-पॉलीयूरिया कोपॉलीमर होता है। इसके अविष्कार ने वस्त्र उद्योग के कई क्षेत्रों मे क्रांति ला दी थी। पूरे उत्तर अमेरिका में लाइक्रा को स्पैन्डेक्स नाम से जाना जाता है। भारत में भले ही लाइक्रा नाम अधिक प्रचलित नहीं है। धागे की मजबूती के कारण इसका इस्तेमाल खिलाडिय़ों के लिए कपड़े बनाने में भी किया जाता है।
निदेशक प्रो. सिंह ने बताया कि शहर की एक कंपनी कैपलॉन इंडस्ट्री से बात हुई है। उन्होंने इसका उत्पादन शुरू कर दिया है। इस मास्क को बनाने में दो प्राथमिकताएं हैं। पहली अच्छी क्वालिटी और दूसरी इसकी कीमत। यह मास्क बाजार में 10 रुपए की कीमत में उपलब्ध होगा।