दरअसल कानपुर विश्व बैंक बर्रा में रहने वाले हिमांशु भगवान परशुराम महासभा की ओर से संचालित शव वाहन चलाते हैं। उन्हें दस हजार रुपए प्रतिमाह सेलरी मिलती है, जिसमें वह खुश हैं। पिछले दो वर्षों से वह शव वाहन चलाते हैं। उन्होंने 22 अप्रैल से मई के दूसरे सप्ताह तक हर दिन दो से चार शवों को भैरोघाट, सिद्घनाथ घाट, बिठूर स्वर्गाश्रम, ड्योटी घाट और गंगाघाट शुक्लागंज पहुंचाया। किसी भी घाट पर जाने के लिए 1400 रुपये फिक्स हैं। इसी में डीजल, मेंटेनेंस और एक चक्कर के पांच सौ रुपये होते हैं। उनके मुताबिक ऐसे मुश्किल घड़ी में लोगों का फायदा उठाना बहुत गलत है। महासभा के अध्यक्ष भूपेश अवस्थी ने बताया कि हिमांशु को जब भी कोई रुपए देते हैं तो वह मना कर देते हैं।
कुछ ऐसा ही कार्य दिलशाद सिद्दीकी करते हैं, जो कानपुर ग्रामीण उद्योग व्यापार मंडल की ओर से संचालित शव वाहन चलाते हैं। दिलशाद कल्याणपुर के साहब नगर में रहते हैं। उनका मानना है कि दुखों का पहाड़ कभी भी किसी के ऊपर टूट सकता है। ऐसे में लोगों की मदद के लिए आगे आना चाहिए। ऐसे हालातों में किसी का गलत फायदा नहीं उठाना चाहिए। यह निहायत ही गलत है। इस तरह की कमाई सुख देने वाली नही होती है। मेहनत की कमाई से ही इंसान को खुशी मिल सकती है। व्यापार मंडल के अध्यक्ष संदीप पांडेय का कहना है कि दिलशाद जो लोगों की मदद कर रहे हैं, वह सराहनीय है।