खून से सेंकी सियासी रोटी
नवीन पंडित 1989 से राममंदिर आंदोलन से जुड़े हैं। वो इस वक्त बीजेपी से पार्षद हैं। इसके पहले नवीन तीन बार निर्दलीय पार्षद चुने गए थे। नवीन पंडित ने बताया कि उस वक्त हमारी उम्र महज 18-19 साल की थी। 1992 की घटना की जिक्र करते हुए पंडित ने बताया कि सुबह होते ही उत्साह से लबरेज कारसेवक सारी बैरीकेडिंग तोड़ते हुए अंदर पहुंच गए. जो जिधर से जगह पाया उधर से ही ढांचे के ऊपर चढ़ गया। किसी के हाथ में कुछ था नहीं लेकिन उत्साह इतना प्रबल था कि ईंट-पत्थर जो मिला उसी से ढांचा तोड़ना शुरू कर दिया और देखते ही देखते सैकड़ों की संख्या में कारसेवक ढांचे के ऊपर चढ़ गए और कुछ घंटों के भीतर मस्जिद ध्वस्त कर दी गई। पर मुलायम ने गोलियां चलवाकर निर्दोष कारसेवकों के खून से वोट की खोती तैयार की।
तभी चलने लगी गोलियां
अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 की घटना को बयान करते हुए 50 वर्षीय कारसेवक व भाजपा पार्षद नवीन पंडित इतने आवेश में आ जाते हैं, मानो वही विवादित ढांचा उनके सामने खड़ा हो, और वो उसे ध्वस्त करने को आतुर हों। अपने को आज भी वह कारसेवक ही मानते हैं और राममंदिर के निर्माण के लिए कानपुर में आंदोलन चला रहे हैं। पर उनके नवीन पंडित उस घटना को याद कर सिहर उठते हैं, जब कारसेवकों पर पुलिस ने गोली चलाई थीं। नवीन बताते हैं कि हमलोग आगे बढ़ रहे थे, तभी मुलायह सिंह के आदेश पर पुलिस ने गोली चला दी। मेरे साथ चल रहे कारसेवक को गोली लगी और वो गिर गया। मैंने उसे कंधे में उठा लिया और दौड़ लगा दी। मेरे हाथ को छूती हुई गोली निकल गई तो मैं जमीन पर बैठ गया और पुलिस ने हमें गिरफ्तार कर लिया। नवीन कहते हैं कि मुलायम सिंह को देश व प्रदेश के लोग चाहे माफ कर दें, पर रामभक्त उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे।
फिर बढ़ा दिए कदम
नवीन पंडित कहते हैं, “उस वक़्त कारसेवकों का उत्साह इतना प्रबल था कि उसी ताक़त से सब कुछ हो सका। न तो किसी का निर्देश था, न किसी की योजना थी, न ही किसी ने कुछ समझाया कि आप लोग आए हैं तो कुछ करके जाइए और न ही किसी को इसका कोई श्रेय है। मस्जिद गिराने का केवल और केवल श्रेय कारसेवकों को है। नवीन बताते हैं कल्पना से भी ज़्यादा कारसेवक अयोध्या मे पहुंच चुके थे और मंच पर मौजूद नेताओं को ये आभास हो चुका था कि यदि अब उन्हें वापस लौटने को कहा गया या फिर उनकी इच्छा के विपरीत कोई फ़रमान दिया गया तो कारसेवक भड़क जाएंगे। उनके मुताबिक, “मंच पर भाषण ख़त्म होने के बाद कारसेवकों को दूसरी ओर मुड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन कारसेवक सीधे राम जन्मभूमि परिसर की ओर मुड़ गए और मस्जिद को ढहा दिया।
6 सौ पर लगाई गई थी रासुका
मस्जिद गिराए जाने के बाद पुलिस ने कारसेवकों पर फयरिंग की, जिसमें कईयों की मौत हो गई। वहीं हजारों की संख्या में कारसेवक अरेस्ट कर लिए गए। नवीन बताते हैं कि उस वक्त हमारे साथ काला बच्चा भी अयोध्या गए थे और पुलिस ने हमारे साथ उन्हें भी अरेस्ट कर लिया। कानपुर के छह सौ से ज्यादा कारसेवकों को रासुका सहित कई धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया। हम कानपुर की सेंट्रल जेल में पूरे 11 माह तक रहे । 1996 के दंगे के दौरान हमें फिर से पुलिस ने बिना कसूर के अरेस्ट कर लिया और जेल भेज दिया। सात माह तक हम जेल में रहे और जमानत पर बाहर आए। फिर क्या था जब भी कानपुर में कई स्रपदायकि हिंसा होती पुलिस नवीन पंडित को पकड़ कर थाने में बैठा लेती। अभी भी माह में कईबार कोर्ट में हाजिरी लगानी पड़ रही है।